Difference between revisions of "नक़्शबंदिया"
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− | '''नक़्शबंदिया''' एक सूफ़ी सिलसिला है, जिसकी स्थापना ख़्वाजा उबेदुल्ला द्वारा की गई थी। [[भारत]] में इस सिलसिले का प्रचार ख़्वाजा बाकी विल्लाह के शिष्य एवं [[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] के समकालीन शेख़ अहमद सरहिन्दी ने किया था। | + | '''नक़्शबंदिया''' एक सूफ़ी सिलसिला है, जिसकी स्थापना ख़्वाजा उबेदुल्ला द्वारा की गई थी। [[भारत]] में इस सिलसिले का प्रचार ख़्वाजा बाकी विल्लाह के शिष्य एवं [[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] के समकालीन [[शेख़ अहमद सरहिन्दी]] ने किया था। |
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− | शेख़ अहमद सरहिन्दी ‘मुजाहिद’ अर्थात् '[[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] के नवजीवनदाता' या सुधारक के रूप में प्रसिद्ध थे। ख़्वाजा मीर दर्द नक्शबंदी सम्प्रदाय के अन्तिम विख्यात सन्त थे। उन्होंने एक अलग मत 'इल्मे इलाही मुहम्मदी' चलाया और सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य किया। इससे सम्बन्धित तरह-तरह के नक्शे बनाकर उसमें [[रंग]] भरते थे। [[औरंगज़ेब]], शेख़ अहमद सरहिन्दी के पुत्र शेख़ मासूम का शिष्य था। | + | शेख़ अहमद सरहिन्दी ‘मुजाहिद’ अर्थात् '[[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] के नवजीवनदाता' या सुधारक के रूप में प्रसिद्ध थे। ख़्वाजा मीर दर्द नक्शबंदी सम्प्रदाय के अन्तिम विख्यात सन्त थे। उन्होंने एक अलग मत 'इल्मे इलाही मुहम्मदी' चलाया और सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य किया। इससे सम्बन्धित तरह-तरह के नक्शे बनाकर उसमें [[रंग]] भरते थे। [[औरंगज़ेब]], [[शेख़ अहमद सरहिन्दी]] के पुत्र शेख़ मासूम का शिष्य था। |
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नक़्शबंदिया [[भारत]], [[बांग्लादेश]], [[पाकिस्तान]], [[चीन]], मध्य एशियाई गणराज्यों एवं [[मलेशिया]] में पाई जाने वाली [[मुस्लिम]] सूफ़ियों की रूढ़िवादी बिरादरी है। ये बिरादरी अपनी वंशावली को पहले ख़लीफ़ा अबुबक्र से जोड़ती है। बुख़ारा, तुर्किस्तान में इस संप्रदाय के संस्थापक बहाउद्दिन (मृत्यु 1384) को 'अन-नक़्शबंद'<ref>[[चित्रकार]]</ref> कहा जाता था, क्योंकि मान्यता के अनुसार उनके द्वारा निर्धारित अनुष्ठान<ref>ज़िक्र</ref> से दिल पर ख़ुदा की छाप पड़ती थी और इसलिए उनके अनुयायी 'नक़्शबंदिया' कहलाने लगे। इस संप्रदाय को पर्याप्त जनसमर्थन नहीं मिल सका, क्योंकि इसकी स्तुतियाँ बहुत शांत है और मन ही मन ज़िक्र के जाप पर ज़ोर देती हैं। अहमद सरहिंदी (1564-1624) के सुधारवादी उत्साह के कारण 17वीं सदी में [[भारत]] में नक़्शबंदियों को पुनर्जीवन मिला और उन्होंने 18वीं एवं 19वीं सदी में पूरे इस्लामी जगत के [[मुस्लिम]] जीवन के सुधार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। | नक़्शबंदिया [[भारत]], [[बांग्लादेश]], [[पाकिस्तान]], [[चीन]], मध्य एशियाई गणराज्यों एवं [[मलेशिया]] में पाई जाने वाली [[मुस्लिम]] सूफ़ियों की रूढ़िवादी बिरादरी है। ये बिरादरी अपनी वंशावली को पहले ख़लीफ़ा अबुबक्र से जोड़ती है। बुख़ारा, तुर्किस्तान में इस संप्रदाय के संस्थापक बहाउद्दिन (मृत्यु 1384) को 'अन-नक़्शबंद'<ref>[[चित्रकार]]</ref> कहा जाता था, क्योंकि मान्यता के अनुसार उनके द्वारा निर्धारित अनुष्ठान<ref>ज़िक्र</ref> से दिल पर ख़ुदा की छाप पड़ती थी और इसलिए उनके अनुयायी 'नक़्शबंदिया' कहलाने लगे। इस संप्रदाय को पर्याप्त जनसमर्थन नहीं मिल सका, क्योंकि इसकी स्तुतियाँ बहुत शांत है और मन ही मन ज़िक्र के जाप पर ज़ोर देती हैं। अहमद सरहिंदी (1564-1624) के सुधारवादी उत्साह के कारण 17वीं सदी में [[भारत]] में नक़्शबंदियों को पुनर्जीवन मिला और उन्होंने 18वीं एवं 19वीं सदी में पूरे इस्लामी जगत के [[मुस्लिम]] जीवन के सुधार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
Revision as of 12:27, 8 July 2014
naqshabandiya ek soofi silasila hai, jisaki sthapana khvaja ubedulla dvara ki gee thi. bharat mean is silasile ka prachar khvaja baki villah ke shishy evan mugal badashah akabar ke samakalin shekh ahamad sarahindi ne kiya tha.
prachar-prasar
shekh ahamad sarahindi ‘mujahid’ arthath 'islam ke navajivanadata' ya sudharak ke roop mean prasiddh the. khvaja mir dard nakshabandi sampraday ke antim vikhyat sant the. unhoanne ek alag mat 'ilme ilahi muhammadi' chalaya aur sampraday ke prachar-prasar ke lie bahut kary kiya. isase sambandhit tarah-tarah ke nakshe banakar usamean rang bharate the. aurangazeb, shekh ahamad sarahindi ke putr shekh masoom ka shishy tha.
vanshavali
naqshabandiya bharat, baangladesh, pakistan, chin, madhy eshiyaee ganarajyoan evan maleshiya mean paee jane vali muslim soofiyoan ki roodhivadi biradari hai. ye biradari apani vanshavali ko pahale khalifa abubakr se jo dati hai. bukhara, turkistan mean is sanpraday ke sansthapak bahauddin (mrityu 1384) ko 'an-naqshaband'[1] kaha jata tha, kyoanki manyata ke anusar unake dvara nirdharit anushthan[2] se dil par khuda ki chhap p dati thi aur isalie unake anuyayi 'naqshabandiya' kahalane lage. is sanpraday ko paryapt janasamarthan nahian mil saka, kyoanki isaki stutiyaan bahut shaant hai aur man hi man zikr ke jap par zor deti haian. ahamad sarahiandi (1564-1624) ke sudharavadi utsah ke karan 17vian sadi mean bharat mean naqshabandiyoan ko punarjivan mila aur unhoanne 18vian evan 19vian sadi mean poore islami jagat ke muslim jivan ke sudhar mean mahattvapoorn bhoomika nibhaee.
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