लोककथा: Difference between revisions
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'''लोककथा''' से तात्पर्य किसी क्षेत्र विशेष में जनश्रुतियों के माध्यम से चली आ रही कथाएं हैं। इनका अस्तित्व पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी तक [[किंवदंती]] जनश्रुतियों के माध्यम से ही पहुंचता है। ये कथाएँ वे कहानियाँ हैं जो मनुष्य की कथा प्रवृत्ति के साथ चलकर विभिन्न परिवर्तनों एवं परिवर्धनों के साथ वर्तमान रूप में प्राप्त होती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ निश्चित कथानक रूढ़ियों और शैलियों में ढली लोककथाओं के अनेक संस्करण, उसके नित्य नई प्रवृत्तियों और चरितों से युक्त होकर विकसित होने के प्रमाण है। एक ही कथा विभिन्न संदर्भों और अंचलों में बदलकर अनेक रूप ग्रहण करती हैं। [[लोकगीत|लोकगीतों]] की भाँति लोककथाएँ भी हमें मानव की परंपरागत वसीयत के रूप में प्राप्त हैं। दादी अथवा नानी के पास बैठकर बचपन में जो कहानियाँ सुनी जाती है, चौपालों में इनका निर्माण कब, कहाँ कैसे और किसके द्वारा हुआ, यह बताना असंभव है। | '''लोककथा''' से तात्पर्य किसी क्षेत्र विशेष में जनश्रुतियों के माध्यम से चली आ रही कथाएं हैं। इनका अस्तित्व पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी तक [[किंवदंती]] जनश्रुतियों के माध्यम से ही पहुंचता है। ये कथाएँ वे कहानियाँ हैं जो मनुष्य की [[कथा]] प्रवृत्ति के साथ चलकर विभिन्न परिवर्तनों एवं परिवर्धनों के साथ वर्तमान रूप में प्राप्त होती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ निश्चित कथानक रूढ़ियों और शैलियों में ढली लोककथाओं के अनेक संस्करण, उसके नित्य नई प्रवृत्तियों और चरितों से युक्त होकर विकसित होने के प्रमाण है। एक ही कथा विभिन्न संदर्भों और अंचलों में बदलकर अनेक रूप ग्रहण करती हैं। [[लोकगीत|लोकगीतों]] की भाँति लोककथाएँ भी हमें मानव की परंपरागत वसीयत के रूप में प्राप्त हैं। दादी अथवा नानी के पास बैठकर बचपन में जो कहानियाँ सुनी जाती है, चौपालों में इनका निर्माण कब, कहाँ कैसे और किसके द्वारा हुआ, यह बताना असंभव है। | ||
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thumb लोककथा से तात्पर्य किसी क्षेत्र विशेष में जनश्रुतियों के माध्यम से चली आ रही कथाएं हैं। इनका अस्तित्व पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी तक किंवदंती जनश्रुतियों के माध्यम से ही पहुंचता है। ये कथाएँ वे कहानियाँ हैं जो मनुष्य की कथा प्रवृत्ति के साथ चलकर विभिन्न परिवर्तनों एवं परिवर्धनों के साथ वर्तमान रूप में प्राप्त होती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ निश्चित कथानक रूढ़ियों और शैलियों में ढली लोककथाओं के अनेक संस्करण, उसके नित्य नई प्रवृत्तियों और चरितों से युक्त होकर विकसित होने के प्रमाण है। एक ही कथा विभिन्न संदर्भों और अंचलों में बदलकर अनेक रूप ग्रहण करती हैं। लोकगीतों की भाँति लोककथाएँ भी हमें मानव की परंपरागत वसीयत के रूप में प्राप्त हैं। दादी अथवा नानी के पास बैठकर बचपन में जो कहानियाँ सुनी जाती है, चौपालों में इनका निर्माण कब, कहाँ कैसे और किसके द्वारा हुआ, यह बताना असंभव है।
- उदाहरणार्थ सिंहासन बत्तीसी, वेताल पच्चीसी, पंचतंत्र
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख