नागसेन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{दार्शनिक}}")
Line 17: Line 17:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{दार्शनिक}}
{{बौद्ध धर्म}}
{{बौद्ध धर्म}}
[[Category:बौद्ध दार्शनिक]]
[[Category:बौद्ध दार्शनिक]]

Revision as of 08:05, 3 January 2012

नागसेन एक प्रसिद्ध तथा प्रमुख बौद्ध भिक्षुक था, जिसने यवन सम्राट मिलिन्द से वाद-विवाद किया था। सम्भवत: इस वाद-विवाद के फलस्वरूप ही मिलिन्द नागसेन से प्रभावित हुआ और उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। नागसेन के जीवन के बारे में "मिलिन्द प्रश्न" (मिलिन्दपन्ह)[1] में जो कुछ भी उल्लेख मिलता है, उससे इतना ही मालूम होता है, कि हिमालय-पर्वत के पास (पंजाब) में कजंगल गाँव में सोनुत्तर ब्राह्मण के घर में उनका जन्म हुआ था।

विद्या प्राप्ति

पिता के घर में ही रहते हुए उन्होंने ब्राह्मणों की विद्या वेद, व्याकरण आदि को पढ़ लिया था। इससे उनका परिचय उस समय वत्तनीय (वर्त्तनीय) स्थान में रहते एक विद्वान भिक्षु रोहण से हुआ, जिससे नागसेन बौद्ध दर्शन की ओर झुके। रोहण के शिष्य बन वह उनके साथ विजम्भवस्तु [2] होते हिमालय में रक्षिततल नामक स्थान में गये। वहीं गुरु ने उन्हें उस समय की रीति के अनुसार कंठस्थ किये सारे बौद्ध वाड्मय को पढाया और पढ़ने की इच्छा से गुरु की आज्ञा के अनुसार वह एक बार फिर पैदल चलते वर्त्तनीय में एक प्रख्यात विद्वान अश्वगुप्त के पास पहुँचे।

प्रतिभा सम्पन्न

अश्वगुप्त अभी इस नये विद्यार्थी की विद्या-बुद्धि की परख कर ही रहे थे, कि एक दिन किसी गृहस्थ के घर भोजन के उपरांत नियम के अनुसार दिया जाने वाला धर्मोपदेश नागसेन के जिम्मे पड़ा। नागसेन की प्रतिभा उससे खुल गई और अश्वगुप्त ने इस प्रतिभाशाली तरुण को और योग्य हाथों में सौंपनें के लिए पटना (पाटलिपुत्र) के 'अशोका राम बिहार' में वास करने वाले आचार्य 'धर्मरक्षित' के पास भेज दिया। सौ योजन पर अवस्थित पटना पैदल जाना आसान काम न था, किंतु अब भिक्षु बराबर आते-आते रहते थे, व्यापारियों का साथ (कारवाँ) भी एक-न-एक चलता ही रहता था। नागसेन को एक ऐसा ही कारवाँ मिल गया, जिसके स्वामी ने बड़ी खुशी से इस तरुण विद्वान को खिलाते-पिलाते साथ ले चलना स्वीकार किया।

पिटक का अध्ययन

अशोका राम में आचार्य धर्मरक्षित के पास रहकर नागसेन ने बौद्ध तत्त्व-ज्ञान और पिटक का पूर्णतया अध्ययन किया। इसी बीच उन्हें पंजाब से बुलौवा आया और वह एक बार फिर रक्षिततल पर पहुँचे। मीनेंडर (मिलिन्द) का राज्य यमुना से आमू (वक्षु) दरिया तक फैला हुआ था। यद्यपि उसकी एक राजधानी बल्ख़ (वाहलीक) भी थी, किंतु हमारी इस परंपरा के अनुसार मालूम होता है, मुख्य राजधानी सागल (स्यालकोट) नगरी थी।

मिलिन्द से शास्त्रार्थ

प्लूतार्क ने लिखा है कि, मींनेडर बड़ा न्यायी, विद्वान और जनप्रिय राजा था। उसकी मृत्यु के बाद उसकी हड्डियों पर बड़े-बड़े स्तूप बनवाये गये थे। मींनेडर को शास्त्र चर्चा और बहस की बड़ी आदत थी, और साधारण पंडित उसके सामने नहीं टिक सकते थे। भिक्षुओं ने कहा- 'नागसेन! राजा मिलिन्द वाद विवाद में प्रश्न पूछकर भिक्षु-संघ को तंग करता और नीचा दिखाता है; जाओ तुम उस राजा का दमन करो।"

नागसेन संध के आदेश को स्वीकार कर सागल नगर के असंखेय्य नामक परिवेण (मठ) में पहुँचे। कुछ ही समय पहले वहाँ के बड़े पंडित आयु पाल को मींनेडर ने चुप कर दिया था। नागसेन के आने की खबर शहर में फैल गई। मींनेडर ने अपने एक अमात्य देवमंत्री (जो शायद यूनानी दिमित्री है) से नागसेन से मिलने की इच्छा प्रकट की। स्वीकृति मिलने पर एक दिन "पाँच सौ यवनों के साथ अच्छे रथ पर सवार होकर मींनेडर असंखेय्य परिवेण में गया। राजा ने नमस्कार और अभिनंदन के बाद प्रश्न शुरु किये।" इन्ही प्रश्नों के कारण ग्रंथ का नाम "मिलिन्द-प्रश्न" पड़ा। यद्यपि उपलभ्य पाली "मिलिन्द पंझ" में छ: परिच्छेद हैं, किंतु उनमें से पहले के तीन ही पुराने मालूम होते हैं; चीनी भाषा में भी इन्हीं तीन परिच्छेदों का अनुवाद मिलता है। मींनेडर ने पहले दिन मठ में जाकर नागसेन से प्रश्न किये; दूसरे दिन उसने महल में निमंत्रण कर प्रश्न पूछे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

दर्शन दिग्दर्शन |लेखक: राहुल सांकृत्यायन |प्रकाशक: किताब महल, इलाहाबाद |पृष्ठ संख्या: 422-430 |ISBN: 81-225-0027-7

  1. 'मिलिन्द प्रश्न, अनुवादक भिक्षु जगदीश काश्यप, 1637 ई.
  2. वर्त्तनीय, कंगजल और शायद विजम्भवस्तु भी स्यालकोट के ज़िले में थे।

संबंधित लेख