केलुचरण महापात्र: Difference between revisions

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Revision as of 09:04, 19 September 2022

केलुचरण महापात्र (अंग्रेज़ी: Kelucharan Mohapatra, जन्म- 8 जनवरी, 1926; मृत्यु- 7 अप्रॅल, 2004) एक सच्चे कला प्रेमी थे। कहा जाता है कि वह पूरी तरह से ओडिसी नृत्य में डूबे हुए थे। जब ओडिसी नृत्य विलुप्त होने की कगार पर पहुंचा तो वह केलुचरण महापात्र ही थे, जिन्होंने ओडिसी को पुनर्जीवित किया। ओडिसी नृत्य में उनके योगदान को आज भी सराहा जाता है। इसी योगदान के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री (1972), पद्म भूषण (1989), पद्म विभूषण (2000) और कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया था।

परिचय

ओडिसी नृत्य के नेतृत्वकर्ता गुरु केलूचरण मोहपात्रा का जन्म 8 जनवरी, 1926 को उड़ीसा के रघुराजपुर में हुआ था। केलूचरण अपनी उम्र से पहले ही परिपक्व हो चुके बच्चे थे। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में ढोल बजाना, पेंट करना, चित्र बनाना (आकृति बनाना) आदि सीख लिया था। जब वह सिर्फ नौ साल के थे तो उन्होंने गोतिपुआ मंडलियों और लोक नाटकशाला समूहों में भाग लिया।

ओडिसी के संरक्षक

केलुचरण महापात्र पूरी तरह से ओडिसी नृत्य में डूबे हुए थे। विलुप्त होने के कगार पर पहुँचने वाले ओडिसी नृत्य को उन्होंने पुनर्जीवित किया। सन 1994 में उन्होंने ओडिसी नृत्य का छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए एक संगठन ‘श्रीजन’ की स्थापना की। कई प्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक, जैसे- संयुक्ता पाणिग्राही, कुकुम मोहंती, सोनल मानसिंह, प्रियंबदा मोहंती, मीनाती मिश्रा और भारतन्यत्यम नर्तकी यामिनी कृष्णामूर्ति केलुचरण महापात्र की शिष्या रहीं।

पुरस्कार व सम्मान

== ओडिसी नृत्य के महान कलाकार केलुचरण महापात्र का 7 अप्रॅल, 2004 को भुवनेश्वर, उड़ीसा में निधन हो गया। उन्होंने ओडिसी नर्तकियों के एक संघटन को उनके पीछे काम जारी रखने के लिए छोड़ा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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