जहाँदारशाह

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जहाँदारशाह ने सिर्फ़ 1712 से 1713 ई. तक ही शासन किया। बहादुरशाह प्रथम के मरने के बाद उसके चारों पुत्रों 'जहाँदारशाह', 'अजीमुश्शान', 'रफ़ीउश्शान' एवं 'जहानशाह' में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष में जुल्फिकार ख़ाँ के सहयोग से जहाँदारशाह के अतिरिक्त बहादुरशाह प्रथम के अन्य तीन पुत्र आपस में संघर्ष के दौरान मारे गये। 51 वर्ष की आयु में जहाँदारशाह 29 मार्च, 1712 को मुग़ल राजसिंहासन पर बैठा। जुल्फिकार ख़ाँ इसका प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, तथा असद ख़ाँ 'वकील-ए-मुतलक' के पद पर बना रहा। ये दोनों बाप-बेटे ईरानी अमीरों के नेता थे। जहाँदारशाह के शासन काल के बारे में इतिहासकार 'खफी ख़ाँ' का कहना है, "नया शासनकाल चारणों और गायकों, नर्तकों एवं नाट्यकर्मियों के समस्त वर्गों के लिए बहुत अनुकूल था।"

शासन व नीति

जहाँदारशाह के शासनकाल में प्रशासन की पूरी बागडोर जुल्फिकार ख़ाँ के हाथों में थी। दरबार में अपनी स्थिति मज़बूत बनाने तथा साम्राज्य को बचाने के लिए यह आवश्यक था कि, राजपूत राजाओं तथा मराठों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किया जाय। इसलिए उसने राजपूतों की तरफ़ मैत्रीपूर्ण क़दम बढ़ाते हुये, आमेर के जयसिंह को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया, तथा 'मिर्जा राजा' की पदवी दी। मारवाड़ के अजीत सिंह को 'महाराजा'की पदवी दी और गुजरात का शासक नियुक्त किया। उसने जजिया कर को भी समाप्त कर दिया। जुल्फिकार ख़ाँ ने चूड़ामन जाट तथा छत्रसाल बुन्देला के साथ भी मेल-मिलाप किया तथा केवल बन्दा बहादुर के विरुद्ध दमन की नीति को जारी रखा।

जुल्फिकार ख़ाँ इच्छा

जागीरों और ओहदों की अंधाधुंध वृद्धि पर रोक लगाकार जुल्फिकार ख़ाँ ने साम्राज्य की वित्तीय स्थिति को सुधारने का प्रयास किया, किन्तु उसने एक ग़लत प्रवृति 'इजारा व्यवस्था' को बढ़ावा दिया। इसके अन्तर्गत एक निश्चित दर पर भू-राजस्व वसूल करने के बदले में सरकार ने 'इजारेदार' (लगान के ठेकेदारों) और बिचैलियों के साथ यह करार करना आरम्भ कर दिया था कि, वे सरकार को एक निश्चित मुद्रा राशि दें। बदले में किसानों से जितना लगान वसूल कर सकें, उतना वसूलने के लिए उन्हें आज़ाद छोड़ दिया गया। इससे किसानों का उत्पीड़न बढ़ा। जुल्फिकार ख़ाँ वज़ीर की शक्ति में वृद्धि करके शक्तिशाली होना चाहता था, जिसके कारण शाही सामंतों ने जुल्फिकार ख़ाँ के विरुद्ध षड़यंत्र करना प्रारंभ कर दिया। जुल्फिकार ख़ाँ ने अपने सारे प्रशासनिक दायित्व अपने एक नजदीकी व्यक्ति 'सुभगचन्द्र' के हाथों में दे दिया था।

अयोग्य व विलासी सम्राट

जहाँदारशाह अयोग्य एवं विलासी सम्राट था। उसने अपने शासन के कार्यों में 'लाल कुंवर' नाम की वेश्या को हस्तक्षेप करने का अधिकार दे रखा था। अतः अजीमुश्शान के पुत्र फ़र्रुख़सियर ने पटना के सूबेदार सैयद बन्धु 'हुसैन अली ख़ाँ' एवं उसके बड़े भाई इलाहाबाद के सहायक सूबेदार 'अब्दुल्ला ख़ाँ' के सहयोग से जहाँदारशाह को उपदस्थ करना चाहा। हुसैन अली ख़ाँ एवं अब्दुल्ला ख़ाँ, जिन्हें 'सैय्यद बंधु' के नाम से भी जाना जाता है, मुग़लकालीन भारतीय इतिहास में 'शासक निर्माता' के रूप में प्रसिद्ध हैं।

मृत्यु

सैय्यद बंधुओं के सहयोग से फ़र्रुख़सियर ने 10 जनवरी, 1713 को आगरा में जहाँदारशाह को बुरी तरह परास्त किया। 11 फ़रवरी, 1713 को असद ख़ाँ एवं जुल्फिकार ख़ाँ ने इसकी हत्या कर दी। जहाँदारशाह मुग़ल वंश का प्रथम अयोग्य शासक था। उसे 'लम्पट मूर्ख' कहा जाता था। जहाँदारशाह के बारे में 'अर्विन' ने लिखा है, "तैमूर के ख़ानदान में जहाँदारशाह पहला सम्राट था, जिसने स्वयं को अपने बेहद नीचता, क्रूर स्वभाव, दिमाग के छिछलेपन तथा कायरता के कारण शासन करने में पूरी तरह से अयोग्य पाया।"

एक समकालीन इतिहासकार 'इरादत ख़ाँ' ने जहाँदारशाह के विषय में लिखा है, "वह रंगरेलियों में डूबे रहने वाला एक कमज़ोर व्यक्ति था, जिसने तो राज्य के कार्यों की चिन्ता की, और न उमरावों में से किसी का लगाव था।" जहाँदारशाह के शासनकाल में "उल्लू बाज के घोंसले में रहता था, तथा कोयल का स्थान कौवे ने ले लिया था।"


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