माघबिहू: Difference between revisions
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'''माघबिहू''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Magh Bihu'') [[भारत]] के [[असम]] राज्य में एक प्रसिद्ध उत्सव है। [[मकर संक्रान्ति]] के [[दिन]] [[जनवरी]] के मध्य में माघबिहू मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रचुर मात्रा में हुई फ़सल किसान को आनन्दित करती है। यह त्यौहार जाड़े में तब मनाया जाता है, जब फ़सल कट जाने के बाद किसानों के आराम का समय होता है। माघबिहू पर मुख्य रूप से भोज देने की प्रथा है। इस कारण इसे "भोगासी बिहू" अथवा "भोग–उपभोग का बिहू" भी कहते हैं। | |||
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==बिहू वर्ष में तीन बार== | |||
माघबिहू वर्ष में तीन बार मनाया जाता है- | |||
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बिहू उत्सव के दौरान वहां के लोग अपनी खुशी का इज़हार करने के लिए [[लोकनृत्य]] भी करते हैं। स्त्रियाँ चिवड़ा, [[चावल]] की टिकिया, तरह–तरह के लारु (लड्डू) तथा कराई अर्थात् तरह–तरह के भुने हुए अनाज का मिश्रण तैयार करती हैं। ये सब चीज़ें दोपहर के समय गुड़ और [[दही]] के साथ खाई जाती हैं। सभी लोग रात्रिभोज करते हैं। छावनी के पास ही चार बांस लगाकर उस पर पुआल एवं लकड़ी से ऊंचे गुम्बद का निर्माण करते हैं जिसे 'मेजी' कहते हैं। उरुका के दूसरे दिन सुबह स्नान करके मेजी जलाकर माघ बिहू का शुभारंभ किया जाता है। गांव के सभी लोग इस मेजी के चारों ओर एकत्र होकर भगवान से मंगल की कामना करते हैं। अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग विभिन्न वस्तुएं भी मेजी में भेंट चढ़ाते हैं। मेजी की अधजली लकडिय़ों और भस्म को खेतों में छिड़का जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से ज़मीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। मित्रों तथा सगे सम्बन्धियों को आमंत्रित कर आदर दिया जाता है। स्वाभाविक है कि स्वादिष्ट भोजन ही इस पर्व का अभिन्न अंग होता है। इस अवसर पर सामुदायिक भोज एक [[सप्ताह]] तक चलते हैं। साथ ही मनोरंजन के लिए अन्य कार्यक्रम जैसे पशु युद्ध इत्यादि भी आयोजित किए जाते हैं। महोत्सव के एक अभिन्न अंग के रूप में अलाव भी जलाए जाते हैं। | |||
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[[असम]] सिर्फ एक प्रदेश का नाम नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, विभिन्न संस्कृतियों इत्यादि की झलक का प्रतीक है। असम की ढेर सारी संस्कृतियों में से बिहू एक ऐसी परंपरा है जो यहां का गौरव है। असम में मनाए जाने वाले बिहू मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- | |||
====बैसाख बिहू या बोहाग बिहू==== | |||
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* पहले बैसाख में '''आदमी का बिहू''' शुरू होता है। उस दिन भी सभी लोग [[हल्दी|कच्ची हल्दी]] से नहाकर नए कपड़े पहन कर पूजा-पाठ करके दही चिवड़ा एवं नाना तरह के पेठा-लडडू इत्यादि खाते हैं। इसी दिन से असमिया लोगों का नया साल आरंभ माना जाता है। इसी दौरान सात दिन के अंदर 101 तरह के हरी पत्तियों वाला साग खाने की भी रीति है। | |||
* इस बिहू का दूसरा महत्व है कि उसी समय [[धरती]] पर [[बारिश]] की पहली बूंदें पड़ती हैं और [[पृथ्वी]] नए रूप से सजती है। जीव-जंतु एवं पक्षी भी नई ज़िंदगी शुरू करते हैं। नई फसल आने की हर तरह तैयारी होती है। इस बिहू के अवसर पर संक्रांति के दिन से [[बिहू नाच]] नाचते हैं। इसमें 20-25 की मंडली होती है जिसमें युवक एवं युवतियां साथ-साथ [[ढोल]], पेपा, गगना, ताल, [[बांसुरी]] इत्यादि के साथ अपने पारंपरिक परिधान में एक साथ [[बिहू नृत्य|बिहू]] करते हैं। | |||
* बिहू आज कल बहुत दिनों तक जगह-जगह पर मनाया जाता है। बिहू के दौरान ही युवक एवं युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी को चुनते हैं और अपनी ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं इसलिए असम में बैसाख महीने में ज़्यादातर [[विवाह संस्कार|विवाह]] संपन्न होते हैं। बिहू के समय में गांव में विभिन्न तरह के खेल-तमाशों का आयोजन किया जाता है। | |||
* इसके साथ-साथ खेती में पहली बार के लिए हल भी जोता जाता है। [[बिहू नृत्य]] के लिए जो ढोल व्यवहार किया जाता है उसका भी एक महत्व है। कहा जाता है कि ढोल की आवाज से [[आकाश]] में [[बादल]] आ जाते हैं और बारिश शुरू हो जाती है जिसके कारण खेती अच्छी होती है।<ref name="वेबदुनिया हिंदी"/> | |||
====काति बिहू या कंगाली बिहू==== | |||
[[धान]] असम की प्रधान फसल है इसलिए धान लगाने के बाद जब धान की फसल में अन्न लगना शुरू होता है उस समय नए तरह के कीड़े धान की फसल को नष्ट कर देते हैं। इससे बचाने के लिए [[कार्तिक]] महीने की संक्रांति के दिन में शुरू होता है काति बिहू। इस बिहू को काति इसलिए कहा गया है कि उस समय फसल हरी-भरी नहीं होती है इसलिए इस बिहू को '''काति बिहू मतलब कंगाली बिहू''' कहा जाता है। संक्रांति के दिन में आंगन में [[तुलसी]] का पौधा लगाया जाता है और इसमें प्रसाद चढ़ा कर [[दीपक|दीया]] जलाया जाता है और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि खेती ठीक से हो।<ref name="वेबदुनिया हिंदी"/> | |||
====माघ बिहू या भोगाली बिहू==== | |||
[[माघ]] महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस बिहू का नाम भोगाली इसलिए रखा गया है कि इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि [[तिल]], [[चावल]], [[नारियल]], [[गन्ना]] इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है और उसी से तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई जाती है और खिलाई जाती है। इस समय कृषि कर्म से जुड़े हुए लोगों को भी आराम मिलता है और वे रिश्तेदारों के घर जाते हैं। संक्रांति के पहले दिन को उरूका बोला जाता है और उसी रात को गांव के लोग मिलकर खेती की जमीन पर खर के मेजी बनाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोज करते हैं। उसमें कलाई की दाल खाना ज़रूरी होता है। इसी रात [[आग]] जलाकर लोग रात भर जागते रहते हैं और सुबह [[सूर्य]] उगने से पहले नदी, तालाब या किसी कुंड में स्नान करते हैं। स्नान के बाद खर से बने हुए मेजी को जला कर ताप लेने का रिवाज है। उसके बाद नाना तरह के पेठा, दही, चिवड़ा खाकर दिन बिताते हैं। इसी दिन पूरे [[भारत]] में [[मकर संक्रांति]], [[लोहड़ी]], [[पोंगल]] इत्यादि त्योहार मनाया जाता है।<ref name="वेबदुनिया हिंदी">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%85%E0%A4%B8%E0%A4%AE-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A5%82-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE/%E0%A4%85%E0%A4%B8%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A5%82-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE-1110504025_1.htm |title=असम की बिहू परंपरा |accessmonthday= 14 जनवरी|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया हिंदी |language=हिंदी }}</ref> | |||
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माघबिहू
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अन्य नाम | भोगासी बिहू, भोगाली बिहू |
अनुयायी | हिन्दू धर्मावलम्बी |
उद्देश्य | असम राज्य में जब फ़सल कट जाने के बाद किसानों के आराम का समय होता है। तब माघबिहू पर मुख्य रूप से भोज देने की प्रथा है। |
तिथि | 14 जनवरी या 15 जनवरी |
धार्मिक मान्यता | हिन्दू धर्म |
संबंधित लेख | बिहू, मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल |
अन्य जानकारी | बिहू वर्ष में तीन बार मनाया जाता है। |
माघबिहू (अंग्रेज़ी: Magh Bihu) भारत के असम राज्य में एक प्रसिद्ध उत्सव है। मकर संक्रान्ति के दिन जनवरी के मध्य में माघबिहू मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रचुर मात्रा में हुई फ़सल किसान को आनन्दित करती है। यह त्यौहार जाड़े में तब मनाया जाता है, जब फ़सल कट जाने के बाद किसानों के आराम का समय होता है। माघबिहू पर मुख्य रूप से भोज देने की प्रथा है। इस कारण इसे "भोगासी बिहू" अथवा "भोग–उपभोग का बिहू" भी कहते हैं।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
बिहू वर्ष में तीन बार
माघबिहू वर्ष में तीन बार मनाया जाता है-
- रंगाली बिहू या बोहाग बिहू- फसल बुबाई की शुरूआत का प्रतीक है और इससे नए वर्ष का भी शुभारंभ होता है।
- भोगली बिहू या माघ बिहू- माघ महीने में फसल कटाई का त्योहार है।
- काती बिहू या कांगली बिहू- शरद ऋतु का एक मेला है।
भोज आयोजन
बिहू उत्सव के दौरान वहां के लोग अपनी खुशी का इज़हार करने के लिए लोकनृत्य भी करते हैं। स्त्रियाँ चिवड़ा, चावल की टिकिया, तरह–तरह के लारु (लड्डू) तथा कराई अर्थात् तरह–तरह के भुने हुए अनाज का मिश्रण तैयार करती हैं। ये सब चीज़ें दोपहर के समय गुड़ और दही के साथ खाई जाती हैं। सभी लोग रात्रिभोज करते हैं। छावनी के पास ही चार बांस लगाकर उस पर पुआल एवं लकड़ी से ऊंचे गुम्बद का निर्माण करते हैं जिसे 'मेजी' कहते हैं। उरुका के दूसरे दिन सुबह स्नान करके मेजी जलाकर माघ बिहू का शुभारंभ किया जाता है। गांव के सभी लोग इस मेजी के चारों ओर एकत्र होकर भगवान से मंगल की कामना करते हैं। अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग विभिन्न वस्तुएं भी मेजी में भेंट चढ़ाते हैं। मेजी की अधजली लकडिय़ों और भस्म को खेतों में छिड़का जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से ज़मीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। मित्रों तथा सगे सम्बन्धियों को आमंत्रित कर आदर दिया जाता है। स्वाभाविक है कि स्वादिष्ट भोजन ही इस पर्व का अभिन्न अंग होता है। इस अवसर पर सामुदायिक भोज एक सप्ताह तक चलते हैं। साथ ही मनोरंजन के लिए अन्य कार्यक्रम जैसे पशु युद्ध इत्यादि भी आयोजित किए जाते हैं। महोत्सव के एक अभिन्न अंग के रूप में अलाव भी जलाए जाते हैं।
बिहू परंपरा
असम सिर्फ एक प्रदेश का नाम नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, विभिन्न संस्कृतियों इत्यादि की झलक का प्रतीक है। असम की ढेर सारी संस्कृतियों में से बिहू एक ऐसी परंपरा है जो यहां का गौरव है। असम में मनाए जाने वाले बिहू मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
बैसाख बिहू या बोहाग बिहू
असमिया कैलेंडर बैसाख महीने से शुरू होता है जो अंग्रेज़ी कैलेंडर के अप्रैल महीने के मध्य में शुरू होता है और यह बिहू सात दिन तक अलग-अलग रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है। बैसाख महीने का संक्रांति से बोहाग बिहू शुरू होता है। इसमें प्रथम दिन को गाय बिहू कहा जाता है। इस दिन लोग सुबह अपनी-अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं। गायों को नहलाने के लिए रात में ही भिगो कर रखी गई कलई दाल और कच्ची हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। उसके बाद वहीं पर उन्हें लौकी, बैंगन आदि खिलाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से साल भर गाएं कुशलपूर्वक रहती हैं। शाम के समय जहां गाय रखी जाती हैं, वहां गाय को नई रस्सी से बांधा जाता है और नाना तरह के औषधि वाले पेड़-पौधे जला कर मच्छर-मक्खी भगाए जाते हैं। इस दिन लोग दिन में चावल नहीं खाते, केवल दही चिवड़ा ही खाते हैं।
- पहले बैसाख में आदमी का बिहू शुरू होता है। उस दिन भी सभी लोग कच्ची हल्दी से नहाकर नए कपड़े पहन कर पूजा-पाठ करके दही चिवड़ा एवं नाना तरह के पेठा-लडडू इत्यादि खाते हैं। इसी दिन से असमिया लोगों का नया साल आरंभ माना जाता है। इसी दौरान सात दिन के अंदर 101 तरह के हरी पत्तियों वाला साग खाने की भी रीति है।
- इस बिहू का दूसरा महत्व है कि उसी समय धरती पर बारिश की पहली बूंदें पड़ती हैं और पृथ्वी नए रूप से सजती है। जीव-जंतु एवं पक्षी भी नई ज़िंदगी शुरू करते हैं। नई फसल आने की हर तरह तैयारी होती है। इस बिहू के अवसर पर संक्रांति के दिन से बिहू नाच नाचते हैं। इसमें 20-25 की मंडली होती है जिसमें युवक एवं युवतियां साथ-साथ ढोल, पेपा, गगना, ताल, बांसुरी इत्यादि के साथ अपने पारंपरिक परिधान में एक साथ बिहू करते हैं।
- बिहू आज कल बहुत दिनों तक जगह-जगह पर मनाया जाता है। बिहू के दौरान ही युवक एवं युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी को चुनते हैं और अपनी ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं इसलिए असम में बैसाख महीने में ज़्यादातर विवाह संपन्न होते हैं। बिहू के समय में गांव में विभिन्न तरह के खेल-तमाशों का आयोजन किया जाता है।
- इसके साथ-साथ खेती में पहली बार के लिए हल भी जोता जाता है। बिहू नृत्य के लिए जो ढोल व्यवहार किया जाता है उसका भी एक महत्व है। कहा जाता है कि ढोल की आवाज से आकाश में बादल आ जाते हैं और बारिश शुरू हो जाती है जिसके कारण खेती अच्छी होती है।[1]
काति बिहू या कंगाली बिहू
धान असम की प्रधान फसल है इसलिए धान लगाने के बाद जब धान की फसल में अन्न लगना शुरू होता है उस समय नए तरह के कीड़े धान की फसल को नष्ट कर देते हैं। इससे बचाने के लिए कार्तिक महीने की संक्रांति के दिन में शुरू होता है काति बिहू। इस बिहू को काति इसलिए कहा गया है कि उस समय फसल हरी-भरी नहीं होती है इसलिए इस बिहू को काति बिहू मतलब कंगाली बिहू कहा जाता है। संक्रांति के दिन में आंगन में तुलसी का पौधा लगाया जाता है और इसमें प्रसाद चढ़ा कर दीया जलाया जाता है और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि खेती ठीक से हो।[1]
माघ बिहू या भोगाली बिहू
माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस बिहू का नाम भोगाली इसलिए रखा गया है कि इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल, गन्ना इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है और उसी से तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई जाती है और खिलाई जाती है। इस समय कृषि कर्म से जुड़े हुए लोगों को भी आराम मिलता है और वे रिश्तेदारों के घर जाते हैं। संक्रांति के पहले दिन को उरूका बोला जाता है और उसी रात को गांव के लोग मिलकर खेती की जमीन पर खर के मेजी बनाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोज करते हैं। उसमें कलाई की दाल खाना ज़रूरी होता है। इसी रात आग जलाकर लोग रात भर जागते रहते हैं और सुबह सूर्य उगने से पहले नदी, तालाब या किसी कुंड में स्नान करते हैं। स्नान के बाद खर से बने हुए मेजी को जला कर ताप लेने का रिवाज है। उसके बाद नाना तरह के पेठा, दही, चिवड़ा खाकर दिन बिताते हैं। इसी दिन पूरे भारत में मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल इत्यादि त्योहार मनाया जाता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 असम की बिहू परंपरा (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 14 जनवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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