अदहम ख़ाँ का मक़बरा: Difference between revisions
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==इतिहास== | ==इतिहास== |
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अदहम ख़ाँ का मक़बरा
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विवरण | 'अदहम ख़ाँ का मक़बरा' दिल्ली स्थित एक मुग़लकालीन ऐतिहासिक इमारत है। इस मक़बरे का निर्माण बादशाह अकबर द्वारा करवाया गया था। |
देश | भारत |
स्थान | महरौली, दिल्ली |
निर्माण काल | 1561 ई. |
निर्माणकर्ता | अकबर |
संबंधित लेख | मुग़ल साम्राज्य, मुग़ल वंश, अकबर, माहम अनगा, अदहम ख़ाँ, अदहम ख़ाँ की हत्या |
अन्य जानकारी | इस अष्टकोणीय मक़बरे के ऊपर गुंबज को 14वीं सदी के लोधी और सैयद वंश की इमारतों की शैली में बनाया गया है। मक़बरे में चारों तरफ मेहराबदार बरामदे बने हैं। |
अदहम ख़ाँ का मक़बरा मध्य काल में निर्मित मुग़ल स्थापत्य को दर्शाती शानदार इमारत है। इस मक़बरे में मुग़ल बादशाह अकबर के एक सिपहसालार अदहम ख़ाँ को दफनाया गया था। अदहम ख़ाँ अकबर की धाय मां माहम अनगा का छोटा पुत्र होने के नाते रिश्ते में अकबर का दूध भाई था। अदहम ख़ाँ बेहद ताकतवर सिपहसलार था, लेकिन अकबर के दूसरे सिपहसलार अतगा ख़ाँ की हत्या कर देने के बाद अकबर ने इस ज़ुर्म पर मौत की सजा सुनाते हुए अदहम ख़ाँ को आगरा क़िले की दीवार से सिर के बल नीचे फेंक देने का हुक्म दिया था।
इतिहास
अदहम ख़ाँ का मक़बरा दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। इसका निर्माण अकबर द्वारा 1561 ई. में करवाया गया था। अदहम ख़ाँ अकबर की धाय मां का पुत्र और मुगल फौज का एक सिपहसलार था। अकबर के वजीर-ए-आज़म अतगा ख़ान के साथ दुश्मनी के चलते अदहम ख़ाँ ने उसकी हत्या कर दी, जिसके बाद क्रोध में अकबर ने अदहम ख़ाँ को आगरा क़िले की दीवार से सिर के बल फेंक देने का आदेश दे दिया, जिससे अदहम ख़ाँ की मौत हो गई। अदहम ख़ाँ की मौत के चालीसवें दिन ग़म के मारे उसकी मां माहम अनगा की भी मौत हो गई। मां बेटे दोनों को महरौली में बने इसी मक़बरे में दफनाया गया। मक़बरे का निर्माण अकबर ने करवाया।
इतिहासकारों का मानना है कि ये मक़बरा जानबूझकर लोधी वंश की इमारतों की अष्टकोणीय शैली में बनवाया गया। शायद ऐसा अदहम ख़ाँ को गद्दार करार देने के लिए किया गया था, क्योंकि मुग़लों की नज़र में लोदी सुल्तान गद्दार थे।
मक़बरे का पुनर्निर्माण
सन 1830 ई. में बंगाल सिविल सेवा के एक अंग्रेज़ अफसर ब्लेक ने इस मक़बरे को अपना निवास स्थल बना लिया और मक़बरे के बीचों-बीच अपने डाइनिंग हॉल तक रास्ता साफ करने के लिए इसके अंदर बनी कब्रों को हटा दिया। हालांकि उस अफसर की जल्द ही मौत हो गई, लेकिन लंबे समय तक ये मक़बरा अंग्रेज़ अफसरों के लिए अतिथिगृह बना रहा। बाद के दिनों में कुछ समय तक इस मक़बरे को पुलिस थाने और बाद में डाकघर के रूप में भी इस्तेमाल किया गया। लेकिन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्ज़न के आदेश के बाद इस मक़बरे को खाली करके कब्रों का पुनर्निर्माण किया गया।
स्थापत्य
यह मक़बरा दक्षिणी दिल्ली के लालकोट की दीवार पर बने एक चबूतरे पर बना है। इस अष्टकोणीय इमारत के ऊपर गुंबज को 14वीं सदी के लोधी और सैयद वंश की इमारतों की शैली में बनाया गया है। मक़बरे में चारों तरफ मेहराबदार बरामदे बने हैं। प्रत्येक बरामदे में तीन दरवाजे प्रवेश द्वार बने हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख