अन्तरराष्ट्रीय निर्धनता उन्मूलन दिवस: Difference between revisions

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==निर्धनता में बढ़ोत्तरी==
==निर्धनता में बढ़ोत्तरी==
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Revision as of 07:45, 29 March 2022

अन्तरराष्ट्रीय निर्धनता उन्मूलन दिवस
तिथि 17 अक्टूबर
प्रथम बार 1993
उद्देश्य विकासशील देशों में निर्धनता को समाप्त करना है।
अन्य जानकारी इस दिवस के द्वारा निर्धनता में रह रहे लोगों के साथ सक्रीय साझेदारी के द्वारा उन्हें निर्धनता से बाहर लाने के प्रयास पर बल दिया जाता है।
अद्यतन‎

अन्तरराष्ट्रीय निर्धनता उन्मूलन दिवस (अंग्रेज़ी: International Day for the Eradication of Poverty) पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने 1993 में मनाया था, तत्पश्चात प्रत्येक वर्ष 17 अक्टूबर को अन्तरराष्ट्रीय निर्धनता उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 दिसम्बर, 1992 को प्रस्ताव पारित किया था। इसका प्रमुख उद्देश्य विकासशील देशों में निर्धनता को समाप्त करना है। इस दिवस के द्वारा निर्धनता में रह रहे लोगों के साथ सक्रीय साझेदारी के द्वारा उन्हें निर्धनता से बाहर लाने के प्रयास पर बल दिया जाता है।

निर्धनता में बढ़ोत्तरी

यूं तो यह दिन विश्व में 1993 से ही मनाया जा रहा है लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि विश्व में आज भी गरीबों की संख्या कम नहीं हुई बल्कि बढ़ी ही और गरीबी तो और भी ज्यादा बढ़ी है। भारत में भी गरीबी के हालात कुछ खास अच्छे नहीं हैं।[1]

भारत में गरीबी

भारत की बात की जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां जरूरत गरीबी हटाने की थी लेकिन गरीबों को हटाने का प्रयास किया गया। चाहे आजादी से पहले की बात हो या आजादी के बाद, हालात हमेशा बदस्तूर बेकार ही रहे। गरीबी एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर तलाशने की कोशिश आजादी के बाद से निरंतर जारी है, लेकिन यह सवाल सुलझने की बजाय अधिक पेचीदा होता नजर आता है। आजादी के समय देश की कुल आबादी 32 करोड़ थी और इसमें से 20 करोड़ लोग गरीब थे। आजादी के बाद तमाम आर्थिक विकास और गरीबी निवारण योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या कम नहीं हुई, बल्कि यह बढ़कर आज 40 करोड़ पहुंच गई है। यह संख्या कम न होना चिंता की बात है और इस पर विचार करने का भी सवाल है कि कमी कहां रह गई? आज सारा ध्यान इस बात पर लगा दिया गया है कि गरीब किसे मानें और किसे नहीं?

गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम

गरीबी उन्मूलन के नाम से संचालित एक दर्जन से अधिक योजनाएं आज भी संचालित की जा रही हैं। चाहे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनुदान पर खाद्यान्न का वितरण किया जा रहा हो या फिर खाद्य बीज, रसोई गैस, केरोसिन, चीनी आदि पर अनुदान दिया जा रहा है। आत्मा योजना के तहत किसानों को कृषि को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए निःशुल्क प्रशिक्षण दिए जाने तथा गरीबों के बच्चों को मानदेय आदि के बाद भी गरीबों की संख्या में वृद्धि होना चिंताजनक है।[1]

आखिर क्या है वजह

अगर सूत्रों की मानें तो गरीबी उन्मूलन के लिए चलाई जा रही योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है, इन योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं मिल पाता। देश में कभी इंदिरा गांधी ने 'गरीबी हटाओ' का भी नारा उछाला था। सत्ता में तो तब इंदिरा गांधी आ गईं पर गरीबी तब से अब तक बढ़ी ही है। भारत में आज एक अरब से अधिक आबादी प्रत्यक्ष गरीबी से जूझ रही है और ऐसे में भारत के भविष्य को संवारने का जिम्मा लेने वाला नीति आयोग 32 और 26 रुपए खर्च करने वालों को गरीब नहीं मानता। अगर देश से गरीबी को हटाना है तो सबसे जरूरी है कि बड़े पैमाने पर गरीबों के बीच उनके अधिकारों की जागरुकता फैलाई जाए। साथ ही राजनैतिक स्तर पर नैतिकता को मजबूत करना होगा जो उस गरीबी को देख सके, जिसकी आग में छोटे बच्चों का भविष्य तेज धूप में सड़कों पर भीख मांग कर कट रहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 गरीब कौन है पहले यह तो तय कर लो (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2022।

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