अन्तरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस
अन्तरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस (अंग्रेज़ी: International Equal Pay Day) प्रत्येक वर्ष 18 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन का उद्घाटन संस्करण वर्ष 2020 में मनाया गया। अन्तरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस का उद्देश्य समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन प्राप्त करना और महिलाओं व लड़कियों के खिलाफ भेदभाव सहित सभी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ दीवारों को तोड़ना है।
इतिहास
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 नवंबर, 2019 को '18 सितंबर' को अन्तरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस के रूप में मनाने के लिए एक प्रस्ताव अपनाया, जिसे 'समान वेतन अन्तरराष्ट्रीय गठबंधन' (Equal Pay International Coalition - EPIC) द्वारा पेश किया गया था। प्रस्ताव को कुल 105 सदस्य देशों द्वारा सह-प्रायोजित किया गया। साथ ही श्रमिकों और नियोक्ताओं के संगठनों और व्यवसायों के योगदान को मान्यता देते हुए, संकल्प ने समान वेतन प्राप्त करने के लिए ईपीआईसी के कार्य और योगदान को भी स्वीकार किया।[1]
वेतन असमानता
हम लगभग 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं लेकिन आज भी मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। आज भी महिलाएं और लड़कियां लैगिंक भेद का शिकार होती हैं। समान काम के लिए भी महिलाओं को बराबर वेतन नहीं दिया जाना कौन से विकसित देश की परिभाषा है? जिसके लिए एक पहल शुरू गई, हर साल 18 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस मनाया जाता है। गौरतलब है विश्वभर में महिलाओं को समान काम के लिए कम वेतन दिया जाना एक आम बात मानी जाती है। यह जानकर आश्चर्य होगा कि संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार समूची दुनिया में आज भी महिलाओं को पुरुषों से करीब 23 फीसदी वेतन कम मिलता है। महिला और पुरुष के बीच इस खाई को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक करीब 257 साल लग सकते हैं। जिस तरह से असमान वेतन महिलाओं को दिया जाता है इससे भेदभाव की खाई और भी अधिक गहरी होने लगेगी। लोगों को जागरूक करने के लिए 'संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन' द्वारा #stoptherobbery अभियान चलाया गया था।[1]
भारतीय परिदृश्य
जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका अनिवार्य होती है। धोती पहनने वाले महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई के दौरान दृढ़ता से माना कि महिलाओं की मुक्ति के बिना भारत को विदेशी शासन से मुक्त नहीं किया जा सकता। आज हम एक आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देखते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि हमारा सपना तब तक हकीकत में नहीं बदल सकता, जब तक हमें समान काम के लिए समान वेतन नहीं मिलता। विश्व आर्थिक मंच कहना है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर भुगतान करने में 100 साल लगेंगे। विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2020 ने भारत को 153 देशों में से 112वां स्थान दिया था, जो 2018 की तुलना में चार स्थान कम है।[1]
वेतन अंतर के कारण
मार्च 2019 में प्रकाशित मॉन्स्टर सैलरी इंडेक्स (एमएसआई) के अनुसार देश में महिलाएं पुरुषों की तुलना में 19 प्रतिशत कम कमाती हैं। सर्वेक्षण से पता चला है कि 2018 में भारत में पुरुषों के लिए औसत सकल प्रति घंटा वेतन ₹242.49 था, जबकि महिलाओं के लिए ₹196.3, यानी पुरुषों ने महिलाओं की तुलना में ₹46.19 अधिक कमाया। सर्वेक्षण के अनुसार प्रमुख उद्योगों में लिंग वेतन अंतर फैला हुआ है। आईटी सेवाओं ने पुरुषों के पक्ष में 26 प्रतिशत का तेज वेतन अंतर दिखाया है। जबकि विनिर्माण क्षेत्र में, पुरुष महिलाओं की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक कमाते हैं। असंगठित क्षेत्र में और विशेष रूप से कृषि जैसे क्षेत्रों में क्षमता में अंतर का हवाला देते हुए महिलाओं को नियमित रूप से पुरुषों की तुलना में काफी कम भुगतान किया जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2
अन्तरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस (हिंदी) hindicurrentaffairs.adda247.com। अभिगमन तिथि: 20 सितम्बर, 2021। Cite error: Invalid
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