अलाउद्दीन ख़ाँ: Difference between revisions
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==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
अलाउद्दीन ख़ाँ का जन्म सन 1881 में शिवपुर गांव में हुआ था जो [[भारत]] की आज़ादी के बाद [[बांग्लादेश]] में चला गया था। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ के पिता का नाम हुसैन ख़ाँ था, जिसे लोग साधू ख़ाँ के नाम से भी जानते थे। महान उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ भारतीय संगीत के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की नींव रखी थी। इस घराने का का नाम मैहर राज्य की वजह से पड़ा जहाँ उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने अपना ज़्यादातर जीवन बिताया था। | अलाउद्दीन ख़ाँ का जन्म सन 1881 में शिवपुर गांव में हुआ था जो [[भारत]] की आज़ादी के बाद [[बांग्लादेश]] में चला गया था। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ के पिता का नाम हुसैन ख़ाँ था, जिसे लोग साधू ख़ाँ के नाम से भी जानते थे। महान उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ भारतीय संगीत के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की नींव रखी थी। इस घराने का का नाम मैहर राज्य की वजह से पड़ा जहाँ उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने अपना ज़्यादातर जीवन बिताया था। वे अज़ीम उस्ताद वज़ीर खान के शागिर्द थे। वज़ीर खान सेनिया घराने की एक शाखा के वंशज थे, जिसका उदगम [[तानसेन|मियां तानसेन]] की पुत्री की ओर से हुआ था। | ||
[[चित्र:Ustad Alauddin Khan.jpg|thumb|left|उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ]] | |||
==लोकप्रिय संगीतकार== | ==लोकप्रिय संगीतकार== | ||
उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ दरबारी संगीतकार होने के बावजूद आमजनों में संगीत को लोकप्रिय बनाने का जतन करते रहते थे। उन्होंने कुछ लोगों को विविध वाद्ययंत्र बजाना सिखाना शुरू किया, इन वाद्ययंत्रों में कई तो उन्होंने ही बनाए थे। [[सितार]] और सरोद के मेल से बैंजो सितार, बंदूक की नलियों से नलतरंग, उनकी मौलिक रचनाओं में शामिल हैं। 90 साल पुराने मैहर बैंड को अब 'वाद्य-वृंद' के रूप में जाना जाता है, वाद्य-वृंद में [[हारमोनियम]], [[वायलिन]], सितार, [[तबला]], नलतरंग, इसराज जैसे वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। उस्ताद | उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ दरबारी संगीतकार होने के बावजूद आमजनों में संगीत को लोकप्रिय बनाने का जतन करते रहते थे। उन्होंने कुछ लोगों को विविध वाद्ययंत्र बजाना सिखाना शुरू किया, इन वाद्ययंत्रों में कई तो उन्होंने ही बनाए थे। [[सितार]] और सरोद के मेल से बैंजो सितार, बंदूक की नलियों से नलतरंग, उनकी मौलिक रचनाओं में शामिल हैं। 90 साल पुराने मैहर बैंड को अब 'वाद्य-वृंद' के रूप में जाना जाता है, वाद्य-वृंद में [[हारमोनियम]], [[वायलिन]], सितार, [[तबला]], नलतरंग, इसराज जैसे वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। विश्वविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर प्रारंभ के दिनों में एक नर्तक के रूप में विख्यात थे। तब वह रवींद्र शंकर के नाम से जाने जाते थे। कम लोग यह बात जानते होंगे कि सितार और सुरबहार की बारीकियां और तकनीकियों में दक्षता पंडित रविशंकर ने अपने गुरु बाबा उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ से हासिल की थी। मशहूर फिल्मकार संजय काक ने उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ पर केन्द्रित एक डाक्यूमेंट्री का भी निर्माण किया था। गाड़ी लोहरदगा मेल नाम की इस डॉक्यूमेंट्री को जिसने भी देखा वो उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ के मुरीद होकर रह गए। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत के बहुत बडे विद्वान थे। संगीत सीखने और उससे संबंधित विचार-विमर्श करने के लिए लोग उनके पास बहुत दूर-दूर से आया करते थे। उनमें अमीर भी होते थे और ग़रीब भी। वह सभी को समान भाव से संगीत की शिक्षा दिया करते थे।<ref name="samvad"/> | ||
==वादन शैली== | |||
उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने [[ध्रुपद]] अंग पर आधारित अपनी स्वयं की शैली विकसित की जिसमें उपसंहार झाला समेत अलाप के विभिन्न चरणों का विस्तृत निष्पादन होता था। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने धुन के पद्यात्मक पाठ की भी शुरूआत की जो संपूर्ण [[राग]] के निष्पादन पश्चात प्रस्तुत होता था। इस शैली को [[अली अकबर खान|उस्ताद अली अकबर खान]], [[रविशंकर|पंडित रविशंकर]], श्रीमती अन्नपूर्णा जी और [[निखिल बैनर्जी]] ने और भी विकसित किया। इतना ही नहीं उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने सा से प्रारंभ होने वाली द्रुत गतों की एक विशिष्ट संरचना भी की।<ref name="samvad">{{cite web |url= http://samwadia.blogspot.in/2011/03/blog-post_15.html|title= उस्तादों के उस्ताद "बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ" |accessmonthday=3 सितम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=संवादिया (ब्लॉग) |language= हिंदी}} </ref> | |||
====मदनमंजरी राग==== | |||
एक बार की बात है उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ अपनी पत्नी मदीना बेगम के नाम पर एक नया राग रचने बैठे। लिकिन उन्हें उस राग का नाम ही समझ में नहीं आ रहा था। काफी सोच विचार करने के बाद उन्होंने जिस राग की रचना की उसे आज संगीत के जानकार मदनमंजरी राग के नाम से जानते हैं।<ref name="samvad"/> | |||
==सम्मान और पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
[[शास्त्रीय संगीत|भारतीय शास्त्रीय संगीत]] अपने वास्तविक स्वरूप में जीवित रहे और वक़्त के साथ इसका विकास होता रहे, इसके लिए उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने मैहर कॉलेज ऑफ म्यूजिक की स्थापना की। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ को [[1952]] में [[संगीत नाटक अकादमी]] की ओर से पुरस्कृत किया गया था। इतना ही नहीं भारत सरकार ने उन्हें [[पद्म भूषण]] और [[पद्म विभूषण]] से भी सुशोभित किया। | |||
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Revision as of 10:02, 3 September 2013
अलाउद्दीन ख़ाँ
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पूरा नाम | उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ |
प्रसिद्ध नाम | अलाउद्दीन ख़ाँ |
अन्य नाम | बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ |
जन्म | सन 1881 |
जन्म भूमि | बांग्लादेश |
मृत्यु | 6 सितम्बर, 1972 |
पति/पत्नी | मदीना बेगम |
संतान | अली अकबर ख़ाँ |
कर्म-क्षेत्र | संगीतकार, सरोद वादक |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्म विभूषण |
विशेष योगदान | इन्होंने भारतीय संगीत के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की भी नींव रखी थी। |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | पन्नालाल घोष, अली अकबर ख़ाँ, अमजद अली ख़ाँ, शिवकुमार शर्मा |
अन्य जानकारी | अलाउद्दीन ख़ाँ ने पंडित रविशंकर और अल्ला रक्खा ख़ाँ को भी शास्त्रीय संगीत सिखाया था। |
अलाउद्दीन ख़ाँ (अंग्रेज़ी: Allauddin Khan, जन्म: सन 1881 - मृत्यु: 6 सितम्बर, 1972) सरोद वादक थे और उन्होंने भारतीय संगीत के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की भी नींव रखी थी। अलाउद्दीन ख़ाँ को सन 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उस्ताद अली अकबर ख़ाँ भारत में शास्त्रीय संगीत परंपरा के पितामह कहे जाने वाले बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ साहेब के बेटे हैं, उन्हीं के संरक्षण में मैहर घराने की विरासत संभालते हुए अली अकबर ख़ान ने अपने पिता से संगीत सीखा। अलाउद्दीन ख़ाँ ने पंडित रविशंकर और अल्ला रक्खा ख़ाँ को भी शास्त्रीय संगीत सिखाया था। इन्होंने संगीत को देश के बाहर पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार करने का काम किया था।
जीवन परिचय
अलाउद्दीन ख़ाँ का जन्म सन 1881 में शिवपुर गांव में हुआ था जो भारत की आज़ादी के बाद बांग्लादेश में चला गया था। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ के पिता का नाम हुसैन ख़ाँ था, जिसे लोग साधू ख़ाँ के नाम से भी जानते थे। महान उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ भारतीय संगीत के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की नींव रखी थी। इस घराने का का नाम मैहर राज्य की वजह से पड़ा जहाँ उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने अपना ज़्यादातर जीवन बिताया था। वे अज़ीम उस्ताद वज़ीर खान के शागिर्द थे। वज़ीर खान सेनिया घराने की एक शाखा के वंशज थे, जिसका उदगम मियां तानसेन की पुत्री की ओर से हुआ था। thumb|left|उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ
लोकप्रिय संगीतकार
उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ दरबारी संगीतकार होने के बावजूद आमजनों में संगीत को लोकप्रिय बनाने का जतन करते रहते थे। उन्होंने कुछ लोगों को विविध वाद्ययंत्र बजाना सिखाना शुरू किया, इन वाद्ययंत्रों में कई तो उन्होंने ही बनाए थे। सितार और सरोद के मेल से बैंजो सितार, बंदूक की नलियों से नलतरंग, उनकी मौलिक रचनाओं में शामिल हैं। 90 साल पुराने मैहर बैंड को अब 'वाद्य-वृंद' के रूप में जाना जाता है, वाद्य-वृंद में हारमोनियम, वायलिन, सितार, तबला, नलतरंग, इसराज जैसे वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। विश्वविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर प्रारंभ के दिनों में एक नर्तक के रूप में विख्यात थे। तब वह रवींद्र शंकर के नाम से जाने जाते थे। कम लोग यह बात जानते होंगे कि सितार और सुरबहार की बारीकियां और तकनीकियों में दक्षता पंडित रविशंकर ने अपने गुरु बाबा उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ से हासिल की थी। मशहूर फिल्मकार संजय काक ने उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ पर केन्द्रित एक डाक्यूमेंट्री का भी निर्माण किया था। गाड़ी लोहरदगा मेल नाम की इस डॉक्यूमेंट्री को जिसने भी देखा वो उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ के मुरीद होकर रह गए। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत के बहुत बडे विद्वान थे। संगीत सीखने और उससे संबंधित विचार-विमर्श करने के लिए लोग उनके पास बहुत दूर-दूर से आया करते थे। उनमें अमीर भी होते थे और ग़रीब भी। वह सभी को समान भाव से संगीत की शिक्षा दिया करते थे।[1]
वादन शैली
उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने ध्रुपद अंग पर आधारित अपनी स्वयं की शैली विकसित की जिसमें उपसंहार झाला समेत अलाप के विभिन्न चरणों का विस्तृत निष्पादन होता था। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने धुन के पद्यात्मक पाठ की भी शुरूआत की जो संपूर्ण राग के निष्पादन पश्चात प्रस्तुत होता था। इस शैली को उस्ताद अली अकबर खान, पंडित रविशंकर, श्रीमती अन्नपूर्णा जी और निखिल बैनर्जी ने और भी विकसित किया। इतना ही नहीं उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने सा से प्रारंभ होने वाली द्रुत गतों की एक विशिष्ट संरचना भी की।[1]
मदनमंजरी राग
एक बार की बात है उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ अपनी पत्नी मदीना बेगम के नाम पर एक नया राग रचने बैठे। लिकिन उन्हें उस राग का नाम ही समझ में नहीं आ रहा था। काफी सोच विचार करने के बाद उन्होंने जिस राग की रचना की उसे आज संगीत के जानकार मदनमंजरी राग के नाम से जानते हैं।[1]
सम्मान और पुरस्कार
भारतीय शास्त्रीय संगीत अपने वास्तविक स्वरूप में जीवित रहे और वक़्त के साथ इसका विकास होता रहे, इसके लिए उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने मैहर कॉलेज ऑफ म्यूजिक की स्थापना की। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ को 1952 में संगीत नाटक अकादमी की ओर से पुरस्कृत किया गया था। इतना ही नहीं भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सुशोभित किया।
- सम्मान सूची
- सन 1958 में पद्म भूषण
- 1952 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- सन 1971 में पद्म विभूषण
निधन
अलाउद्दीन ख़ाँ की मृत्यु 6 सितम्बर, 1972 में हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 उस्तादों के उस्ताद "बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ" (हिंदी) संवादिया (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 3 सितम्बर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख