भील: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "मजदूर" to "मज़दूर")
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Bhil-family.jpg|भील परिवार|thumb|250px]]  
[[चित्र:Bhil-family.jpg|भील परिवार|thumb|250px]]  
'''भील''' [[भारत]] की एक प्रमुख जनजाति हैं। यह जाति [[राजस्थान]] राज्य की मुख्य जातियों में से एक है। इस जाति के लगभग 39 प्रतिशत लोग, जो राजस्थान में बनस्वारा गाँव में बसते हैं, वे सभी भील जाति के हैं। यह [[भारत]] की तीसरी बड़ी आदिवासी जाति है। आर्थिक रूप से इस जाति के लोग स्थायी रूप से कृषक, सामाजिक दृष्टि से पितृ-सत्तात्मक जनजाति एवं परम्परागत रूप से एक अच्छे तीरंदाज होते हैं। वर्तमान समय में यह जनजाति विकास के विभन्न चरणों में मानी जाती है। [[मध्य प्रदेश]] के भील 'जरायम पेशा'घुमक्कड़ हैं, [[ख़ानदेश]] के कृषक, [[गुजरात]] के आखेटक और कृषक तथा राजस्थान और [[महाराष्ट्र]] में ये भ्रमणकारी आखेटक, स्थायी कृषक अथवा मजदूरी में लगे हुए हैं।
'''भील''' [[भारत]] की एक प्रमुख जनजाति हैं। यह जाति [[राजस्थान]] राज्य की मुख्य जातियों में से एक है। इस जाति के लगभग 39 प्रतिशत लोग, जो राजस्थान में बनस्वारा गाँव में बसते हैं, वे सभी भील जाति के हैं। यह [[भारत]] की तीसरी बड़ी आदिवासी जाति है। आर्थिक रूप से इस जाति के लोग स्थायी रूप से कृषक, सामाजिक दृष्टि से पितृ-सत्तात्मक जनजाति एवं परम्परागत रूप से एक अच्छे तीरंदाज होते हैं। वर्तमान समय में यह जनजाति विकास के विभन्न चरणों में मानी जाती है। [[मध्य प्रदेश]] के भील 'जरायम पेशा'घुमक्कड़ हैं, [[ख़ानदेश]] के कृषक, [[गुजरात]] के आखेटक और कृषक तथा राजस्थान और [[महाराष्ट्र]] में ये भ्रमणकारी आखेटक, स्थायी कृषक अथवा मज़दूरी में लगे हुए हैं।
==स्त्रियाँ==
==स्त्रियाँ==
भील जाति की स्त्रियाँ बहुत ही संकीर्ण विचारों की होती हैं, परन्तु उन को [[हाथी]] दाँत, लाख, [[चाँदी]] और काँसे के गहने पहनने का बहुत शौक़ होता है। किसी भी भील औरत को ज़रूरी गहनों के बिना कभी नहीं देखा जा सकता। वह सदैव ही कुछ न कुछ गहने के रूप में अवश्य पहने रहती हैं। 'बोरला', जिसे वे माथे पर पहनती हैं; 'झीला', जो सिर के सिरे से कानों पर लटकते हैं। फिर 'पंडे', जो [[कान]] के बाहरी उपरी हिस्से में तीन की संख्या में पहने जाते हैं; फिर 'कर्णफूल' जो कानों में छेद कराकर पहने जाते हैं; फिर 'तुस्सा' या 'बज़ार बट्टी' अर्थात [[चूड़ी|चूड़ियाँ]] भी होती हैं। इस जाति के लोगों में चाहे लड़की हो या लड़का पढ़ाने के लिए किसी को भी उत्साहित नहीं किया जाता है। इसलिए उनके शिक्षित होने की संख्या बहुत ही कम पाई जाती है। इसी कारण लोग उनका फ़ायदा उठाते हैं और वे एक प्रकार के बन्धुवा मज़दूरों के समान काम करते हैं।
भील जाति की स्त्रियाँ बहुत ही संकीर्ण विचारों की होती हैं, परन्तु उन को [[हाथी]] दाँत, लाख, [[चाँदी]] और काँसे के गहने पहनने का बहुत शौक़ होता है। किसी भी भील औरत को ज़रूरी गहनों के बिना कभी नहीं देखा जा सकता। वह सदैव ही कुछ न कुछ गहने के रूप में अवश्य पहने रहती हैं। 'बोरला', जिसे वे माथे पर पहनती हैं; 'झीला', जो सिर के सिरे से कानों पर लटकते हैं। फिर 'पंडे', जो [[कान]] के बाहरी उपरी हिस्से में तीन की संख्या में पहने जाते हैं; फिर 'कर्णफूल' जो कानों में छेद कराकर पहने जाते हैं; फिर 'तुस्सा' या 'बज़ार बट्टी' अर्थात [[चूड़ी|चूड़ियाँ]] भी होती हैं। इस जाति के लोगों में चाहे लड़की हो या लड़का पढ़ाने के लिए किसी को भी उत्साहित नहीं किया जाता है। इसलिए उनके शिक्षित होने की संख्या बहुत ही कम पाई जाती है। इसी कारण लोग उनका फ़ायदा उठाते हैं और वे एक प्रकार के बन्धुवा मज़दूरों के समान काम करते हैं।

Revision as of 14:58, 6 April 2015

भील परिवार|thumb|250px भील भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं। यह जाति राजस्थान राज्य की मुख्य जातियों में से एक है। इस जाति के लगभग 39 प्रतिशत लोग, जो राजस्थान में बनस्वारा गाँव में बसते हैं, वे सभी भील जाति के हैं। यह भारत की तीसरी बड़ी आदिवासी जाति है। आर्थिक रूप से इस जाति के लोग स्थायी रूप से कृषक, सामाजिक दृष्टि से पितृ-सत्तात्मक जनजाति एवं परम्परागत रूप से एक अच्छे तीरंदाज होते हैं। वर्तमान समय में यह जनजाति विकास के विभन्न चरणों में मानी जाती है। मध्य प्रदेश के भील 'जरायम पेशा'घुमक्कड़ हैं, ख़ानदेश के कृषक, गुजरात के आखेटक और कृषक तथा राजस्थान और महाराष्ट्र में ये भ्रमणकारी आखेटक, स्थायी कृषक अथवा मज़दूरी में लगे हुए हैं।

स्त्रियाँ

भील जाति की स्त्रियाँ बहुत ही संकीर्ण विचारों की होती हैं, परन्तु उन को हाथी दाँत, लाख, चाँदी और काँसे के गहने पहनने का बहुत शौक़ होता है। किसी भी भील औरत को ज़रूरी गहनों के बिना कभी नहीं देखा जा सकता। वह सदैव ही कुछ न कुछ गहने के रूप में अवश्य पहने रहती हैं। 'बोरला', जिसे वे माथे पर पहनती हैं; 'झीला', जो सिर के सिरे से कानों पर लटकते हैं। फिर 'पंडे', जो कान के बाहरी उपरी हिस्से में तीन की संख्या में पहने जाते हैं; फिर 'कर्णफूल' जो कानों में छेद कराकर पहने जाते हैं; फिर 'तुस्सा' या 'बज़ार बट्टी' अर्थात चूड़ियाँ भी होती हैं। इस जाति के लोगों में चाहे लड़की हो या लड़का पढ़ाने के लिए किसी को भी उत्साहित नहीं किया जाता है। इसलिए उनके शिक्षित होने की संख्या बहुत ही कम पाई जाती है। इसी कारण लोग उनका फ़ायदा उठाते हैं और वे एक प्रकार के बन्धुवा मज़दूरों के समान काम करते हैं।

शारीरिक रचना

thumb|250px|भील जनजाति के लोग भील सामान्यत: छोटे क़द के होते हैं, औसत मध्यम क़द 163 सेमी. का, सिर की लम्बाई 181.1 सेमी. तथा चौड़ाई 137.4 सेमी. होती है। कपाल निर्देशांक मध्यम, नाक मध्यम रूप से चौडी होती है। चेहरा गोलाई लिए चौड़ा और शरीर पूर्णत: विकिसित होता है। इनका रंग हल्के भूरे से गहरा काला, बाल चिकने तथा काले, किंतु घुंघराले नहीं होते। आँख का रंग कत्थई से गहरा भूरा होता है। आँख की पुतली बड़ी, सिर सीधा और चौड़ा, होंठ पतले से मोटे, ठुड्डी गोल से अण्डाकार तक, दाढ़ी-मूँछ कम, शरीर पर बाल कम, भौंहों के ऊपर की हड्डियाँ, पूर्णत: विकसित और शरीर सुगठित होता है। भील स्त्रियों का रंग सुन्दर, हल्का गेहूँआ, सुगठित शरीर, गोल चेहरा, पतले होंठ, सामान्यत: छरहरा-भरा बदन होता है। ये हंसमुख, मृदुभाषी और चलते समय बड़ी आकर्षक लगती हैं।

भोजन

इस जाति के लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ, चावल, मक्का, कोदों, दाल तथा सब्ज़ियाँ आदि होती हैं। उत्सव के अवसर पर अथवा शिकार करने पर बकरे या भैंसे का मांस, मुर्गी के अण्डे, मछलियाँ भी खायी जाती हैं। यदा-कदा दूध अथवा छाछ का भी प्रयोग किया जाता है। ये दो बार भोजन करते हैं। प्रात:काल के भोजन में चावल, कोदों तथा सब्जी या दाल खाते हैं और शाम को मक्का की रोटी तथा प्याज या कोई सब्जी। महुआ की बनी शराब तथा ताड़ का रस खूब पिया जाता है। तम्बाकू और गाँजे का भी सेवन किया जाता है। महुआ के फल, सीताफल, आम, बेर आदि का उपयोग भी किया जाता है।

शिक्षा की स्थिति

भील लोग स्वभाव से निडर, ईमानदारी, अतिथि सत्कार करने वाले, अपने वचन के पक्के और सीधे-सादे होते है, किंतु वर्तमान में उनका सम्पर्क नगरीय क्षेत्रों से होने के कारण अब वे भी बहुत चतुर, चालाक बन गए हैं। इनमें शिक्षा का प्रचार भी हो गया है। आधुनिक वेश-भूषा भी ये लोग पहनने लगे हैं तथा अधिक सभ्य होते जा रहे हैं। हालाँकि वे पिछड़ी हुई जाति के हैं और बहुत ही निर्धन होते हैं, तौ भी अपनी आँखों की चमक से हमेशा ये हँसमुख और खुशहाल प्रतीत होते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख