नौशाद: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
(21 intermediate revisions by 5 users not shown) | |||
Line 9: | Line 9: | ||
|मृत्यु=[[5 मई]], [[2006]] | |मृत्यु=[[5 मई]], [[2006]] | ||
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] | |मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] | ||
| | |अभिभावक= | ||
|पति/पत्नी= | |पति/पत्नी= | ||
|संतान= | |संतान= | ||
Line 15: | Line 15: | ||
|कर्म-क्षेत्र=संगीतकार | |कर्म-क्षेत्र=संगीतकार | ||
|मुख्य रचनाएँ='प्यार किया तो डरना क्या..', 'ओ दुनिया के रखवाले..', 'मधुबन में राधिका नाचे रे..' आदि | |मुख्य रचनाएँ='प्यार किया तो डरना क्या..', 'ओ दुनिया के रखवाले..', 'मधुबन में राधिका नाचे रे..' आदि | ||
|मुख्य फ़िल्में=बैजू बावरा, [[ | |मुख्य फ़िल्में=[[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]], [[मुग़ल-ए-आज़म]], अनमोल घड़ी, शारदा आदि। | ||
|विषय= | |विषय= | ||
|शिक्षा= | |शिक्षा= | ||
|विद्यालय= | |विद्यालय= | ||
|पुरस्कार-उपाधि=[[दादा साहब फालके पुरस्कार]], [[पद्म भूषण]], [[राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान|लता मंगेशकर सम्मान]], संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार | |पुरस्कार-उपाधि=[[दादा साहब फालके पुरस्कार]], [[पद्म भूषण]], [[राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान|लता मंगेशकर सम्मान]], [[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] | ||
|प्रसिद्धि= | |प्रसिद्धि= | ||
|विशेष योगदान= | |विशेष योगदान= | ||
Line 28: | Line 28: | ||
|शीर्षक 2= | |शीर्षक 2= | ||
|पाठ 2= | |पाठ 2= | ||
|अन्य जानकारी=64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 | |अन्य जानकारी=64 [[साल]] बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फ़िल्मों में ही [[संगीत]] दिया। | ||
|बाहरी कड़ियाँ= | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''नौशाद अली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Naushad Ali'', जन्म: 25 दिसंबर, 1919 – मृत्यु: 5 मई, 2006) हिन्दी | '''नौशाद अली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Naushad Ali'', जन्म: [[25 दिसंबर]], [[1919]] – मृत्यु: [[5 मई]], [[2006]]) [[हिन्दी फ़िल्म|हिन्दी फ़िल्मों]] के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। पहली फ़िल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फ़िल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि गुणवत्ता संख्याबल से कहीं आगे होती है। [[भारतीय सिनेमा]] को समृद्ध बनाने वाले संगीतकारों की कमी नहीं है लेकिन नौशाद अली के संगीत की बात ही अलग थी। नौशाद ने फ़िल्मों की संख्या को कभी तरजीह नहीं देते हुए केवल संगीत को ही परिष्कृत करने का काम किया। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
हम जिन्हें संगीतकार नौशाद के नाम जानते हैं, उनका सही नाम था नौशाद अली। उन्हें संगीत से लगाव बचपन में ही हो गया था। चौथे दशक में वे | हम जिन्हें संगीतकार नौशाद के नाम जानते हैं, उनका सही नाम था नौशाद अली। उन्हें [[संगीत]] से लगाव बचपन में ही हो गया था। चौथे दशक में वे फ़िल्मों से जुडे़, लेकिन इससे पहले उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी थी। सिनेमा [[संगीत]] को हिंदुस्तानियत का जामा पहनाने वाले नौशाद का जन्म तहजीब और नज़ाकत के लिए मशहूर नवाबों के शहर [[लखनऊ]] में [[25 दिसंबर]] [[1919]] को हुआ था। | ||
घरवालों का मुख्य काम था मुंशीगीरी, लेकिन बालक नौशाद का मन तो पूरी तरह संगीत में बसता था। जब वे नौ साल के थे, तब लखनऊ के अमीनाबाद के मुख्य बाज़ार की एक दुकान, जहाँ [[वाद्ययंत्र]] बिकते थे, के क़रीब वे रोज जाने लगे। जब कई [[दिन|दिनों]] तक ऐसा हुआ, तो मालिक ने एक दिन पूछ ही लिया। बातचीत के बाद नौशाद ने वहाँ काम करना स्वीकार लिया। उनका काम हुआ दुकान खुलने के समय से लेकर अन्य स्टाफ के आने से पहले की साफ-सफाई। नौशाद को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी। वे रोज समय से आते और दुकान खुलवाकर सभी वाद्ययंत्रों की अच्छी तरह सफाई करते और उन्हें जी भर कर छूते। कुछ वक्त तो ऐसे ही बीत गया। | |||
एक दिन दुकान खोलने वाले स्टाफ ने नौशाद से कहा, भइया.., तुम जब तक साफ़ सफाई करो, मैं तब तक [[चाय]] पीकर आता हूं। नौशाद ने कहा, जी ठीक है। वे उधर गए, नौशाद ने मौका देखकर वाद्ययंत्रों पर हाथ आजमाना शुरू कर दिया। एक दिन उस साज पर तो दूसरे दिन दूसरे और फिर तीसरे दिन तीसरे साज पर..। इसी तरह हर रोज़ स्टाफ चाय पीने जाता और नौशाद रियाज़ में लग जाते। यह रोज का काम हो गया। यह सब [[महीना|महीनों]] तक चला। | |||
एक दिन वह भी आया, जब मालिक समय से पहले आ धमका और नौशाद [[हारमोनियम]] बजाते पकड़े गए। नौशाद डरे हुए थे, उनकी हालत खराब थी। ठंड के समय में पसीना आ निकला था, लेकिन मालिक ऊपर से गुस्सैल बना रहा, वह अंदर से खुश था। पूछताछ के बाद अंत में मालिक ने वह पेटी यानी हारमोनियम नौशाद को दे दी और कहा, अच्छा बजाते हो, खूब रियाज़ करना..।<ref name="Jagran">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8370.html |title=..जब नौशाद ने घर छोड़ दिया |accessmonthday=22 सितंबर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी }}</ref> | |||
==फ़िल्मी सफर== | ==फ़िल्मी सफर== | ||
====संगीत की शुरुआत==== | ====संगीत की शुरुआत==== | ||
नौशाद का घर लखनऊ के अकबरी गेट के कांधारी | नौशाद का घर लखनऊ के अकबरी गेट के कांधारी बाज़ार, झंवाई टोला में था। वे लाटूस रोड पर अपने उस्ताद उमर अंसारी से संगीत सीखने लगे, इस बात से उनके वालिद नाराज़ रहते थे। अंत में बात यहां तक हो गई कि वालिद ने कह दिया कि अगर संगीत को अपनाओगे तो घर छोड़ दो। नौशाद ने मन में यह बात ठान ली कि घर छोड़ना सही होगा, लेकिन संगीत नहीं..। वे संगीत को अपनाए रहे। उनका अब मूल काम गाना-बाजाना हो गया। हालांकि उन पर कुछ कुछ समय बाद कई बार पाबंदियां लगीं, घर के दरवाज़े बंद किए गए, लेकिन नौशाद ने [[दादी]] का सहारा लिया और संगीत का शौक़ जारी रखा। उनके पांव और ख़्वाब उनके [[पिता]] कभी नहीं रोक सके। इसी बीच उन्होंने मैट्रिक पास किया।<ref name="Jagran"/> | ||
====16 वर्ष की उम्र में मुंबई का रुख==== | ====16 वर्ष की उम्र में मुंबई का रुख==== | ||
मैट्रिक पास करने के बाद वे लखनऊ के विंडसर एंटरटेनर | मैट्रिक पास करने के बाद वे लखनऊ के 'विंडसर एंटरटेनर म्यूज़िकल ग्रुप' के साथ [[दिल्ली]], [[मुरादाबाद]], [[जयपुर]], [[जोधपुर]] और सिरोही की यात्रा पर निकले। जब कुछ समय बाद वह म्यूज़िकल ग्रुप बिखर गया तो नौशाद ने लखनऊ लौटने के बजाए [[मुंबई]] का रुख़ किया और 16 [[वर्ष]] की किशोर उम्र में यानी [[1935]] में वे [[मुंबई]] आ गए। नौशाद के लिए मुंबई उम्मीदों का शहर था। यहां उन्हें पहला ठिकाना के रूप में दादर के ब्रॉडवे सिनेमाघर के सामने का फुटपाथ मिला। तब नौशाद ने सपना देखा था कि कभी इस सिनेमाघर में उनकी कोई फ़िल्म लगेगी। उस किशोर कल्पना को साकार होने में काफ़ी वक़्त लगा। '[[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]]' जब उसी हॉल में रिलीज़ हुई, तो वहां रिलीज़ के समय नौशाद ने कहा, इस सड़क को पार करने में मुझे सत्रह [[साल]] लग गए..। शुरू में नौशाद ने एन. ए. दास यानी नौशाद अली दास के नाम से कुछ संगीतकारों के साथ काम किया। उन्हें काम मिलने लगा था, लेकिन बहुत नहीं।<ref name="Jagran"/> | ||
====पहली फ़िल्म 'प्रेम नगर'==== | ====पहली फ़िल्म 'प्रेम नगर'==== | ||
1940 में बनी 'प्रेम नगर' में नौशाद को पहली बार स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन का मौका मिला। इसके बाद एक और | [[1940]] में बनी 'प्रेम नगर' में नौशाद को पहली बार स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन का मौका मिला। इसके बाद एक और फ़िल्म 'स्टेशन मास्टर' भी सफल रही। उसके बाद तो जैसे नौशाद संगीत के मोतियों की माला-सी बुनते चले गए। नौशाद को पहली बार 'सुनहरी मकड़ी' फ़िल्म में [[हारमोनियम]] बजाने का अवसर मिला। यह फ़िल्म पूरी नहीं हो सकी लेकिन शायद यहीं से नौशाद का सुनहरा सफ़र शुरू हुआ। इसी बीच गीतकार दीनानाथ मधोक (डीएन) से उनकी मुलाकात हुई तो उन्होंने उनका परिचय फ़िल्म इंडस्ट्री के अन्य लोगों से करवाया जिससे नौशाद को छोटा-मोटा काम मिलना प्रारंभ हुआ।<ref name="WDH">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/entertainment-film-glamourdunia/%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AC-%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8-1111230108_1.htm |title=नौशाद अली : अमर संगीत देने वाले नायाब रत्न |accessmonthday=22 सितंबर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref> | ||
====यादगार संगीत==== | ====यादगार संगीत==== | ||
यह नौशाद के संगीत का ही जादू था कि '[[ | यह नौशाद के संगीत का ही जादू था कि '[[मुग़ल-ए-आजम]]', '[[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]]', 'अनमोल घड़ी', 'शारदा', 'आन', 'संजोग' आदि कई फ़िल्मों को न केवल हिट बनाया बल्कि कालजयी भी बना दिया। 'दीदार' के गीत- 'बचपन के दिन भुला न देना', 'हुए हम जिनके लिए बरबाद', 'ले जा मेरी दुआएँ ले जा परदेश जाने वाले' आदि की बदौलत इस फ़िल्म ने लंबे समय तक चलने का रिकॉर्ड क़ायम किया। इसके बाद तो नौशाद की लोकप्रियता में ख़ासा इजाफा हुआ। 'बैजू बावरा' की सफलता से नौशाद को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पहला फ़िल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला। संगीत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए [[1982]] में [[दादा साहब फालके पुरस्कार|फालके अवॉर्ड]], [[1984]] में 'लता अलंकरण' तथा [[1992]] में [[पद्म भूषण]] से उन्हें नवाज़ा गया। <ref name="WDH"/> | ||
<blockquote>नौशाद को [[सुरैया]], अमीरबाई कर्नाटकी, निर्मलादेवी, उमा देवी आदि को प्रोत्साहित कर आगे लाने का श्रेय जाता है। सुरैया को पहली बार उन्होंने 'नई दुनिया' में गाने का मौका दिया। इसके बाद 'शारदा' व 'संजोग' में भी गाने गवाए। सुरैया के अलावा निर्मलादेवी से सबसे पहले 'शारदा' में तथा उमा देवी यानी टुनटुन की आवाज का इस्तेमाल 'दर्द' में 'अफ़साना लिख रही हूँ' के लिए नौशाद ने किया। नौशाद ने ही [[मुकेश]] की दर्दभरी आवाज का इस्तेमाल 'अनोखी अदा' और 'अंदाज' में किया। 'अंदाज' में नौशाद ने [[दिलीप कुमार]] के लिए मुकेश और [[राज कपूर]] के लिए [[मुहम्मद रफ़ी|मो. रफी]] की आवाज का उपयोग किया। 1944 में युवा प्रेम पर आधारित 'रतन' के गाने उस समय के दौर में सुपरहिट हुए थे।<ref name="WDH"/></blockquote> | |||
==प्रसिद्ध गीत== | ==प्रसिद्ध गीत== | ||
* 'मन तरपत हरि दर्शन..' (बैजू बावरा) | * 'मन तरपत हरि दर्शन..' ([[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]]) | ||
* 'ओ दुनिया के रखवाले..' (बैजू बावरा) | * 'ओ दुनिया के रखवाले..' (बैजू बावरा) | ||
* 'झूले में पवन के' (बैजू बावरा) | * 'झूले में पवन के' (बैजू बावरा) | ||
* 'मोहे पनघट पे नंद लाल' ( | * 'मोहे पनघट पे नंद लाल' (मुग़ल-ए-आज़म) | ||
* 'प्यार किया तो डरना क्या..' ( | * 'प्यार किया तो डरना क्या..' (मुग़ल-ए-आज़म) | ||
* 'खुदा निगेबान..' ( | * 'खुदा निगेबान..' (मुग़ल-ए-आज़म) | ||
* 'मधुबन में राधिका नाचे रे..' (कोहिनूर) | * 'मधुबन में राधिका नाचे रे..' (कोहिनूर) | ||
* 'ढल चुकी शाम-ए-गम...' (कोहिनूर) | * 'ढल चुकी शाम-ए-गम...' (कोहिनूर) | ||
Line 63: | Line 66: | ||
====नौशाद और सहगल का एक वाकया==== | ====नौशाद और सहगल का एक वाकया==== | ||
'शाहजहाँ' में हीरो [[कुंदनलाल सहगल]] से नौशाद ने गीत गवाए। उस समय ऐसा माना जाता था कि सहगल बगैर शराब पिए गाने नहीं गा सकते। नौशाद ने सहगल से बगैर शराब पिए एक गाना गाने के लिए कहा तो सहगल ने कहा, 'बगैर पिए मैं सही नहीं गा पाऊँगा।' इसके बाद नौशाद ने सहगल से एक गाना शराब पिए हुए गवाया और उसी गाने को बाद में बगैर शराब पिए गवाया। जब सहगल ने अपने गाए दोनों गाने सुने तब नौशाद से बोले, 'काश! मुझसे तुम पहले मिले होते!' यह गीत कौन-सा था, इसका तो पता नहीं चला लेकिन 'शाहजहाँ' के गीत 'जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे...' तथा 'गम दिए मुस्तकिल, कितना नाजुक है दिल...' कालजयी सिद्ध हुए।<ref name="WDH"/> | 'शाहजहाँ' में हीरो [[कुंदनलाल सहगल]] से नौशाद ने गीत गवाए। उस समय ऐसा माना जाता था कि सहगल बगैर शराब पिए गाने नहीं गा सकते। नौशाद ने सहगल से बगैर शराब पिए एक गाना गाने के लिए कहा तो सहगल ने कहा, 'बगैर पिए मैं सही नहीं गा पाऊँगा।' इसके बाद नौशाद ने सहगल से एक गाना शराब पिए हुए गवाया और उसी गाने को बाद में बगैर शराब पिए गवाया। जब सहगल ने अपने गाए दोनों गाने सुने तब नौशाद से बोले, 'काश! मुझसे तुम पहले मिले होते!' यह गीत कौन-सा था, इसका तो पता नहीं चला लेकिन 'शाहजहाँ' के गीत 'जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे...' तथा 'गम दिए मुस्तकिल, कितना नाजुक है दिल...' कालजयी सिद्ध हुए।<ref name="WDH"/> | ||
===='तुम महान् गायक बनोगे'==== | |||
===='तुम | 'पहले आप' के निर्देशक कारदार मियाँ के पास एक बार सिफारिशी पत्र लेकर एक लड़का पहुँचा। तब उन्होंने नौशाद से कहा कि भाई, इस लड़के के लिए कोई गुंजाइश निकल सकती है क्या। नौशाद ने सहज भाव से कहा, 'फिलहाल तो कोई गुंजाइश नहीं है। हाँ, अलबत्ता इतना ज़रूर है कि मैं इनको कोई समूह (कोरस) में गवा सकता हूँ।' लड़के ने हाँ कर दी। गीत के बोल थे : 'हिन्दू हैं हम हिन्दुस्तां हमारा, हिन्दू-मुस्लिम की आँखों का तारा'। इसमें सभी गायकों को [[लोहा|लोहे]] के जूते पहनाए गए, क्योंकि गाते समय पैर पटक-पटककर गाना था ताकि जूतों की आवाज का इफेक्ट आ सके। उस लड़के के जूते टाइट थे। गाने की समाप्ति पर लड़के ने जूते उतारे तो उसके पैरों में छाले पड़ गए थे। यह सब देख रहे नौशाद ने उस लड़के के कंधे पर हाथ रखकर कहा, 'जब जूते टाइट थे तो तुम्हें बता देना था।' इस पर उस लड़के ने कहा, 'आपने मुझे काम दिया, यही मेरे लिए बड़ी बात है।' तब नौशाद ने कहा था, 'एक दिन तुम महान् गायक बनोगे।' यह लड़का आगे चलकर [[मुहम्मद रफ़ी]] के नाम से जाना गया।<ref name="WDH"/> | ||
'पहले आप' के निर्देशक कारदार मियाँ के पास एक बार सिफारिशी पत्र लेकर एक लड़का पहुँचा। तब उन्होंने नौशाद से कहा कि भाई, इस लड़के के लिए कोई गुंजाइश निकल सकती है क्या। नौशाद ने सहज भाव से कहा, 'फिलहाल तो कोई गुंजाइश नहीं है। हाँ, अलबत्ता इतना | |||
==सम्मान और पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
* सन [[1954]] में 'बैजू बावरा' फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पहला | * सन [[1954]] में '[[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]]' फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार | ||
* संगीत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए [[1982]] में [[दादा साहब फालके पुरस्कार|फालके अवॉर्ड]] | * संगीत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए [[1982]] में [[दादा साहब फालके पुरस्कार|फालके अवॉर्ड]] | ||
* [[1984]] में [[राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान|लता मंगेशकर सम्मान]] | * [[1984]] में [[राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान|लता मंगेशकर सम्मान]] | ||
* 1984 में अमीर खुसरो पुरस्कार | * [[1984]] में अमीर खुसरो पुरस्कार | ||
* [[1992]] में [[पद्म भूषण]] | * [[1992]] में [[पद्म भूषण]] | ||
* 1992 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार | * [[1992]] में [[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] | ||
* महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार | * महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार | ||
==निधन== | ==निधन== | ||
Line 82: | Line 83: | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://podcast.hindyugm.com/2009/02/which-is-naushads-best-3-movies-explore.html नौशाद की तीन सर्वश्रेष्ठ | *[http://podcast.hindyugm.com/2009/02/which-is-naushads-best-3-movies-explore.html नौशाद की तीन सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों के संगीत पर एक चर्चा] | ||
*[http://www.hindisong.com/Profile/Profile.asp?ContentID=114&cID=214Naushad:%20A%20Legend%20Amidst%20Us Naushad: A Legend Amidst Us] | *[http://www.hindisong.com/Profile/Profile.asp?ContentID=114&cID=214Naushad:%20A%20Legend%20Amidst%20Us Naushad: A Legend Amidst Us] | ||
*[http://www.sangeetmahal.com/hof/Music_Directors_Naushad.asp Hall Of Fame Naushad] | *[http://www.sangeetmahal.com/hof/Music_Directors_Naushad.asp Hall Of Fame Naushad] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{संगीतकार}}{{दादा साहब फाल्के पुरस्कार}} | {{संगीतकार}}{{दादा साहब फाल्के पुरस्कार}}{{संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार}} | ||
[[Category:दादा साहब फाल्के पुरस्कार]][[Category:पद्म भूषण]] [[Category:संगीतकार]][[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:संगीत_कोश]][[Category:कला_कोश]] | [[Category:दादा साहब फाल्के पुरस्कार]][[Category:पद्म भूषण]] [[Category:संगीतकार]][[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:संगीत_कोश]][[Category:कला_कोश]] | ||
[[Category:संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 05:52, 5 May 2018
नौशाद
| |
पूरा नाम | नौशाद अली |
जन्म | 25 दिसंबर, 1919 |
जन्म भूमि | लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 5 मई, 2006 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | संगीतकार |
मुख्य रचनाएँ | 'प्यार किया तो डरना क्या..', 'ओ दुनिया के रखवाले..', 'मधुबन में राधिका नाचे रे..' आदि |
मुख्य फ़िल्में | बैजू बावरा, मुग़ल-ए-आज़म, अनमोल घड़ी, शारदा आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | दादा साहब फालके पुरस्कार, पद्म भूषण, लता मंगेशकर सम्मान, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फ़िल्मों में ही संगीत दिया। |
नौशाद अली (अंग्रेज़ी: Naushad Ali, जन्म: 25 दिसंबर, 1919 – मृत्यु: 5 मई, 2006) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। पहली फ़िल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फ़िल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि गुणवत्ता संख्याबल से कहीं आगे होती है। भारतीय सिनेमा को समृद्ध बनाने वाले संगीतकारों की कमी नहीं है लेकिन नौशाद अली के संगीत की बात ही अलग थी। नौशाद ने फ़िल्मों की संख्या को कभी तरजीह नहीं देते हुए केवल संगीत को ही परिष्कृत करने का काम किया।
जीवन परिचय
हम जिन्हें संगीतकार नौशाद के नाम जानते हैं, उनका सही नाम था नौशाद अली। उन्हें संगीत से लगाव बचपन में ही हो गया था। चौथे दशक में वे फ़िल्मों से जुडे़, लेकिन इससे पहले उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी थी। सिनेमा संगीत को हिंदुस्तानियत का जामा पहनाने वाले नौशाद का जन्म तहजीब और नज़ाकत के लिए मशहूर नवाबों के शहर लखनऊ में 25 दिसंबर 1919 को हुआ था।
घरवालों का मुख्य काम था मुंशीगीरी, लेकिन बालक नौशाद का मन तो पूरी तरह संगीत में बसता था। जब वे नौ साल के थे, तब लखनऊ के अमीनाबाद के मुख्य बाज़ार की एक दुकान, जहाँ वाद्ययंत्र बिकते थे, के क़रीब वे रोज जाने लगे। जब कई दिनों तक ऐसा हुआ, तो मालिक ने एक दिन पूछ ही लिया। बातचीत के बाद नौशाद ने वहाँ काम करना स्वीकार लिया। उनका काम हुआ दुकान खुलने के समय से लेकर अन्य स्टाफ के आने से पहले की साफ-सफाई। नौशाद को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी। वे रोज समय से आते और दुकान खुलवाकर सभी वाद्ययंत्रों की अच्छी तरह सफाई करते और उन्हें जी भर कर छूते। कुछ वक्त तो ऐसे ही बीत गया।
एक दिन दुकान खोलने वाले स्टाफ ने नौशाद से कहा, भइया.., तुम जब तक साफ़ सफाई करो, मैं तब तक चाय पीकर आता हूं। नौशाद ने कहा, जी ठीक है। वे उधर गए, नौशाद ने मौका देखकर वाद्ययंत्रों पर हाथ आजमाना शुरू कर दिया। एक दिन उस साज पर तो दूसरे दिन दूसरे और फिर तीसरे दिन तीसरे साज पर..। इसी तरह हर रोज़ स्टाफ चाय पीने जाता और नौशाद रियाज़ में लग जाते। यह रोज का काम हो गया। यह सब महीनों तक चला।
एक दिन वह भी आया, जब मालिक समय से पहले आ धमका और नौशाद हारमोनियम बजाते पकड़े गए। नौशाद डरे हुए थे, उनकी हालत खराब थी। ठंड के समय में पसीना आ निकला था, लेकिन मालिक ऊपर से गुस्सैल बना रहा, वह अंदर से खुश था। पूछताछ के बाद अंत में मालिक ने वह पेटी यानी हारमोनियम नौशाद को दे दी और कहा, अच्छा बजाते हो, खूब रियाज़ करना..।[1]
फ़िल्मी सफर
संगीत की शुरुआत
नौशाद का घर लखनऊ के अकबरी गेट के कांधारी बाज़ार, झंवाई टोला में था। वे लाटूस रोड पर अपने उस्ताद उमर अंसारी से संगीत सीखने लगे, इस बात से उनके वालिद नाराज़ रहते थे। अंत में बात यहां तक हो गई कि वालिद ने कह दिया कि अगर संगीत को अपनाओगे तो घर छोड़ दो। नौशाद ने मन में यह बात ठान ली कि घर छोड़ना सही होगा, लेकिन संगीत नहीं..। वे संगीत को अपनाए रहे। उनका अब मूल काम गाना-बाजाना हो गया। हालांकि उन पर कुछ कुछ समय बाद कई बार पाबंदियां लगीं, घर के दरवाज़े बंद किए गए, लेकिन नौशाद ने दादी का सहारा लिया और संगीत का शौक़ जारी रखा। उनके पांव और ख़्वाब उनके पिता कभी नहीं रोक सके। इसी बीच उन्होंने मैट्रिक पास किया।[1]
16 वर्ष की उम्र में मुंबई का रुख
मैट्रिक पास करने के बाद वे लखनऊ के 'विंडसर एंटरटेनर म्यूज़िकल ग्रुप' के साथ दिल्ली, मुरादाबाद, जयपुर, जोधपुर और सिरोही की यात्रा पर निकले। जब कुछ समय बाद वह म्यूज़िकल ग्रुप बिखर गया तो नौशाद ने लखनऊ लौटने के बजाए मुंबई का रुख़ किया और 16 वर्ष की किशोर उम्र में यानी 1935 में वे मुंबई आ गए। नौशाद के लिए मुंबई उम्मीदों का शहर था। यहां उन्हें पहला ठिकाना के रूप में दादर के ब्रॉडवे सिनेमाघर के सामने का फुटपाथ मिला। तब नौशाद ने सपना देखा था कि कभी इस सिनेमाघर में उनकी कोई फ़िल्म लगेगी। उस किशोर कल्पना को साकार होने में काफ़ी वक़्त लगा। 'बैजू बावरा' जब उसी हॉल में रिलीज़ हुई, तो वहां रिलीज़ के समय नौशाद ने कहा, इस सड़क को पार करने में मुझे सत्रह साल लग गए..। शुरू में नौशाद ने एन. ए. दास यानी नौशाद अली दास के नाम से कुछ संगीतकारों के साथ काम किया। उन्हें काम मिलने लगा था, लेकिन बहुत नहीं।[1]
पहली फ़िल्म 'प्रेम नगर'
1940 में बनी 'प्रेम नगर' में नौशाद को पहली बार स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन का मौका मिला। इसके बाद एक और फ़िल्म 'स्टेशन मास्टर' भी सफल रही। उसके बाद तो जैसे नौशाद संगीत के मोतियों की माला-सी बुनते चले गए। नौशाद को पहली बार 'सुनहरी मकड़ी' फ़िल्म में हारमोनियम बजाने का अवसर मिला। यह फ़िल्म पूरी नहीं हो सकी लेकिन शायद यहीं से नौशाद का सुनहरा सफ़र शुरू हुआ। इसी बीच गीतकार दीनानाथ मधोक (डीएन) से उनकी मुलाकात हुई तो उन्होंने उनका परिचय फ़िल्म इंडस्ट्री के अन्य लोगों से करवाया जिससे नौशाद को छोटा-मोटा काम मिलना प्रारंभ हुआ।[2]
यादगार संगीत
यह नौशाद के संगीत का ही जादू था कि 'मुग़ल-ए-आजम', 'बैजू बावरा', 'अनमोल घड़ी', 'शारदा', 'आन', 'संजोग' आदि कई फ़िल्मों को न केवल हिट बनाया बल्कि कालजयी भी बना दिया। 'दीदार' के गीत- 'बचपन के दिन भुला न देना', 'हुए हम जिनके लिए बरबाद', 'ले जा मेरी दुआएँ ले जा परदेश जाने वाले' आदि की बदौलत इस फ़िल्म ने लंबे समय तक चलने का रिकॉर्ड क़ायम किया। इसके बाद तो नौशाद की लोकप्रियता में ख़ासा इजाफा हुआ। 'बैजू बावरा' की सफलता से नौशाद को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पहला फ़िल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला। संगीत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए 1982 में फालके अवॉर्ड, 1984 में 'लता अलंकरण' तथा 1992 में पद्म भूषण से उन्हें नवाज़ा गया। [2]
नौशाद को सुरैया, अमीरबाई कर्नाटकी, निर्मलादेवी, उमा देवी आदि को प्रोत्साहित कर आगे लाने का श्रेय जाता है। सुरैया को पहली बार उन्होंने 'नई दुनिया' में गाने का मौका दिया। इसके बाद 'शारदा' व 'संजोग' में भी गाने गवाए। सुरैया के अलावा निर्मलादेवी से सबसे पहले 'शारदा' में तथा उमा देवी यानी टुनटुन की आवाज का इस्तेमाल 'दर्द' में 'अफ़साना लिख रही हूँ' के लिए नौशाद ने किया। नौशाद ने ही मुकेश की दर्दभरी आवाज का इस्तेमाल 'अनोखी अदा' और 'अंदाज' में किया। 'अंदाज' में नौशाद ने दिलीप कुमार के लिए मुकेश और राज कपूर के लिए मो. रफी की आवाज का उपयोग किया। 1944 में युवा प्रेम पर आधारित 'रतन' के गाने उस समय के दौर में सुपरहिट हुए थे।[2]
प्रसिद्ध गीत
- 'मन तरपत हरि दर्शन..' (बैजू बावरा)
- 'ओ दुनिया के रखवाले..' (बैजू बावरा)
- 'झूले में पवन के' (बैजू बावरा)
- 'मोहे पनघट पे नंद लाल' (मुग़ल-ए-आज़म)
- 'प्यार किया तो डरना क्या..' (मुग़ल-ए-आज़म)
- 'खुदा निगेबान..' (मुग़ल-ए-आज़म)
- 'मधुबन में राधिका नाचे रे..' (कोहिनूर)
- 'ढल चुकी शाम-ए-गम...' (कोहिनूर)
- नन्हा मुन्ना राही हूँ (सन ऑफ़ इंडिया)
- अपनी आज़ादी को हम (लीडर)
- इंसाफ़ की डगर पर (गंगा जमुना)
नौशाद और सहगल का एक वाकया
'शाहजहाँ' में हीरो कुंदनलाल सहगल से नौशाद ने गीत गवाए। उस समय ऐसा माना जाता था कि सहगल बगैर शराब पिए गाने नहीं गा सकते। नौशाद ने सहगल से बगैर शराब पिए एक गाना गाने के लिए कहा तो सहगल ने कहा, 'बगैर पिए मैं सही नहीं गा पाऊँगा।' इसके बाद नौशाद ने सहगल से एक गाना शराब पिए हुए गवाया और उसी गाने को बाद में बगैर शराब पिए गवाया। जब सहगल ने अपने गाए दोनों गाने सुने तब नौशाद से बोले, 'काश! मुझसे तुम पहले मिले होते!' यह गीत कौन-सा था, इसका तो पता नहीं चला लेकिन 'शाहजहाँ' के गीत 'जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे...' तथा 'गम दिए मुस्तकिल, कितना नाजुक है दिल...' कालजयी सिद्ध हुए।[2]
'तुम महान् गायक बनोगे'
'पहले आप' के निर्देशक कारदार मियाँ के पास एक बार सिफारिशी पत्र लेकर एक लड़का पहुँचा। तब उन्होंने नौशाद से कहा कि भाई, इस लड़के के लिए कोई गुंजाइश निकल सकती है क्या। नौशाद ने सहज भाव से कहा, 'फिलहाल तो कोई गुंजाइश नहीं है। हाँ, अलबत्ता इतना ज़रूर है कि मैं इनको कोई समूह (कोरस) में गवा सकता हूँ।' लड़के ने हाँ कर दी। गीत के बोल थे : 'हिन्दू हैं हम हिन्दुस्तां हमारा, हिन्दू-मुस्लिम की आँखों का तारा'। इसमें सभी गायकों को लोहे के जूते पहनाए गए, क्योंकि गाते समय पैर पटक-पटककर गाना था ताकि जूतों की आवाज का इफेक्ट आ सके। उस लड़के के जूते टाइट थे। गाने की समाप्ति पर लड़के ने जूते उतारे तो उसके पैरों में छाले पड़ गए थे। यह सब देख रहे नौशाद ने उस लड़के के कंधे पर हाथ रखकर कहा, 'जब जूते टाइट थे तो तुम्हें बता देना था।' इस पर उस लड़के ने कहा, 'आपने मुझे काम दिया, यही मेरे लिए बड़ी बात है।' तब नौशाद ने कहा था, 'एक दिन तुम महान् गायक बनोगे।' यह लड़का आगे चलकर मुहम्मद रफ़ी के नाम से जाना गया।[2]
सम्मान और पुरस्कार
- सन 1954 में 'बैजू बावरा' फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार
- संगीत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए 1982 में फालके अवॉर्ड
- 1984 में लता मंगेशकर सम्मान
- 1984 में अमीर खुसरो पुरस्कार
- 1992 में पद्म भूषण
- 1992 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार
निधन
सन 1940 से 2006 तक उन्होंने अपना संगीत का सफर जारी रखा। उन्होंने अंतिम बार 2006 में बनी 'ताजमहल' के लिए संगीत दिया। अपने अंतिम दिनों तक वे कहते थे, 'मुझे आज भी ऐसा लगता है कि अभी तक न मेरी संगीत की तालीम पूरी हुई है और न ही मैं अच्छा संगीत दे सका।' और इसी मलाल के साथ वे 5 मई, 2006 को इस दुनिया से रुखसत हो गए।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- नौशाद की तीन सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों के संगीत पर एक चर्चा
- Naushad: A Legend Amidst Us
- Hall Of Fame Naushad
संबंधित लेख