पुलिस स्मृति दिवस: Difference between revisions
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==महत्व== | ==महत्व== | ||
पुलिस के सम्मान के प्रतीक इस दिवस को मीडिया ने एकदम महत्त्वहीन करार दिया वाकई यह दुःख की बात है। हर राज्य का पुलिस बल उन बहादुर पुलिस वालों की याद में इस दिवस का आयोजन करता है, जिन्होंने जनता एवं शांति की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। ज्यादातर यही होता है कि इन परेडों में लोगों की उपस्थिति बहुत कम होती है। किरन बेदी के अनुसार दिल्ली पुलिस द्वारा आयोजित परेडों की वह गवाह है। उन्होंने इस परेड की कवरेज के लिए एक-दो मीडिया कर्मियों को | पुलिस के सम्मान के प्रतीक इस दिवस को मीडिया ने एकदम महत्त्वहीन करार दिया वाकई यह दुःख की बात है। हर राज्य का पुलिस बल उन बहादुर पुलिस वालों की याद में इस दिवस का आयोजन करता है, जिन्होंने जनता एवं शांति की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। ज्यादातर यही होता है कि इन परेडों में लोगों की उपस्थिति बहुत कम होती है। किरन बेदी के अनुसार दिल्ली पुलिस द्वारा आयोजित परेडों की वह गवाह है। उन्होंने इस परेड की कवरेज के लिए एक-दो मीडिया कर्मियों को ज़रूर देखा है, परंतु शाम की खबरों हेतु ‘[[टेलीविजन]] कवरेज’ के लिए वहां कोई भी मीडिया कर्मी उपस्थित नहीं था। यहां तक कि अगले दिन अधिकतर समाचार पत्रों ने भी इस दिवस के बारे में कोई खबर नहीं छापी। अतः उन्होंने मीडिया से पूछा ऐसा क्यों हुआ ? इस, देश के 13 लाख से ज्यादा कर्मचारियों (पुलिस कर्मियों) के इस महत्त्वपूर्ण दिन को मीडिया कैसे नकार सकता है ? | ||
प्रतिवर्ष लगभग 1000 पुलिसकर्मी अपना फर्ज निभाते हुए शहीद होते हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी अपने कार्यों और फर्ज को अंजाम देते हुए शहीद हो जाने पर मीडिया की ओर से सराहना नहीं मिलती, न ही उनके बलिदानों की कहानी लोगों तक पहुँचती है। दरअसल फर्ज की बेदी पर अपनी जान कुर्बान करने वाले ये सिपाही छिपे हुए नायक होते हैं।<ref name="Poli">{{cite web |url=http://pustak.org/index.php/books/bookdetails/6361|title=पुलिस कीर्ति दिवस |accessmonthday= 21 अक्टूबर|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=pustak.org|language=हिन्दी}}</ref> | प्रतिवर्ष लगभग 1000 पुलिसकर्मी अपना फर्ज निभाते हुए शहीद होते हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी अपने कार्यों और फर्ज को अंजाम देते हुए शहीद हो जाने पर मीडिया की ओर से सराहना नहीं मिलती, न ही उनके बलिदानों की कहानी लोगों तक पहुँचती है। दरअसल फर्ज की बेदी पर अपनी जान कुर्बान करने वाले ये सिपाही छिपे हुए नायक होते हैं।<ref name="Poli">{{cite web |url=http://pustak.org/index.php/books/bookdetails/6361|title=पुलिस कीर्ति दिवस |accessmonthday= 21 अक्टूबर|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=pustak.org|language=हिन्दी}}</ref> | ||
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#दूसरे देशों में जब इन दिवसों का आयोजन होता है तो वहां इसे पूरे सप्ताह तक मनाया जाता है। इसमें कुछ और गतिविधियां भी शामिल की जाती हैं जिसमें सामाजिक व राजनीतिक नेता अपने विचार प्रकट करते हैं।<ref name="Poli"/> | #दूसरे देशों में जब इन दिवसों का आयोजन होता है तो वहां इसे पूरे सप्ताह तक मनाया जाता है। इसमें कुछ और गतिविधियां भी शामिल की जाती हैं जिसमें सामाजिक व राजनीतिक नेता अपने विचार प्रकट करते हैं।<ref name="Poli"/> | ||
टेलीविजन के दर्शकों को शायद स्मरण होगा कि 11 सितम्बर 2001 की घटना के तुरंत बाद अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने कांग्रेस को संबोधित करते अपनी जेब से एक पदक निकाला व दिखाया। ये एक पुलिसकर्मी का पदक था जो विश्व व्यापार केन्द्र में अपनी सेवा के दौरान शहीद हुआ था। ये पदक राष्ट्रपति बुश को उस पुलिसकर्मी की माता ने तब दिया था जब वे उसके परिवार से मिलने गए थे। राष्ट्रपति द्वारा पदक दिखाने और उस पुलिसकर्मी की सेवा का जिक्र करने पर कांग्रेस के सभी सदस्यों ने उस पुलिसकर्मी की सेवा और संपूर्ण बल के प्रति अपना सम्मान, आभार और श्रद्धांजलि व्यक्त की। आज हमारे पुलिसकर्मी ठुकराए हुए, वंचित, असुरक्षा की भावना लिए हुए व थके हुए हैं। अगर वे ईमानदार हैं तो वे अकेले हैं। अगर वे शहीद होते हैं तो उनका परिवार अकेले ही दुःख झेलता है। देश उन्हें भूल जाता है। इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए कि जब दुनियादारी में निपुण कुछ पुलिसकर्मी अपने व अपने परिवार के सुरक्षित वर्तमान व भविष्य के लिए अपने आपको समर्पण से रोकते हैं और इसके लिए वो राष्ट्र सुरक्षा के साथ समझौता भी करते हैं। 21 अक्टूबर पुलिस सेवा के लिए महत्त्वपूर्ण दिवस है। यह वो दिन है जब आम नागरिक पुलिस को नजदीक से जान सके और बहादुर नौजवानों को इस सेवा से जुड़ने के लिए कैसे उत्साहित कर पाएँगे। हमारे लिए बहुत | टेलीविजन के दर्शकों को शायद स्मरण होगा कि 11 सितम्बर 2001 की घटना के तुरंत बाद अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने कांग्रेस को संबोधित करते अपनी जेब से एक पदक निकाला व दिखाया। ये एक पुलिसकर्मी का पदक था जो विश्व व्यापार केन्द्र में अपनी सेवा के दौरान शहीद हुआ था। ये पदक राष्ट्रपति बुश को उस पुलिसकर्मी की माता ने तब दिया था जब वे उसके परिवार से मिलने गए थे। राष्ट्रपति द्वारा पदक दिखाने और उस पुलिसकर्मी की सेवा का जिक्र करने पर कांग्रेस के सभी सदस्यों ने उस पुलिसकर्मी की सेवा और संपूर्ण बल के प्रति अपना सम्मान, आभार और श्रद्धांजलि व्यक्त की। आज हमारे पुलिसकर्मी ठुकराए हुए, वंचित, असुरक्षा की भावना लिए हुए व थके हुए हैं। अगर वे ईमानदार हैं तो वे अकेले हैं। अगर वे शहीद होते हैं तो उनका परिवार अकेले ही दुःख झेलता है। देश उन्हें भूल जाता है। इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए कि जब दुनियादारी में निपुण कुछ पुलिसकर्मी अपने व अपने परिवार के सुरक्षित वर्तमान व भविष्य के लिए अपने आपको समर्पण से रोकते हैं और इसके लिए वो राष्ट्र सुरक्षा के साथ समझौता भी करते हैं। 21 अक्टूबर पुलिस सेवा के लिए महत्त्वपूर्ण दिवस है। यह वो दिन है जब आम नागरिक पुलिस को नजदीक से जान सके और बहादुर नौजवानों को इस सेवा से जुड़ने के लिए कैसे उत्साहित कर पाएँगे। हमारे लिए बहुत ज़रूरी है कि हम उन रास्तों को हमेशा याद रखें जिन पर चलकर हमें ये मालूम हुआ है कि एक राष्ट्र के रूप में हम कौन हैं और क्या हैं।<ref name="Poli"/> | ||
Latest revision as of 13:58, 9 May 2021
पुलिस स्मृति दिवस
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विवरण | 'पुलिस स्मृति दिवस' प्रत्येक वर्ष 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। |
तिथि | 21 अक्टूबर |
शुरुआत | सन 1959 |
उद्देश्य | एक आम नागरिक पुलिस को नजदीक से जान सके और बहादुर नौजवानों को इस सेवा से जुड़ने के लिए कैसे उत्साहित कर पाएँ। हमारे लिए बहुत ज़रूरी है कि हम उन रास्तों को हमेशा याद रखें जिन पर चलकर हमें ये मालूम हुआ है कि एक राष्ट्र के रूप में हम कौन हैं और क्या हैं। |
संबंधित लेख | भारतीय पुलिस, भारतीय पुलिस सेवा |
अन्य जानकारी | 21 अक्टूबर 1959 में लद्दाख में तीसरी बटालियन की एक कम्पनी को भारत - तिब्बत सीमा की सुरक्षा के लिए लद्दाख में ‘हाट-स्प्रिंग‘ में तैनात किया गया था। कम्पनी को टुकड़ियों में बांटकर चौकसी करने को कहा गया। जब बल के 21 जवानों का गश्ती दल ‘हाट-स्प्रिंग‘ में गश्त कर रहा था। तभी चीनी फौज के एक बहुत बड़े दस्ते ने इस गश्ती टुकड़ी पर घात लगाकर आक्रमण कर दिया। तब बल के मात्र 21 जवानों ने चीनी आक्रमणकारियों का डटकर मुकाबला किया। मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए 10 शूरवीर जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। |
अद्यतन | 12:43, 22 अक्टूबर 2016 (IST)
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पुलिस स्मृति दिवस प्रत्येक वर्ष 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। पुलिस स्मरण दिवस के महत्व के बारे में सीआरपीएफ की बहादुरी का एक क़िस्सा है, गौरतलब है कि आज से 55 वर्ष पहले 21 अक्टूबर 1959 में लद्दाख में तीसरी बटालियन की एक कम्पनी को भारत - तिब्बत सीमा की सुरक्षा के लिए लद्दाख में ‘हाट-स्प्रिंग‘ में तैनात किया गया था। कम्पनी को टुकड़ियों में बांटकर चौकसी करने को कहा गया। जब बल के 21 जवानों का गश्ती दल ‘हाट-स्प्रिंग‘ में गश्त कर रहा था। तभी चीनी फौज के एक बहुत बड़े दस्ते ने इस गश्ती टुकड़ी पर घात लगाकर आक्रमण कर दिया। तब बल के मात्र 21 जवानों ने चीनी आक्रमणकारियों का डटकर मुकाबला किया। मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए 10 शूरवीर जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। हमारे बल के लिए व हम सबके लिए यह गौरव की बात है कि केन्द्रीय रिजर्व पुलिउस बल के इन बहादुर जवानों के बलिदान को देश के सभी केन्द्रीय पुलिस संगठनों व सभी राज्यों की सिविल पुलिस द्वारा ‘‘पुलिस स्मरण दिवस‘‘ के रूप में मनाया जाता है।[1]
महत्व
पुलिस के सम्मान के प्रतीक इस दिवस को मीडिया ने एकदम महत्त्वहीन करार दिया वाकई यह दुःख की बात है। हर राज्य का पुलिस बल उन बहादुर पुलिस वालों की याद में इस दिवस का आयोजन करता है, जिन्होंने जनता एवं शांति की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। ज्यादातर यही होता है कि इन परेडों में लोगों की उपस्थिति बहुत कम होती है। किरन बेदी के अनुसार दिल्ली पुलिस द्वारा आयोजित परेडों की वह गवाह है। उन्होंने इस परेड की कवरेज के लिए एक-दो मीडिया कर्मियों को ज़रूर देखा है, परंतु शाम की खबरों हेतु ‘टेलीविजन कवरेज’ के लिए वहां कोई भी मीडिया कर्मी उपस्थित नहीं था। यहां तक कि अगले दिन अधिकतर समाचार पत्रों ने भी इस दिवस के बारे में कोई खबर नहीं छापी। अतः उन्होंने मीडिया से पूछा ऐसा क्यों हुआ ? इस, देश के 13 लाख से ज्यादा कर्मचारियों (पुलिस कर्मियों) के इस महत्त्वपूर्ण दिन को मीडिया कैसे नकार सकता है ? प्रतिवर्ष लगभग 1000 पुलिसकर्मी अपना फर्ज निभाते हुए शहीद होते हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी अपने कार्यों और फर्ज को अंजाम देते हुए शहीद हो जाने पर मीडिया की ओर से सराहना नहीं मिलती, न ही उनके बलिदानों की कहानी लोगों तक पहुँचती है। दरअसल फर्ज की बेदी पर अपनी जान कुर्बान करने वाले ये सिपाही छिपे हुए नायक होते हैं।[2]
5 नवम्बर 1963 को जयपुर में पुलिस स्मारक का उद्घा़टन करते हुए पंडित नेहरू जी ने कहा था—‘हम प्रायः पुलिसकर्मी को अपना फर्ज पूरा करते देखते रहते हैं और अक्सर हम उनकी आलोचना करते हैं। उन पर आरोप भी लगाते हैं जिनमें से कुछ सच भी साबित हो जाते हैं, कुछ गलत, पर हम भूल जाते हैं कि ये लोग कितना कठिन कार्य करते हैं। आज हमें उनकी सेवा के उस नजरिए को देखना है जिसमें वो दूसरों की जान व माल की रक्षाके बदले अपनी जिन्दगी से समझौता कर लेते हैं।’’ देश के प्रथम प्रधानमंत्री के 1963 में पुलिस कर्मियों के बारे में यही उद्गार थे।
नियम
आज हम 2003 में हैं और विगत वर्ष इस उत्सव पर देश के किसी भी नेता ने राष्ट्र के नाम कोई संदेश नहीं दिया, न तो प्रधानमंत्री ने और न ही गृहमंत्री ने इस गरिमापूर्ण अवसर पर कुछ कहा (कम से कम सार्वजनिक स्तर पर सरकार की ओर से कुछ भी किए जाने की सूचना जनता को नहीं है)। यह दिवस संकल्प का दिवस था। विशेषकर तब जब संपूर्ण देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी हर पुलिस अधिकारी की योग्यता पर निर्भर है। इस अवसर के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है जो इस प्रकार हैं :
- 21 अक्टूबर को राष्ट्रीय पुलिस दिवस घोषित किया जाए।
- देश की राजधानी में पुलिस स्मारक होना चाहिए जहां से राष्ट्रपति राष्ट्र की ओर से बहादुर शहीदों को श्रृद्धांजलि दें। उन्हें याद करें।
- प्रांतीय स्तर पर भी हर राज्य में ऐसे स्मारक बनाए जाएं, ताकि राज्यपाल नागरिकों की तरफ से पुलिस के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें।
- इन राष्ट्रीय व प्रांतीय स्मारकों को असाधारण सेवा व देशभक्ति का प्रतीक माना जाना चाहिए।
- वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को ड्यूटी चार्ज सौंपने व लेने का कार्य भी इसी दिवस को शुरू करना होगा।
- दूसरे देशों में जब इन दिवसों का आयोजन होता है तो वहां इसे पूरे सप्ताह तक मनाया जाता है। इसमें कुछ और गतिविधियां भी शामिल की जाती हैं जिसमें सामाजिक व राजनीतिक नेता अपने विचार प्रकट करते हैं।[2]
टेलीविजन के दर्शकों को शायद स्मरण होगा कि 11 सितम्बर 2001 की घटना के तुरंत बाद अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने कांग्रेस को संबोधित करते अपनी जेब से एक पदक निकाला व दिखाया। ये एक पुलिसकर्मी का पदक था जो विश्व व्यापार केन्द्र में अपनी सेवा के दौरान शहीद हुआ था। ये पदक राष्ट्रपति बुश को उस पुलिसकर्मी की माता ने तब दिया था जब वे उसके परिवार से मिलने गए थे। राष्ट्रपति द्वारा पदक दिखाने और उस पुलिसकर्मी की सेवा का जिक्र करने पर कांग्रेस के सभी सदस्यों ने उस पुलिसकर्मी की सेवा और संपूर्ण बल के प्रति अपना सम्मान, आभार और श्रद्धांजलि व्यक्त की। आज हमारे पुलिसकर्मी ठुकराए हुए, वंचित, असुरक्षा की भावना लिए हुए व थके हुए हैं। अगर वे ईमानदार हैं तो वे अकेले हैं। अगर वे शहीद होते हैं तो उनका परिवार अकेले ही दुःख झेलता है। देश उन्हें भूल जाता है। इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए कि जब दुनियादारी में निपुण कुछ पुलिसकर्मी अपने व अपने परिवार के सुरक्षित वर्तमान व भविष्य के लिए अपने आपको समर्पण से रोकते हैं और इसके लिए वो राष्ट्र सुरक्षा के साथ समझौता भी करते हैं। 21 अक्टूबर पुलिस सेवा के लिए महत्त्वपूर्ण दिवस है। यह वो दिन है जब आम नागरिक पुलिस को नजदीक से जान सके और बहादुर नौजवानों को इस सेवा से जुड़ने के लिए कैसे उत्साहित कर पाएँगे। हमारे लिए बहुत ज़रूरी है कि हम उन रास्तों को हमेशा याद रखें जिन पर चलकर हमें ये मालूम हुआ है कि एक राष्ट्र के रूप में हम कौन हैं और क्या हैं।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आपको पता है क्यों मनाया जाता है 'पुलिस स्मरण दिवस (हिन्दी) hindi.eenaduindia.com। अभिगमन तिथि: 21 अक्टूबर, 2016।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 पुलिस कीर्ति दिवस (हिन्दी) pustak.org। अभिगमन तिथि: 21 अक्टूबर, 2016।
बाहरी कड़ियाँ
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