सत्यमेव जयते

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:02, 1 August 2013 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण")
Jump to navigation Jump to search
सत्यमेव जयते
विवरण भारत का 'आदर्श राष्ट्रीय वाक्य' है- "सत्यमेव जयते"। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है।
अर्थ 'सत्यमेव जयते' अर्थात "सत्य की सदैव ही विजय होती है"।
ग्राह्या ग्रंथ 'मुण्डकोपनिषद'
प्रसिद्धि भारत का 'आदर्श राष्ट्रीय वाक्य'
प्रतीक शासन एवं प्रशासन की शुचिता का प्रतीक
अन्य जानकारी 'सत्यमेव जयते' को राष्ट्रपटल पर लाने और उसका प्रचार करने में पंडित मदनमोहन मालवीय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।

सत्यमेव जयते भारत का 'राष्ट्रीय आदर्श वाक्य' है, जिसका अर्थ है- "सत्य की सदैव ही विजय होती है"। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है। 'सत्यमेव जयते' को राष्ट्रपटल पर लाने और उसका प्रचार करने में पंडित मदनमोहन मालवीय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। वेदान्त एवं दर्शन ग्रंथों में जगह-जगह सत् असत् का प्रयोग हुआ है। सत् शब्द उसके लिए प्रयुक्त हुआ है, जो सृष्टि का मूल तत्त्व है, सदा है, जो परिवर्तित नहीं होता, जो निश्चित है। इस सत् तत्त्व को ब्रह्म अथवा परमात्मा कहा गया है।

इतिहास

सम्पूर्ण भारत का आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ में 250 ई. पू. में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए सिंह स्तम्भ के शिखर से लिया गया है, किंतु इस शिखर में यह आदर्श वाक्य नहीं है। 'सत्यमेव जयते' मूलतः 'मुण्डकोपनिषद' का सर्वज्ञात मंत्र है। 'मुण्डकोपनिषद' के निम्न श्लोक से 'सत्यमेव जयते' लिया गया है-

सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र सत्सत्यस्य परमं निधानम्॥[1]

आदर्श सूत्र वाक्य

प्राचीन भारतीय साहित्य के 'मुण्डकोपनिषद' से लिया गया यह आदर्श सूत्र वाक्य आज भी मानव जगत की सीमा निर्धारित करता है। 'सत्य की सदैव विजय हो' का विपरीत होगा- 'असत्य की पराजय हो'। सत्य-असत्य, सभ्यता के आरम्भ से ही धर्म एवं दर्शन के केंद्र बिंदु बने हुये हैं। 'रामायण' में भगवान श्रीराम की लंका के राजा रावण पर विजय को असत्य पर सत्य की विजय बताया गया और प्रतीक स्वरूप आज भी इसे 'दशहरा' पर्व के रूप में सारे भारत में मनाया जाता है तथा रावण का पुतला जलाकर सत्य की विजय का शंखनाद किया जाता है। विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य 'महाभारत' में भी एक श्रीकृष्ण के नेतृत्व और पाँच पाण्डवों की सौ कौरवों और अट्ठारह अक्षौहिणी सेना पर विजय को सत्य की असत्य पर विजय बताया गया। कालांतर में वेद और पुराण के विरोधियों ने भी सत्य को 'पंचशील' व 'पंचमहाव्रत' का प्रमुख अंग माना।[2]

गाँधीजी का कथन

'सत्य' एक बेहद सात्विक किंतु जटिल शब्द है। ढाई अक्षरों से निर्मित यह शब्द उतना ही सरल है, जितना कि 'प्यार' शब्द, लेकिन इस मार्ग पर चलना उतना ही कठिन है, जितना कि सच्चे प्यार के मार्ग पर चलना। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, जिन्हें सत्य का सबसे बड़ा व्यवहारवादी उपासक माना जाता है, उन्होंने सत्य को ईश्वर का पर्यायवाची कहा। गाँधीजी ने कहा था कि- "सत्य ही ईश्वर है एवं ईश्वर ही सत्य है।" यह वाक्य ज्ञान, कर्म एवं भक्ति के योग की त्रिवेणी है। सत्य की अनुभूति अगर ज्ञान योग है तो इसे वास्तविक जीवन में उतारना कर्मयोग एवं अंततः सत्य रूपी सागर में डूबकर इसका रसास्वादन लेना ही भक्ति योग है। शायद यही कारण है कि लगभग सभी धर्म सत्य को केन्द्र बिन्दु बनाकर ही अपने नैतिक और सामाजिक नियमों को पेश करते हैं।

धर्म का प्रतीक

सत्य का विपरीत असत्य है। सत्य अगर धर्म है तो असत्य अधर्म का प्रतीक है। हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथ 'गीता' में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि- जब-जब इस धरा पर अधर्म का अभ्युदय होता है, तब-तब मैं इस धरा पर जन्म लेता हूँ। भारत सरकार के राजकीय चिह्न 'अशोक चक्र' के नीचे लिखा 'सत्यमेव जयते' शासन एवं प्रशासन की शुचिता का प्रतीक है। यह हर भारतीय को अहसास दिलाता है कि सत्य हमारे लिये एक तथ्य नहीं वरन् हमारी संस्कृति का सार है। साहित्य, फ़िल्म एवं लोक विधाओं में भी अंततः सत्य की विजय का ही उद्घोष होता है।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मुण्डकोपनिषद् तृतीय मुण्डक श्लोक 6
  2. 2.0 2.1 यादव, कृष्ण कुमार। सत्यमेव जयते (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 मई, 2013।

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः