लुई ब्रेल दिवस

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लुई ब्रेल दिवस
विवरण ब्रेल पद्धति का आविष्कार 1821 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। इसी उपलक्ष्य में यह दिन मनाया जाता है।
तिथि 4 जनवरी
अन्य जानकारी सन 2009 में 4 जनवरी को जब लुई ब्रेल के जन्म को पूरे दो सौ वर्षों का समय पूरा हुआ तो लुई ब्रेल जन्म द्विशती के अवसर पर हमारे देश ने उन्हें पुनः पुर्नजीवित करने का प्रयास किया जब इस अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।

लुई ब्रेल दिवस 4 जनवरी को लुई ब्रेल की याद में मनाया जाता है।

  • लुई ब्रेल ने नेत्रहीनों के लिये ब्रेल लिपि का निर्माण किया था।
  • लुई ब्रेल की वजह से नेत्रहीनों को पढ़ने का मौक़ा मिला।
  • सन 2009 में 4 जनवरी को जब लुई ब्रेल के जन्म को पूरे दो सौ वर्षों का समय पूरा हुआ तो लुई ब्रेल जन्म द्विशती के अवसर पर हमारे देश ने उन्हें पुनः पुर्नजीवित करने का प्रयास किया जब इस अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।

ब्रेल लिपि

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

ब्रेल लिपि एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है। इस पद्धति का आविष्कार 1821 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। यह अलग-अलग अक्षरों, संख्याओं और विराम चिन्हों को दर्शाते हैं। ब्रेल के नेत्रहीन होने पर उनके पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्डे्रन में भर्ती करवा दिया। उस स्कूल में "वेलन्टीन होउ" द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। इस विद्यालय में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के लिये आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अँधेरे में पढ़ी जाने वाली "नाइट राइटिंग" या "सोनोग्राफी" लिपि के बारे में व्याख्यान दिया। यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी और इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों को रखा जाता था, पर इसमें विराम चिह्न, संख्‍या, गणितीय चिह्न आदि नहीं होते थे। ब्रेल को वहीम से यह विचार आया। लुई ने इसी लिपि पर आधारित किन्तु 12 के स्थान पर 6 बिंदुओं के उपयोग से 64 अक्षर और चिह्न वाली लिपि बनायी। उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है। लुई ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र 15 वर्ष के थे। सन् 1824 में पूर्ण हुई यह लिपि दुनिया के लगभग सभी देशों में उपयोग में लाई जाती है।


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