अन्तरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस: Difference between revisions

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'''अन्तरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस''' प्रत्येक वर्ष [[9 जून]] को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल [[2007]] में हुई थी। मानव सभ्यता के विकास के साथ आम आदमी की जिंदगी में दस्तावेज यानी [[अभिलेख]] का महत्व बढ़ता गया। हर आदमी अपने दैनिक जीवन में अभिलेखों को सहेजता और संवारता है। ये अभिलेख आपका राशन कार्ड, बैंक पासबुक, आपकी डायरी कुछ भी हो सकता है। हमारे-आपके सहेजे ऐसे ही दस्तावेज और अभिलेख कई बार पूरे समाज और राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसे ही अभिलेखों के संरक्षण और प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए हर साल 9 जून को अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस मनाया जाता है।
'''अन्तरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस''' प्रत्येक वर्ष [[9 जून]] को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल [[2007]] में हुई थी। मानव सभ्यता के विकास के साथ आम आदमी की जिंदगी में दस्तावेज यानी [[अभिलेख]] का महत्व बढ़ता गया। हर आदमी अपने दैनिक जीवन में अभिलेखों को सहेजता और संवारता है। ये अभिलेख आपका राशन कार्ड, बैंक पासबुक, आपकी डायरी कुछ भी हो सकता है। हमारे-आपके सहेजे ऐसे ही दस्तावेज और अभिलेख कई बार पूरे समाज और राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसे ही अभिलेखों के संरक्षण और प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए हर साल 9 जून को अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस मनाया जाता है।
==डिजिटाइजेशन==
==डिजिटाइजेशन==
[[हिमाचल]] के राजाओं की [[रियासत]] और सियासत से जुड़े दुर्लभ अभिलेख अब एक क्लिक पर पढ़े जा सकेंगे। अभिलेखों को बार-बार देखने से उनके नष्ट होने का भी अब कोई खतरा नहीं रहेगा। भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग ने सदियों पुराने अभिलेखों को संरक्षित करने की योजना तैयार की है। अभिलेखों को आधुनिक तकनीक की मदद से संरक्षित किया जा रहा है। अब प्रदेश के ऐतिहासिक दस्तावेजों और भूमि व संपत्तियों की खरीद-फरोख्त का रिकॉर्ड डिजिटल रूप में देखा जा सकेगा। एक क्लिक से ही प्रदेश के सदियों पुराने [[इतिहास]] के पन्ने तलाश किए जा सकेंगे। भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग का अभिलेखागार इस कार्य में जुट गया है। ब्रिटिश काल में [[शिमला]] में  बने भवनों से जुड़े दस्तावेजों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था। अभी तक ऐसे दस्तावेजों को फाइलों में बांधकर कमरों में रखा गया था। इन दस्तावेजों में अंग्रेजों के जमाने की संपत्तियों की रजिस्ट्रियां भी शामिल हैं। ऐसे कुछ दस्तावेजों की हालत काफी खराब हो चुकी है। इसे सुरक्षित रखने के लिए ही अब इसकी डिजिटाइजेशन का कार्य शुरू किया गया है।
[[हिमाचल प्रदेश|हिमाचल]] के राजाओं की [[रियासत]] और सियासत से जुड़े दुर्लभ अभिलेख अब एक क्लिक पर पढ़े जा सकेंगे। अभिलेखों को बार-बार देखने से उनके नष्ट होने का भी अब कोई खतरा नहीं रहेगा। भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग ने सदियों पुराने अभिलेखों को संरक्षित करने की योजना तैयार की है। अभिलेखों को आधुनिक तकनीक की मदद से संरक्षित किया जा रहा है। अब प्रदेश के ऐतिहासिक दस्तावेजों और भूमि व संपत्तियों की खरीद-फरोख्त का रिकॉर्ड डिजिटल रूप में देखा जा सकेगा। एक क्लिक से ही प्रदेश के सदियों पुराने [[इतिहास]] के पन्ने तलाश किए जा सकेंगे। भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग का अभिलेखागार इस कार्य में जुट गया है। ब्रिटिश काल में [[शिमला]] में  बने भवनों से जुड़े दस्तावेजों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था। अभी तक ऐसे दस्तावेजों को फाइलों में बांधकर कमरों में रखा गया था। इन दस्तावेजों में अंग्रेजों के जमाने की संपत्तियों की रजिस्ट्रियां भी शामिल हैं। ऐसे कुछ दस्तावेजों की हालत काफी खराब हो चुकी है। इसे सुरक्षित रखने के लिए ही अब इसकी डिजिटाइजेशन का कार्य शुरू किया गया है।
==शोधकर्ताओं को मिलेगी मदद==
==शोधकर्ताओं को मिलेगी मदद==
अभिलेखों की डिजिटाइजेशन होने से शोधकर्ताओं को काफी मदद मिलेगी। इनकी डिजिटाइजेशन न होती तो शायद शोधककर्ताओं कई चीजों से वंचित रहना पड़ता। अब इससे उन्हें शोध करने में आसानी होगी। फाइलों को बार-बार खोलने और पन्नों को बदलने से उनके नष्ट होने का खतरा भी कम होगा।
अभिलेखों की डिजिटाइजेशन होने से शोधकर्ताओं को काफी मदद मिलेगी। इनकी डिजिटाइजेशन न होती तो शायद शोधककर्ताओं कई चीजों से वंचित रहना पड़ता। अब इससे उन्हें शोध करने में आसानी होगी। फाइलों को बार-बार खोलने और पन्नों को बदलने से उनके नष्ट होने का खतरा भी कम होगा।

Revision as of 10:19, 17 May 2022

अन्तरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस प्रत्येक वर्ष 9 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 2007 में हुई थी। मानव सभ्यता के विकास के साथ आम आदमी की जिंदगी में दस्तावेज यानी अभिलेख का महत्व बढ़ता गया। हर आदमी अपने दैनिक जीवन में अभिलेखों को सहेजता और संवारता है। ये अभिलेख आपका राशन कार्ड, बैंक पासबुक, आपकी डायरी कुछ भी हो सकता है। हमारे-आपके सहेजे ऐसे ही दस्तावेज और अभिलेख कई बार पूरे समाज और राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसे ही अभिलेखों के संरक्षण और प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए हर साल 9 जून को अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस मनाया जाता है।

डिजिटाइजेशन

हिमाचल के राजाओं की रियासत और सियासत से जुड़े दुर्लभ अभिलेख अब एक क्लिक पर पढ़े जा सकेंगे। अभिलेखों को बार-बार देखने से उनके नष्ट होने का भी अब कोई खतरा नहीं रहेगा। भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग ने सदियों पुराने अभिलेखों को संरक्षित करने की योजना तैयार की है। अभिलेखों को आधुनिक तकनीक की मदद से संरक्षित किया जा रहा है। अब प्रदेश के ऐतिहासिक दस्तावेजों और भूमि व संपत्तियों की खरीद-फरोख्त का रिकॉर्ड डिजिटल रूप में देखा जा सकेगा। एक क्लिक से ही प्रदेश के सदियों पुराने इतिहास के पन्ने तलाश किए जा सकेंगे। भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग का अभिलेखागार इस कार्य में जुट गया है। ब्रिटिश काल में शिमला में बने भवनों से जुड़े दस्तावेजों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था। अभी तक ऐसे दस्तावेजों को फाइलों में बांधकर कमरों में रखा गया था। इन दस्तावेजों में अंग्रेजों के जमाने की संपत्तियों की रजिस्ट्रियां भी शामिल हैं। ऐसे कुछ दस्तावेजों की हालत काफी खराब हो चुकी है। इसे सुरक्षित रखने के लिए ही अब इसकी डिजिटाइजेशन का कार्य शुरू किया गया है।

शोधकर्ताओं को मिलेगी मदद

अभिलेखों की डिजिटाइजेशन होने से शोधकर्ताओं को काफी मदद मिलेगी। इनकी डिजिटाइजेशन न होती तो शायद शोधककर्ताओं कई चीजों से वंचित रहना पड़ता। अब इससे उन्हें शोध करने में आसानी होगी। फाइलों को बार-बार खोलने और पन्नों को बदलने से उनके नष्ट होने का खतरा भी कम होगा।

बिहार अभिलेख भवन

बिहार अभिलेख भवन में रखे दस्तावेज न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश और विश्व के इतिहास के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। इसमें मुग़ल काल से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन और आजाद भारत की कहानी बतातीं तमाम तस्वीरें और पाठ्य सामग्री शामिल है। जमींदारी प्रथा के दस्तावेज, टोडरमल की डायरी, बापू के बिहार आगमन से जुड़े कई दुर्लभ दस्तावेज अभिलेखागार भवन की शोभा बढ़ाते हैं।

बेली रोड स्थित बिहार अभिलेख भवन में ऐतिहासिक और प्रशासनिक महत्व की पुस्तकों का विशाल संग्रह शोधार्थियों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। अभिलेख भवन की पुराभिलेखपाल की मानें तो पुराने दस्तावेजों को संग्रह और प्रकाशन को लेकर अभिलेखागार की परिकल्पना की गई थी। लगभग 2.3 एकड़ में बने भवन का उद्घाटन 23 अक्टूबर 1987 को तत्कालीन उप-राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने किया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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