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'''आवा''' ब्रह्मा (बर्मा) राज्य की प्राचीन राजधानी है जो ईरावदी नदी पर सागैंग नगर के संमुख विपरीत किनारे पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम यदनपुर, अर्थात्‌ बहुमूल्य पत्थरों का नगर' है। इस नगर की स्थापना ध्वस्त पगान नगर के उत्तराधिकारी नगर के रूप में 1364 ई. में थाडोमिन पाया द्वारा हुई थी। यहाँ निर्मित अनेक धार्मिक भवन पगान स्थित धार्मिक भवनों के ही समान हैं। आवा नगर लगभग चार शताब्दियों तक राजकीय केेंद्र था। इस काल में30 शासकों द्वारा राजसिंहासन सुशोभित हुआ। 1839 ई. के भूकंप में नगर खंडहर हो गया। परिषद्-भवन और राजकीय भवन के कुछ भागों के अवशेष अब भी विद्यमान हैं। अधिकांश धार्मिक भवन (बौद्ध) ध्वस्त अवस्था में हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=456 |url=}}</ref>  
'''आवा''' ब्रह्मा ([[बर्मा]]) राज्य की प्राचीन राजधानी का नाम है, जो ईरावदी नदी पर सागैंग नगर के संमुख विपरीत किनारे पर स्थित थी। इसका प्राचीन नाम 'यदनपुर' अर्थात्‌' बहुमूल्य पत्थरों का नगर' था।<br />
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*इस नगर की स्थापना ध्वस्त पगान नगर के उत्तराधिकारी नगर के रूप में 1364 ई. में थाडोमिन पाया द्वारा हुई थी।
*यहाँ निर्मित अनेक धार्मिक भवन पगान स्थित धार्मिक भवनों के ही समान हैं।
*आवा नगर लगभग चार शताब्दियों तक राजकीय गतिविधियों का केेंद्र था। इस काल में 30 शासकों द्वारा राजसिंहासन सुशोभित हुआ।
*सन [[1839]] ई. के [[भूकंप]] में यह नगर [[खंडहर]] हो गया। परिषद्-भवन और राजकीय भवन के कुछ भागों के [[अवशेष]] अब भी विद्यमान हैं। अधिकांश धार्मिक भवन ([[बौद्ध]]) ध्वस्त अवस्था में हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=456 |url=}}</ref>  


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Latest revision as of 12:04, 5 December 2020

आवा ब्रह्मा (बर्मा) राज्य की प्राचीन राजधानी का नाम है, जो ईरावदी नदी पर सागैंग नगर के संमुख विपरीत किनारे पर स्थित थी। इसका प्राचीन नाम 'यदनपुर' अर्थात्‌' बहुमूल्य पत्थरों का नगर' था।

  • इस नगर की स्थापना ध्वस्त पगान नगर के उत्तराधिकारी नगर के रूप में 1364 ई. में थाडोमिन पाया द्वारा हुई थी।
  • यहाँ निर्मित अनेक धार्मिक भवन पगान स्थित धार्मिक भवनों के ही समान हैं।
  • आवा नगर लगभग चार शताब्दियों तक राजकीय गतिविधियों का केेंद्र था। इस काल में 30 शासकों द्वारा राजसिंहासन सुशोभित हुआ।
  • सन 1839 ई. के भूकंप में यह नगर खंडहर हो गया। परिषद्-भवन और राजकीय भवन के कुछ भागों के अवशेष अब भी विद्यमान हैं। अधिकांश धार्मिक भवन (बौद्ध) ध्वस्त अवस्था में हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 456 |

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