स्तूप: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Adding category Category:भूला-बिसरा भारत (को हटा दिया गया हैं।))
Line 84: Line 84:
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]]
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]]
[[Category:पर्यटन कोश]]
[[Category:पर्यटन कोश]]
[[Category:भूला-बिसरा भारत]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 06:41, 12 May 2011

[[चित्र:Sanchi-Stupa-Sanchi.jpg|thumb|250px|बुद्ध स्तूप, सांची
Sanchi Stupa, Sanchi]]

स्तूप का शाब्दिक अर्थ है- 'किसी वस्तु का ढेर'। स्तूप का विकास ही संभवतः मिट्टी के ऐसे चबूतरे से हुआ, जिसका निर्माण मृतक की चिता के ऊपर अथवा मृतक की चुनी हुई अस्थियों के रखने के लिए किया जाता था। गौतम बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं, जन्म, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन तथा निर्वाण से सम्बन्धित स्थानों पर भी स्तूपों का निर्माण हुआ। स्तूप के 4 भेद हैं-

  1. शारीरिक स्तूप
  2. पारिभोगिक स्तूप
  3. उद्देशिका स्तूप और
  4. पूजार्थक स्तूप
  • स्तूप एक गुम्दाकार भवन होता था, जो बुद्ध से संबंधित सामग्री या स्मारक के रूप में स्थापित किया जाता था।
  • सम्राट अशोक ने भी स्तंम्भ बनवाये थे। साँची का पता सन 1818 ई. में 'जनरल टायलर' ने लगाया था।
  • विश्वप्रसिद्ध बौद्ध स्तूपों के लिए जाना जाने वाला साँची, विदिशा से 4 मील की दूरी पर 300 फीट ऊँची पहाड़ी पर है।
  • प्रज्ञातिष्य महानायक थैर्यन के अनुसार-यहाँ के बड़े स्तूप में स्वयं भगवान बुद्ध के तथा छोटे स्तूपों में भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य 'सारिपुत' (सारिपुत्र) तथा 'महामौद्गलायन' समेत कई अन्य बौद्ध भिक्षुओं के धातु रखे हैं। राजा तथा श्रद्धालु-जनता के सहयोग से यह निर्माण-कार्य हुआ।
स्तूप के प्रमुख अंग
वेदिका (रेलिंग) स्तूप की रक्षा के लिए
मेधि (कुर्सी) जिस पर स्तूप का मुख्य भाग आधारित होता है
अण्ड स्तूप का अर्द्ध-गोलाकार भाग
हर्मिका शिखर के अस्थि पात्र की रक्षा हेतु
छत्र अथवा छत्रावली धार्मिक चिन्ह का प्रतीक
यष्टि छत्र को सहारा देने के लिए

प्राचीन काल के कुछ प्रमुख स्तूप स्थल निम्नलिखित हैं-

पिपरावा

कला तथा स्थापत्य के क्षेत्र में सर्वप्राचीन किन्तु काफ़ी बड़ी उपलब्धि का परिचायक बस्ती जिला उत्तर प्रदेश में स्थित यह स्तूप प्राड़् मौर्य युगीन है, जिसका व्यास 116 फुट और चैड़ाई 22 फुट है। खुदाई के दौरान इस स्तूप के अन्दर एक मंजूषा में बुद्ध के अवशेष रखे पाए गए हैं।

भरहूत

1873 में 'अलेक्जेण्डर कनिंघम' द्वारा खोजा गया भरहुत स्तूप लगभग द्वितीय शती ई.पू. का है। भगवान बुद्ध के भस्मों के ऊपर निर्मित यह स्तूप मध्य प्रदेश के सतना ज़िले में स्थित है। इस स्मारक के निर्माण के अधीक्षक (नवकार्मिक) का नाम एक अभिलेख में दिया गया है। भरहुत स्तूप के लकड़ी के जंगलों को शुंग शासकों ने पत्थर के जंगलों में परिवर्तित किया।

सांची

मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले में स्थित सांची में प्रमुख स्तूपों की संख्या तीन है। सबसे बड़ा स्तूप 'महास्तूप' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्तूप का ढांचा तीसरी शताब्दी ई.पू. में अशोक द्वारा बनवाया गया, तत्पश्चात् शुंग शासकों द्वारा इसको विस्तृत किया गया। स्तूप का व्यास लगभग 40 मीटर और ऊंचाई 1650 मीटर है। पक्की ईटों की मूल संरचना पर शुंग काल में पत्थर का आवरण चढ़ाया गया। इसके एक ओर जंगले एवं तोरण द्वारा आंध्र सातवाहन युग में बनाये गये।

बोधगया

बिहार के बोधगया में स्थित यह स्तूप उत्तर मौर्ययुगीन है। सम्भवतः इस स्तूप की नींव अशोक द्वारा रखी गयी थी। यह स्तूप ग्रेनाइट या पत्थर के बने है। इसमें लगभग 30 जंगले हैं।

अमरावती

आन्ध्र प्रदेश के 'गुण्टूर ज़िले' में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है। अमरावती स्तूप का पता लगभग द्वितीय शताब्दी ई. पू. में 'कर्नल कालिन मैकेंजी' ने लगाया था। अमरावती स्तूप घंटाकृति में बना है। इस स्तूप में पाषाण के स्थान पर संगमरमर का प्रयोग किया गया है।

नागार्जुनकोण्डा

आन्ध्र प्रदेश के गुण्टूर ज़िले में स्थित नागार्जुनकोण्डा स्तूप 1926 में खोजा गया था। इसका निर्माण इक्ष्वाकु वंशीय शासकों ने किया था।

सारनाथ

वाराणसी के समीप सारनाथ नामक स्थान पर स्थित स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया था। ईट से बने पूरे स्तूप की ऊंचाई 128 फुट है। इसे 'घमेख स्तूप' और 'धर्मराजिक स्तूप' के नाम से भी जाना जाता है। इसकी एक विशेषता यह है कि, यह धरातल पर निर्मित है तथा इसमें अन्य स्तूपों की भांति चबूतरा नहीं मिलता।

नालन्दा

राजगृह से 5 मील दूर नालन्दा नामक बौद्ध स्थान पर निर्मित यह स्तूप अशोक द्वारा ही बनवाया गया था। भग्नावशेषों से ज्ञात होता है कि मूल स्तूप मध्य भाग में स्थित है तथा कालान्तर में उसमें और आकार जोड़े गए।

जग्गरयमपेट्ट

इक्ष्वाकु शासकों द्वारा निर्मित यह स्तूप आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में स्थित है। इस स्तूप का बाहरी गोल ढांचा ईटों से बना है तथा भीतरी भाग मिट्टी तथा ईटों की एक के बाद एक तहें लगाकर भरा गया है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

संबंधित लेख