जागीरदार प्रथा: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
|||
Line 6: | Line 6: | ||
सामन्तवादी चरित्र होने के कारण जागीरदार प्रथा से कुछ अर्द्ध स्वतंत्र सामन्त अस्तित्व में आए, जिससे केन्द्र सरकार कमजोर होने लगी। सुल्तान [[ग़यासुद्दीन बलबन]] ने इस प्रथा को कुछ हद तक नियंत्रित किया और सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने इसे समाप्त कर दिया। बाद में इसे सुल्तान [[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] ने दुबारा शुरू किया और उसके बाद यह प्रथा जारी रही। प्रारम्भिक [[मुग़ल]] शासकों (16वीं शताब्दी) ने अपने अधिकारियों को नक़द इनाम या वेतन देकर इसे समाप्त करना चाहा। लेकिन बाद के मुग़ल शासकों द्वारा इसे फिर से लागू करने के बाद उनका शासन कमजोर पड़ने लगा। | सामन्तवादी चरित्र होने के कारण जागीरदार प्रथा से कुछ अर्द्ध स्वतंत्र सामन्त अस्तित्व में आए, जिससे केन्द्र सरकार कमजोर होने लगी। सुल्तान [[ग़यासुद्दीन बलबन]] ने इस प्रथा को कुछ हद तक नियंत्रित किया और सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने इसे समाप्त कर दिया। बाद में इसे सुल्तान [[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] ने दुबारा शुरू किया और उसके बाद यह प्रथा जारी रही। प्रारम्भिक [[मुग़ल]] शासकों (16वीं शताब्दी) ने अपने अधिकारियों को नक़द इनाम या वेतन देकर इसे समाप्त करना चाहा। लेकिन बाद के मुग़ल शासकों द्वारा इसे फिर से लागू करने के बाद उनका शासन कमजोर पड़ने लगा। | ||
==प्रथा की समाप्ति== | ==प्रथा की समाप्ति== | ||
वर्तमान [[तमिलनाडु]] राज्य के [[अर्काट]] के तत्कालीन नवाब मुहम्मद अली ने [[इंग्लैण्ड]] की [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] को '[[बंगाल की खाड़ी]]' के किनारे 190 किलोमीटर लम्बी और 75 किलोमीटर चौड़ी जागीर दी थी। बाद में यही 'मद्रास प्रेज़िडेंसी' का केन्द्र बनी। ब्रिटिश शासन काल में, विशेषकर [[महाराष्ट्र]] में, पुरानी जागीरदारी सम्पत्तियों को आमतौर पर व्यक्तिगत परिवारों की निजी सम्पत्ति मान लिया गया। स्वतंत्रता के बाद [[भारत]] में इस अनुपस्थित भू-स्वामित्व प्रणाली को समाप्त करने के लिए क़ानून बनाये गए।। | वर्तमान [[तमिलनाडु]] राज्य के [[अर्काट]] के तत्कालीन नवाब मुहम्मद अली ने [[इंग्लैण्ड]] की [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] को '[[बंगाल की खाड़ी]]' के किनारे 190 किलोमीटर लम्बी और 75 किलोमीटर चौड़ी जागीर दी थी। बाद में यही 'मद्रास प्रेज़िडेंसी' का केन्द्र बनी। ब्रिटिश शासन काल में, विशेषकर [[महाराष्ट्र]] में, पुरानी जागीरदारी सम्पत्तियों को आमतौर पर व्यक्तिगत परिवारों की निजी सम्पत्ति मान लिया गया। स्वतंत्रता के बाद [[भारत]] में इस अनुपस्थित भू-स्वामित्व प्रणाली को समाप्त करने के लिए क़ानून बनाये गए।। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
Revision as of 09:36, 17 March 2013
जागीरदार प्रथा भारत में मुस्लिम शासन काल में विकसित (13वीं शताब्दी के प्रारम्भ में) हुई थी। यह भूमि की रैयतदारी प्रणाली थी, जिसमें किसी भूमि से लगान प्राप्त करने और उसके प्रशासन की ज़िम्मेदारी राज्य के एक अधिकारी को दी जाती थी। किसी जागीरदार को जागीर सौंपा जाना सशर्त या बिना शर्त भी हो सकता था।
प्रथा का विकास
'जागीरदार' फ़ारसी भाषा के शब्द 'जागीर', अर्थात भूमि और दार, अर्थात अधिकारी से मिलकर बना है। यह प्रथा भारत में मुस्लिमों के शासन काल में बहुत फली-फूली। इस समय यह प्रथा अधिकांश क्षेत्रों में व्याप्त थी और राज्य के शासन प्रबन्ध का महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी। सशर्त जागीर में जागीरदार को शासन के हित में कर वसूलने और सेना संगठित करने जैसे जनकार्य करने पड़ते थे। भूमि, जो कि 'इकता' कहलाती थी, आमतौर पर जीवन भर के लिए दी जाती थी और अधिकारी की मृत्यु के बाद जागीर फिर से शासन के अधिकार में चली जाती थी। जागीरदार को उत्तराधिकारी निश्चित रकम अदा करके जागीर का नवीनीकरण कर सकता था। यह प्रथा दिल्ली के प्रारम्भिक सुल्तानों ने शुरू की थी।
सामंतवादिता
सामन्तवादी चरित्र होने के कारण जागीरदार प्रथा से कुछ अर्द्ध स्वतंत्र सामन्त अस्तित्व में आए, जिससे केन्द्र सरकार कमजोर होने लगी। सुल्तान ग़यासुद्दीन बलबन ने इस प्रथा को कुछ हद तक नियंत्रित किया और सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने इसे समाप्त कर दिया। बाद में इसे सुल्तान फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने दुबारा शुरू किया और उसके बाद यह प्रथा जारी रही। प्रारम्भिक मुग़ल शासकों (16वीं शताब्दी) ने अपने अधिकारियों को नक़द इनाम या वेतन देकर इसे समाप्त करना चाहा। लेकिन बाद के मुग़ल शासकों द्वारा इसे फिर से लागू करने के बाद उनका शासन कमजोर पड़ने लगा।
प्रथा की समाप्ति
वर्तमान तमिलनाडु राज्य के अर्काट के तत्कालीन नवाब मुहम्मद अली ने इंग्लैण्ड की ईस्ट इंडिया कम्पनी को 'बंगाल की खाड़ी' के किनारे 190 किलोमीटर लम्बी और 75 किलोमीटर चौड़ी जागीर दी थी। बाद में यही 'मद्रास प्रेज़िडेंसी' का केन्द्र बनी। ब्रिटिश शासन काल में, विशेषकर महाराष्ट्र में, पुरानी जागीरदारी सम्पत्तियों को आमतौर पर व्यक्तिगत परिवारों की निजी सम्पत्ति मान लिया गया। स्वतंत्रता के बाद भारत में इस अनुपस्थित भू-स्वामित्व प्रणाली को समाप्त करने के लिए क़ानून बनाये गए।।
|
|
|
|
|