विश्व जनसंख्या दिवस: Difference between revisions

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भारत में हर एक मिनट में 25 बच्चे पैदा होते हैं। यह आंकड़ा उन बच्चों का है, जो अस्पतालों में जन्म लेते हैं। अभी इसमें गांवों और कस्बों के घरों में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या नहीं जुड़ी है। एक मिनट में 25 बच्चों का जन्म यह साफ करता है कि आज चाहे भारत में कितनी भी प्रगति हुई हो या भारत शिक्षित होने का दावा करे, किंतु यह भी एक सच्चाई है कि अब भी देश के लोगों में जागरुकता नाम मात्र की ही आई है। जागरुकता के नाम पर भारत में कई कार्यक्रम चलाए गए- 'हम दो हमारे दो' का नारा लगाया गया, लेकिन लोग 'हम दो हमारे दो' का बोर्ड तो दीवार पर लगा देख लेते हैं, लेकिन घर जाकर उसे बिल्कुल भूल जाते हैं और तीसरे की तैयारी में जुट जाते हैं। भारत में गरीबी, शिक्षा की कमी और बेरोजगारी ऐसे अहम कारक हैं, जिनकी वजह से जनसंख्या का यह विस्फोट प्रतिदिन होता जा रहा है। आज जनसंख्या विस्फोट का आतंक इस कदर छा चुका है कि 'हम दो हमारे दो' का नारा भी अब असफल सा हो गया है। इसलिए भारत सरकार ने नया नारा दिया है- "छोटा परिवार, संपूर्ण परिवार"। छोटे परिवार के कई फायदे हैं- बच्चों को अच्छी परवरिश मिलती है, अच्छी शिक्षा से एक बच्चा दो बच्चों के बराबर कमा सकता है, बच्चे और माँ का स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है, जिससे दवाइयों का अतिरिक्त खर्चा बचता है। यह ऐसे फायदे हैं, जो एक छोटे परिवार में होते हैं।<ref name="aa"/>
भारत में हर एक मिनट में 25 बच्चे पैदा होते हैं। यह आंकड़ा उन बच्चों का है, जो अस्पतालों में जन्म लेते हैं। अभी इसमें गांवों और कस्बों के घरों में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या नहीं जुड़ी है। एक मिनट में 25 बच्चों का जन्म यह साफ करता है कि आज चाहे भारत में कितनी भी प्रगति हुई हो या भारत शिक्षित होने का दावा करे, किंतु यह भी एक सच्चाई है कि अब भी देश के लोगों में जागरुकता नाम मात्र की ही आई है। जागरुकता के नाम पर भारत में कई कार्यक्रम चलाए गए- 'हम दो हमारे दो' का नारा लगाया गया, लेकिन लोग 'हम दो हमारे दो' का बोर्ड तो दीवार पर लगा देख लेते हैं, लेकिन घर जाकर उसे बिल्कुल भूल जाते हैं और तीसरे की तैयारी में जुट जाते हैं। भारत में गरीबी, शिक्षा की कमी और बेरोजगारी ऐसे अहम कारक हैं, जिनकी वजह से जनसंख्या का यह विस्फोट प्रतिदिन होता जा रहा है। आज जनसंख्या विस्फोट का आतंक इस कदर छा चुका है कि 'हम दो हमारे दो' का नारा भी अब असफल सा हो गया है। इसलिए भारत सरकार ने नया नारा दिया है- "छोटा परिवार, संपूर्ण परिवार"। छोटे परिवार के कई फायदे हैं- बच्चों को अच्छी परवरिश मिलती है, अच्छी शिक्षा से एक बच्चा दो बच्चों के बराबर कमा सकता है, बच्चे और माँ का स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है, जिससे दवाइयों का अतिरिक्त खर्चा बचता है। यह ऐसे फायदे हैं, जो एक छोटे परिवार में होते हैं।<ref name="aa"/>
====जनसंख्या की स्थिति====
====जनसंख्या की स्थिति====
सम्पूर्ण विश्व में [[चीन]] को अपनी 1.3 अरब जनसंख्या के चलते विश्व में प्रथम स्थान हासिल है। वहीं दूसरी ओर [[भारत]] भी अपनी 1.2 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे नंबर पर है। विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि अगर भारत की जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही तो 2030 तक उसे विश्व में प्रथम स्थान हासिल हो जायेगा। अभी हाल के जनसंख्या परिणामों के अनुसार भारत की आबादी 120 करोड़ से अधिक है, जो [[अमेरिका]], इंडोनेशिया, ब्राजील, [[पाकिस्तान]] और [[बांग्लादेश]] की कुल जनंसख्या से ज्यादा है। ध्यान देने योग्य है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे हों, परन्तु उनकी जनसँख्या विश्व के कई देशो की जनसँख्या से अधिक है, जैसे- [[तमिलनाडु]] की जनसँख्या [[फ़्रांस|फ़्रांस]] की जनसंख्या से अधिक है तो वहीं [[ओडिशा]] अर्जेंटीना से आगे है। [[मध्य प्रदेश]] की जनसंख्या [[थाईलैंड]] से ज्यादा है तो [[महाराष्ट्र]] मेक्सिको के बराबर आ रहा है। [[उत्तर प्रदेश]] ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो [[राजस्थान]] ने [[इटली]] को पछाड़ा है। [[गुजरात]] ने [[दक्षिण अफ्रीका]] को और [[पश्चिम बंगाल]] ने वियतनाम को पीछे छोड़ा है। यही नहीं भारत के छोटे-छोटे राज्यों, जैसे- [[झारखण्ड]], [[उत्तराखण्ड]], [[केरल]], [[आसाम]] ने भी कई देशों, जैसे- उगांडा, ऑस्ट्रिया, कनाडा, [[उज़्बेकिस्तान]] को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अपनी इस उपलब्धि के साथ यह कह सकते है कि भारत में जनसंख्या के आधार पर विश्व के कई देश बसते है। परन्तु यह भी सच है कि भारत के पास विश्व का मात्र 2.4 प्रतिशत क्षेत्र है, परिणामतः संसाधनों के मामले में हम कहीं ज़्यादा पीछे है, जिससे चिंतित होकर एक बार पूर्व ग्रामीण मंत्री रघुवंश प्रसाद ने यहाँ तक कह दिया था कि- "भले ही क्षेत्र और संसाधन के मामले में अमेरिका हमसे आगे हो, परन्तु जनसंख्या के कारण कई अमेरिका [[भारत]] में मौजूद है।"<ref name="ac">{{cite web |url=http://hindi.in.com/latest-news/news/Article-On-World-Population-Day-1446412-0.html|title=भारत में विश्व जनसंख्या दिवस के मायने|accessmonthday=09 जुलाई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}} </ref>
सम्पूर्ण विश्व में [[चीन]] को अपनी 1.3 अरब जनसंख्या के चलते विश्व में प्रथम स्थान हासिल है। वहीं दूसरी ओर [[भारत]] भी अपनी 1.2 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे नंबर पर है। विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि अगर भारत की जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही तो 2030 तक उसे विश्व में प्रथम स्थान हासिल हो जायेगा। अभी हाल के जनसंख्या परिणामों के अनुसार भारत की आबादी 120 करोड़ से अधिक है, जो [[अमेरिका]], इंडोनेशिया, ब्राजील, [[पाकिस्तान]] और [[बांग्लादेश]] की कुल जनंसख्या से ज्यादा है। ध्यान देने योग्य है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे हों, परन्तु उनकी जनसंख्या विश्व के कई देशो की जनसंख्या से अधिक है, जैसे- [[तमिलनाडु]] की जनसंख्या [[फ़्रांस|फ़्रांस]] की जनसंख्या से अधिक है तो वहीं [[ओडिशा]] अर्जेंटीना से आगे है। [[मध्य प्रदेश]] की जनसंख्या [[थाईलैंड]] से ज्यादा है तो [[महाराष्ट्र]] मेक्सिको के बराबर आ रहा है। [[उत्तर प्रदेश]] ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो [[राजस्थान]] ने [[इटली]] को पछाड़ा है। [[गुजरात]] ने [[दक्षिण अफ्रीका]] को और [[पश्चिम बंगाल]] ने वियतनाम को पीछे छोड़ा है। यही नहीं भारत के छोटे-छोटे राज्यों, जैसे- [[झारखण्ड]], [[उत्तराखण्ड]], [[केरल]], [[आसाम]] ने भी कई देशों, जैसे- उगांडा, ऑस्ट्रिया, कनाडा, [[उज़्बेकिस्तान]] को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अपनी इस उपलब्धि के साथ यह कह सकते है कि भारत में जनसंख्या के आधार पर विश्व के कई देश बसते है। परन्तु यह भी सच है कि भारत के पास विश्व का मात्र 2.4 प्रतिशत क्षेत्र है, परिणामतः संसाधनों के मामले में हम कहीं ज़्यादा पीछे है, जिससे चिंतित होकर एक बार पूर्व ग्रामीण मंत्री रघुवंश प्रसाद ने यहाँ तक कह दिया था कि- "भले ही क्षेत्र और संसाधन के मामले में अमेरिका हमसे आगे हो, परन्तु जनसंख्या के कारण कई अमेरिका [[भारत]] में मौजूद है।"<ref name="ac">{{cite web |url=http://hindi.in.com/latest-news/news/Article-On-World-Population-Day-1446412-0.html|title=भारत में विश्व जनसंख्या दिवस के मायने|accessmonthday=09 जुलाई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}} </ref>
==स्वास्थय सेवा पर असर==
==स्वास्थय सेवा पर असर==
देश की बढ़ती जनसंख्या से स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे ही है, अगर ऐसा माना जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक तरफ जहाँ चिकित्सा-पर्यटन को बढ़ावा देने की बात की जाती है तो वहीं देश का दूसरा पक्ष कुछ और ही बयान करता है, जिसका अंदाज़ा आये दिन देश के विभिन्न भागों से आये राजधानी [[दिल्ली]] के सरकारी अस्पतालों के आगे जमा भीड़ को देखकर लगाया जा सकता है, जहाँ एक छोटी बीमारी की इलाज के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को दिल्ली स्थित एम्स आना पड़ता है। भारत की स्वास्थ्य सेवा के प्रति जनसंख्या नियंत्रण पर लापरवाही की तस्वीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा मृत्यु-दर ज्यादा है। एक आकड़े के मुताबिक आजादी के इतने वर्षों के बाद भी इलाज़ के अभाव में प्रसव काल में 1000 मे 110 महिलाये दम तोड़ देती हैं। ध्यान देने योग्य है कि यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक ने प्रसव स्वास्थ्य सेवा पर चिंतित होते हुए कहा है कि- "विश्व भर में प्रतिदिन लगभग 800 से अधिक महिलाये प्रसव के समय दम तोड़ देती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की अगर माने तो प्रसव के समय दम तोड़ने वाली महिलाओ में 99 प्रतिशत महिलाये विकाशसील देशों से सम्बंधित हैं, जबकि प्रायः उन्हें बचाया जा सकता है।" सीआईए के आकड़ों के अनुरूप शिशु मृत्यु-दर सबसे कम मोनैको देश में है, जहाँ 1.8 बच्चे ही काल-ग्रसित होते हैं। वहीं [[भारत]] में स्थिति बिलकुल उल्टी है। भारत में आज भी एक हजार बच्चों में से 46 बच्चे काल के शिकार हो जाते हैं और 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।<ref name="ac"/>
देश की बढ़ती जनसंख्या से स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे ही है, अगर ऐसा माना जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक तरफ जहाँ चिकित्सा-पर्यटन को बढ़ावा देने की बात की जाती है तो वहीं देश का दूसरा पक्ष कुछ और ही बयान करता है, जिसका अंदाज़ा आये दिन देश के विभिन्न भागों से आये राजधानी [[दिल्ली]] के सरकारी अस्पतालों के आगे जमा भीड़ को देखकर लगाया जा सकता है, जहाँ एक छोटी बीमारी की इलाज के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को दिल्ली स्थित एम्स आना पड़ता है। भारत की स्वास्थ्य सेवा के प्रति जनसंख्या नियंत्रण पर लापरवाही की तस्वीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा मृत्यु-दर ज्यादा है। एक आकड़े के मुताबिक आजादी के इतने वर्षों के बाद भी इलाज़ के अभाव में प्रसव काल में 1000 मे 110 महिलाये दम तोड़ देती हैं। ध्यान देने योग्य है कि यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक ने प्रसव स्वास्थ्य सेवा पर चिंतित होते हुए कहा है कि- "विश्व भर में प्रतिदिन लगभग 800 से अधिक महिलाये प्रसव के समय दम तोड़ देती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की अगर माने तो प्रसव के समय दम तोड़ने वाली महिलाओ में 99 प्रतिशत महिलाये विकाशसील देशों से सम्बंधित हैं, जबकि प्रायः उन्हें बचाया जा सकता है।" सीआईए के आकड़ों के अनुरूप शिशु मृत्यु-दर सबसे कम मोनैको देश में है, जहाँ 1.8 बच्चे ही काल-ग्रसित होते हैं। वहीं [[भारत]] में स्थिति बिलकुल उल्टी है। भारत में आज भी एक हजार बच्चों में से 46 बच्चे काल के शिकार हो जाते हैं और 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।<ref name="ac"/>
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====रोजी-रोजगार पर प्रभाव====
====रोजी-रोजगार पर प्रभाव====
एक बच्चे के जन्म के पीछे एक महिला को कम से कम तीन माह की रोजी गंवानी होती है। जितने अधिक बच्चे होंगे, उतनी ही यह अवधि बढ़ती जायेगी। जनसंख्या बढ़ने से रोजगार के ऊपर दबाव और भी बढ़ेगा। देखा जाता है कि बेरोजगारों की पंजी में 8 लाख नाम दर्ज है, जबकि विगत वर्ष भर में मुश्किल से 6-7 हजार लोगों को रोजगार मिल पाया है। ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर घटने पर लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं। शहरों में एकाएक बढ़ी जनसंख्या के आवास की व्यवस्था संभव न होने से लोग झोंपड़-पट्टियों में या मलिन बस्तियाँ बना कर जैसे तैसे आवास करने लगते हैं। इससे मानव गरिमा को ठेस पहुँचती है और मानव अधिकारों का हनन होता है। अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों के कारण लोगों में बीमारी फैलती है। बच्चों को शिक्षा व सही परवरिश नहीं मिल पाती। दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई जनसंख्या से मानव के खाने-पीने की वस्तुओं पर भी असर पड़ा है और रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।
एक बच्चे के जन्म के पीछे एक महिला को कम से कम तीन माह की रोजी गंवानी होती है। जितने अधिक बच्चे होंगे, उतनी ही यह अवधि बढ़ती जायेगी। जनसंख्या बढ़ने से रोजगार के ऊपर दबाव और भी बढ़ेगा। देखा जाता है कि बेरोजगारों की पंजी में 8 लाख नाम दर्ज है, जबकि विगत वर्ष भर में मुश्किल से 6-7 हजार लोगों को रोजगार मिल पाया है। ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर घटने पर लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं। शहरों में एकाएक बढ़ी जनसंख्या के आवास की व्यवस्था संभव न होने से लोग झोंपड़-पट्टियों में या मलिन बस्तियाँ बना कर जैसे तैसे आवास करने लगते हैं। इससे मानव गरिमा को ठेस पहुँचती है और मानव अधिकारों का हनन होता है। अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों के कारण लोगों में बीमारी फैलती है। बच्चों को शिक्षा व सही परवरिश नहीं मिल पाती। दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई जनसंख्या से मानव के खाने-पीने की वस्तुओं पर भी असर पड़ा है और रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।
==जनसंख्या एक वरदान==
[[भारत]] की बढ़ती हुई जनसंख्या का एक दूसरा पहलू भी है। चिंता की बजाय यह आने वाले समय में वरदान भी बन सकती है। अगर हम पूंजीपतियों की मानें तो आने वाले समय में खपत की बहुलता के चलते भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार होगा। परिणामतः विश्व के बड़े-बड़े उद्योगपतियों की नजर भारत पर होगी। जिसकी शुरुआत वैश्वीकरण के नाम पर हो चुकी है। उदाहरणार्थ- ऑटोमोबाईल, शीतपेय जैसी कंपनियाँ भारत के हर नागरिक तक अपनी पहुँच बनाने को बेकरार है तो वहीं भारतीय बाजारों में मोबाईल कंपनियों की बाढ़-सी आ गयी है। और तो और भारतीय त्योहारों का भी पूंजीकरण कर समय-समय पर बाजार लोक लुभावने तरीके निकालकर उन्हें आकर्षित करने का प्रयास करता है। आर्थिक सुधार के नाम पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे भारत-सरकार विश्व के लिए हर संभव रास्ता खोलना चाह रही है। इतना ही नहीं दुनिया के बड़े-बड़े व्यापारी आज भारत में आना चाहते हैं। [[गुजरात]] इसका प्रमुख उदाहरण है। ध्यान देने योग्य है कि गुजरात सरकार कई विदेशी कंपनियों के साथ समझौते कर अपने यहाँ उनकी पूंजी निवेश कराकर विकास में भारत के सभी राज्यों से आगे है। इतना ही नहीं अगर हम एक गैर सरकारी संगठन के आकड़ों की मानें तो आने वाले समय में भारत में नवयुवकों, नवदम्पत्तियों की बहुलता होगी, जिसके चलते ये बाजार का केंद्र बिदु होंगे और इन्हें ध्यान में रखकर वस्तुओं का निर्माण किया जायेगा। भारत में सेवा-क्षेत्र सस्ता होने के कारण यहाँ पर प्रतिष्ठित कपनियों ने अपने-अपने कॉल सेंटर स्थापित किये हैं, जिससे लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध है। [[भारत]] अलग-अलग संस्कृतियों, भाषाओं और विविधता भरे विषयो वाला बाजार है। बाजार की यह विविधता ही वैश्वीकरण के दौर में मनोरंजन कंपनियों को स्थानीय भाषाओं और संस्कृति के हिसाब से वस्तुओ को  बेचने का मौका देती है। बहरहाल दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर जनसंख्या में हो रही बेतहासा वृद्धि के चलते सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे कि जनसख्या - विस्फोट के कारण हम किसी भयावता तस्वीर से रूबरू होने से  ना हो। इसके साथ - साथ भारत सरकार को प्राथमिक शिक्षा के अलावा कौशल-विकास एवं अनुसंधान - केन्द्रित शिक्षा पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है जिससे कि भारत में नए - नए आविष्कार और अनुसंधान को बढ़ावा मिले। क्योंकि जितने अधिक परिवार शिक्षित एवं जागरूक होंगे उतनी ही शिशु - मृत्युदर और प्रसव  के समय होने वाली महिलाओ की मौत की  सम्भावनाये भी कम होगी। जागरूकता को लेकर भारत - सरकार का  "पल्स-पोलियो उन्मूलन" का अभियान सराहनीय एवं अनुकरणीय है। ध्यान देने योग्य है विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत पल्स-पोलियो जैसी गंभीर बीमारी से मुक्त हो चुका है। इसी तर्ज़ पर सरकार को और अधिक प्रयास सभी क्षेत्रो चाहे वह गरीबी-उन्मूलन हो, शिक्षा हो अथवा स्वास्थ्य हो में करना चाहिए  ताकि विश्व जनसंख्या दिवस का भारत में मायने और अधिक बढ़ जाये। 


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Revision as of 11:43, 9 July 2013

विश्व जनसंख्या दिवस प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को मनाया जाता है। अत्यधिक तेज़ गति से बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से ही यह दिवस मनाया जाता है। यह जागरूकता मानव समाज की नई पीढ़ियों को बेहतर जीवन देने का संदेश देती है। बच्चों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, वातावरण सहित अन्य आवश्यक सुविधाएँ भविष्य में देने के लिए छोटे परिवार की महती आवश्यकता निरन्तर बढ़ती जा रही है। प्राकृतिक संसाधनों का समुचित दोहन कर मानव समाज को सर्वश्रेष्ठ बनाए रखने और हर इंसान के भीतर इन्सानियत को बरकरार रखने के लिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि 'विश्व जनसंख्या दिवस' की महत्ता को समझा जाए।

शुरुआत

'विश्व जनसंख्या दिवस' वर्ष 1987 से मनाया जा रहा है। 11 जुलाई, 1987 में विश्व की जनसंख्या 5 अरब को पार कर गई थी। तब संयुक्त राष्ट्र ने जनसंख्या वृद्धि को लेकर दुनिया भर में जागरूकता फैलाने के लिए यह दिवस मनाने का निर्णय लिया। तब से इस विशेष दिन को हर साल एक याद और परिवार नियोजन का संकल्प लेने के दिन के रूप में याद किया जाने लगा। हर राष्ट्र में इस दिन का विशेष महत्व है, क्यूँकि आज दुनिया के हर विकासशील और विकसित दोनों तरह के देश जनसंख्या विस्फोट से चिंतित हैं। विकासशील देश अपनी आबादी और जनसंख्या के बीच तालमेल बैठाने में मथ्थापच्ची कर रहे हैं, तो विकसित देश पलायन और रोजगार की चाह में बाहर से आकर रहने वाले शरणार्थियों की वजह से परेशान हैं।[1]

जनसंख्या विस्फोट

आज विश्व की जनसंख्या लगभग 7 अरब से भी ज़्यादा है। भारत की जनसंख्या लगभग 1 अरब, 21 करोड़, 1 लाख, 93 हज़ार, 422 है।[2] भारत की पिछले दशक की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत है। विश्व की कुल आबादी का आधा या कहें इससे भी अधिक हिस्सा एशियाई देशों में है। चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों में शिक्षा और जागरुकता की कमी की वजह से जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरे साफ दिखाई देने लगे हैं। स्थिति यह है कि अगर भारत ने अपनी जनसंख्या वृद्धि दर पर रोक नहीं लगाई तो वह 2030 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा।

भारत में बच्चों का जन्म

भारत में हर एक मिनट में 25 बच्चे पैदा होते हैं। यह आंकड़ा उन बच्चों का है, जो अस्पतालों में जन्म लेते हैं। अभी इसमें गांवों और कस्बों के घरों में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या नहीं जुड़ी है। एक मिनट में 25 बच्चों का जन्म यह साफ करता है कि आज चाहे भारत में कितनी भी प्रगति हुई हो या भारत शिक्षित होने का दावा करे, किंतु यह भी एक सच्चाई है कि अब भी देश के लोगों में जागरुकता नाम मात्र की ही आई है। जागरुकता के नाम पर भारत में कई कार्यक्रम चलाए गए- 'हम दो हमारे दो' का नारा लगाया गया, लेकिन लोग 'हम दो हमारे दो' का बोर्ड तो दीवार पर लगा देख लेते हैं, लेकिन घर जाकर उसे बिल्कुल भूल जाते हैं और तीसरे की तैयारी में जुट जाते हैं। भारत में गरीबी, शिक्षा की कमी और बेरोजगारी ऐसे अहम कारक हैं, जिनकी वजह से जनसंख्या का यह विस्फोट प्रतिदिन होता जा रहा है। आज जनसंख्या विस्फोट का आतंक इस कदर छा चुका है कि 'हम दो हमारे दो' का नारा भी अब असफल सा हो गया है। इसलिए भारत सरकार ने नया नारा दिया है- "छोटा परिवार, संपूर्ण परिवार"। छोटे परिवार के कई फायदे हैं- बच्चों को अच्छी परवरिश मिलती है, अच्छी शिक्षा से एक बच्चा दो बच्चों के बराबर कमा सकता है, बच्चे और माँ का स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है, जिससे दवाइयों का अतिरिक्त खर्चा बचता है। यह ऐसे फायदे हैं, जो एक छोटे परिवार में होते हैं।[1]

जनसंख्या की स्थिति

सम्पूर्ण विश्व में चीन को अपनी 1.3 अरब जनसंख्या के चलते विश्व में प्रथम स्थान हासिल है। वहीं दूसरी ओर भारत भी अपनी 1.2 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे नंबर पर है। विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि अगर भारत की जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही तो 2030 तक उसे विश्व में प्रथम स्थान हासिल हो जायेगा। अभी हाल के जनसंख्या परिणामों के अनुसार भारत की आबादी 120 करोड़ से अधिक है, जो अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल जनंसख्या से ज्यादा है। ध्यान देने योग्य है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे हों, परन्तु उनकी जनसंख्या विश्व के कई देशो की जनसंख्या से अधिक है, जैसे- तमिलनाडु की जनसंख्या फ़्रांस की जनसंख्या से अधिक है तो वहीं ओडिशा अर्जेंटीना से आगे है। मध्य प्रदेश की जनसंख्या थाईलैंड से ज्यादा है तो महाराष्ट्र मेक्सिको के बराबर आ रहा है। उत्तर प्रदेश ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो राजस्थान ने इटली को पछाड़ा है। गुजरात ने दक्षिण अफ्रीका को और पश्चिम बंगाल ने वियतनाम को पीछे छोड़ा है। यही नहीं भारत के छोटे-छोटे राज्यों, जैसे- झारखण्ड, उत्तराखण्ड, केरल, आसाम ने भी कई देशों, जैसे- उगांडा, ऑस्ट्रिया, कनाडा, उज़्बेकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अपनी इस उपलब्धि के साथ यह कह सकते है कि भारत में जनसंख्या के आधार पर विश्व के कई देश बसते है। परन्तु यह भी सच है कि भारत के पास विश्व का मात्र 2.4 प्रतिशत क्षेत्र है, परिणामतः संसाधनों के मामले में हम कहीं ज़्यादा पीछे है, जिससे चिंतित होकर एक बार पूर्व ग्रामीण मंत्री रघुवंश प्रसाद ने यहाँ तक कह दिया था कि- "भले ही क्षेत्र और संसाधन के मामले में अमेरिका हमसे आगे हो, परन्तु जनसंख्या के कारण कई अमेरिका भारत में मौजूद है।"[3]

स्वास्थय सेवा पर असर

देश की बढ़ती जनसंख्या से स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे ही है, अगर ऐसा माना जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक तरफ जहाँ चिकित्सा-पर्यटन को बढ़ावा देने की बात की जाती है तो वहीं देश का दूसरा पक्ष कुछ और ही बयान करता है, जिसका अंदाज़ा आये दिन देश के विभिन्न भागों से आये राजधानी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के आगे जमा भीड़ को देखकर लगाया जा सकता है, जहाँ एक छोटी बीमारी की इलाज के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को दिल्ली स्थित एम्स आना पड़ता है। भारत की स्वास्थ्य सेवा के प्रति जनसंख्या नियंत्रण पर लापरवाही की तस्वीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा मृत्यु-दर ज्यादा है। एक आकड़े के मुताबिक आजादी के इतने वर्षों के बाद भी इलाज़ के अभाव में प्रसव काल में 1000 मे 110 महिलाये दम तोड़ देती हैं। ध्यान देने योग्य है कि यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक ने प्रसव स्वास्थ्य सेवा पर चिंतित होते हुए कहा है कि- "विश्व भर में प्रतिदिन लगभग 800 से अधिक महिलाये प्रसव के समय दम तोड़ देती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की अगर माने तो प्रसव के समय दम तोड़ने वाली महिलाओ में 99 प्रतिशत महिलाये विकाशसील देशों से सम्बंधित हैं, जबकि प्रायः उन्हें बचाया जा सकता है।" सीआईए के आकड़ों के अनुरूप शिशु मृत्यु-दर सबसे कम मोनैको देश में है, जहाँ 1.8 बच्चे ही काल-ग्रसित होते हैं। वहीं भारत में स्थिति बिलकुल उल्टी है। भारत में आज भी एक हजार बच्चों में से 46 बच्चे काल के शिकार हो जाते हैं और 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।[3]

शिशु मृत्यु दर

बच्चों को जन्म देने वाली मां के शरीर से जब बार-बार जन्म लेते बच्चों के रूप में प्राणिक तत्व बाहर निकलता है, तब वह क्रमश: अधिक कमजोर बच्चों को जन्म देने को विवश होती है। ये कमजोर बच्चे अगर एक वर्ष की उम्र तक नहीं बच पाते, तो हमारी शिशु मृत्यु दर बढ़ जाती है। शिशु मृत्यु दर फिलहाल छत्तीसगढ़ में 70 प्रतिशत प्रति हजार जीवित जन्म है, जो कि ग्रामीण क्षेत्र में, जहाँ जन्म दर अधिक है और शिक्षा का स्तर कम है, 85 है, तथा शहरों में 51 है। शिशु को जन्म देते हुए कमजोर माता की मृत्यु भी हो सकती है। यहाँ अधिकतर प्रसव घरों में अप्रशिक्षित दाई के द्वारा होता रहा है, जहाँ भावी माता की आकस्मिक परिचर्या, रक्तदान, शल्य चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं होती। आज भी छग में 14 लाख ग्रामीण परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीते हैं, ऐसे में माता की खुराक में तथा अधिक बच्चों वाले परिवार में खानपान की अपर्याप्तता तो बनी ही रहती है।[4]

रोजी-रोजगार पर प्रभाव

एक बच्चे के जन्म के पीछे एक महिला को कम से कम तीन माह की रोजी गंवानी होती है। जितने अधिक बच्चे होंगे, उतनी ही यह अवधि बढ़ती जायेगी। जनसंख्या बढ़ने से रोजगार के ऊपर दबाव और भी बढ़ेगा। देखा जाता है कि बेरोजगारों की पंजी में 8 लाख नाम दर्ज है, जबकि विगत वर्ष भर में मुश्किल से 6-7 हजार लोगों को रोजगार मिल पाया है। ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर घटने पर लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं। शहरों में एकाएक बढ़ी जनसंख्या के आवास की व्यवस्था संभव न होने से लोग झोंपड़-पट्टियों में या मलिन बस्तियाँ बना कर जैसे तैसे आवास करने लगते हैं। इससे मानव गरिमा को ठेस पहुँचती है और मानव अधिकारों का हनन होता है। अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों के कारण लोगों में बीमारी फैलती है। बच्चों को शिक्षा व सही परवरिश नहीं मिल पाती। दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई जनसंख्या से मानव के खाने-पीने की वस्तुओं पर भी असर पड़ा है और रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।

जनसंख्या एक वरदान

भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या का एक दूसरा पहलू भी है। चिंता की बजाय यह आने वाले समय में वरदान भी बन सकती है। अगर हम पूंजीपतियों की मानें तो आने वाले समय में खपत की बहुलता के चलते भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार होगा। परिणामतः विश्व के बड़े-बड़े उद्योगपतियों की नजर भारत पर होगी। जिसकी शुरुआत वैश्वीकरण के नाम पर हो चुकी है। उदाहरणार्थ- ऑटोमोबाईल, शीतपेय जैसी कंपनियाँ भारत के हर नागरिक तक अपनी पहुँच बनाने को बेकरार है तो वहीं भारतीय बाजारों में मोबाईल कंपनियों की बाढ़-सी आ गयी है। और तो और भारतीय त्योहारों का भी पूंजीकरण कर समय-समय पर बाजार लोक लुभावने तरीके निकालकर उन्हें आकर्षित करने का प्रयास करता है। आर्थिक सुधार के नाम पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे भारत-सरकार विश्व के लिए हर संभव रास्ता खोलना चाह रही है। इतना ही नहीं दुनिया के बड़े-बड़े व्यापारी आज भारत में आना चाहते हैं। गुजरात इसका प्रमुख उदाहरण है। ध्यान देने योग्य है कि गुजरात सरकार कई विदेशी कंपनियों के साथ समझौते कर अपने यहाँ उनकी पूंजी निवेश कराकर विकास में भारत के सभी राज्यों से आगे है। इतना ही नहीं अगर हम एक गैर सरकारी संगठन के आकड़ों की मानें तो आने वाले समय में भारत में नवयुवकों, नवदम्पत्तियों की बहुलता होगी, जिसके चलते ये बाजार का केंद्र बिदु होंगे और इन्हें ध्यान में रखकर वस्तुओं का निर्माण किया जायेगा। भारत में सेवा-क्षेत्र सस्ता होने के कारण यहाँ पर प्रतिष्ठित कपनियों ने अपने-अपने कॉल सेंटर स्थापित किये हैं, जिससे लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध है। भारत अलग-अलग संस्कृतियों, भाषाओं और विविधता भरे विषयो वाला बाजार है। बाजार की यह विविधता ही वैश्वीकरण के दौर में मनोरंजन कंपनियों को स्थानीय भाषाओं और संस्कृति के हिसाब से वस्तुओ को  बेचने का मौका देती है। बहरहाल दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर जनसंख्या में हो रही बेतहासा वृद्धि के चलते सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे कि जनसख्या - विस्फोट के कारण हम किसी भयावता तस्वीर से रूबरू होने से  ना हो। इसके साथ - साथ भारत सरकार को प्राथमिक शिक्षा के अलावा कौशल-विकास एवं अनुसंधान - केन्द्रित शिक्षा पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है जिससे कि भारत में नए - नए आविष्कार और अनुसंधान को बढ़ावा मिले। क्योंकि जितने अधिक परिवार शिक्षित एवं जागरूक होंगे उतनी ही शिशु - मृत्युदर और प्रसव  के समय होने वाली महिलाओ की मौत की  सम्भावनाये भी कम होगी। जागरूकता को लेकर भारत - सरकार का  "पल्स-पोलियो उन्मूलन" का अभियान सराहनीय एवं अनुकरणीय है। ध्यान देने योग्य है विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत पल्स-पोलियो जैसी गंभीर बीमारी से मुक्त हो चुका है। इसी तर्ज़ पर सरकार को और अधिक प्रयास सभी क्षेत्रो चाहे वह गरीबी-उन्मूलन हो, शिक्षा हो अथवा स्वास्थ्य हो में करना चाहिए  ताकि विश्व जनसंख्या दिवस का भारत में मायने और अधिक बढ़ जाये। 


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 एक विस्फोट जो प्रतिदिन होता है (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 जुलाई, 2013।
  2. विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 जुलाई, 2013।
  3. 3.0 3.1 भारत में विश्व जनसंख्या दिवस के मायने (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 जुलाई, 2013। 
  4. विश्व जनसंख्या दिवस पर कुछ सवाल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 जुलाई, 2013।

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