बुकेफेला: Difference between revisions

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'''बुकेफेला''' नाम के नगर की स्थापना [[यवन]] राजा 'अलक्षेंद्र' ([[सिकन्दर]]) ने की थी। यह नगर 326 ई. पू. में [[झेलम नदी]] के किनारे बसाया गया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=640|url=}}</ref>
'''बुकेफेला''' नाम के नगर की स्थापना [[यवन]] राजा 'अलक्षेंद्र' ([[सिकन्दर]]) ने की थी। यह नगर 326 ई. पू. में [[झेलम नदी]] के किनारे बसाया गया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=640|url=}}</ref>


*बुकेफेला, अलक्षेंद्र के प्रिय घोड़े का नाम था और [[भारत]] के वीर राजा [[पुरु]] या पोरस के साथ युद्ध के पश्चात इस घोड़े की मृत्यु इसी स्थान पर हुई थी।
*बुकेफेला, अलक्षेंद्र के प्रिय घोड़े का नाम था और [[भारत]] के वीर राजा [[पुरु]] या पोरस के साथ युद्ध के पश्चात् इस घोड़े की मृत्यु इसी स्थान पर हुई थी।
*घोड़े की स्मृति में ही इस नगर का नाम बुकेफेला रखा गया था।
*घोड़े की स्मृति में ही इस नगर का नाम बुकेफेला रखा गया था।
*इतिहासकार विंसेंट स्मिथ के अनुसार यह वर्तमान झेलम नाम के नगर (पश्चिमी [[पाकिस्तान]]) के स्थान पर बसा हुआ था।
*इतिहासकार विंसेंट स्मिथ के अनुसार यह वर्तमान झेलम नाम के नगर (पश्चिमी [[पाकिस्तान]]) के स्थान पर बसा हुआ था।

Latest revision as of 07:40, 23 June 2017

बुकेफेला नाम के नगर की स्थापना यवन राजा 'अलक्षेंद्र' (सिकन्दर) ने की थी। यह नगर 326 ई. पू. में झेलम नदी के किनारे बसाया गया था।[1]

  • बुकेफेला, अलक्षेंद्र के प्रिय घोड़े का नाम था और भारत के वीर राजा पुरु या पोरस के साथ युद्ध के पश्चात् इस घोड़े की मृत्यु इसी स्थान पर हुई थी।
  • घोड़े की स्मृति में ही इस नगर का नाम बुकेफेला रखा गया था।
  • इतिहासकार विंसेंट स्मिथ के अनुसार यह वर्तमान झेलम नाम के नगर (पश्चिमी पाकिस्तान) के स्थान पर बसा हुआ था।
  • बुकेफेला के चिन्ह नगर के पश्चिम की ओर एक विस्तृत टीले के रूप में आज भी देखे जा सकेते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 640 |

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