विश्व वानिकी दिवस

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:53, 28 January 2015 by गोविन्द राम (talk | contribs) (''''विश्व वानिकी दिवस''' (अंग्रेज़ी: ''World Forest Day'') प्रतिवर्ष...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

विश्व वानिकी दिवस (अंग्रेज़ी: World Forest Day) प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। विश्व वानिकी दिवस पहली बार वर्ष 1971 ई. में इस उद्देश्य से मनाया गया था कि दुनिया के तमाम देश अपनी मातृभूमि की मिट्टी और वन - सम्पदा का महत्व समझे तथा अपने - अपने देश के वनों और जंगलों का संरक्षण करें। अगर हम भारत की बात करें तो 22.7% भूमि पर ही वनों और जंगलों का अस्तित्व रह गया। भारत में वन महोत्सव जुलाई 1950 से ही मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत तत्कालीन गृहमंत्री कुलपति कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने की थी।

उद्देश्य

विश्व वानिकी दिवस का उद्देश्य है कि विश्व के सभी देश अपनी वन-सम्पदा की तरफ ध्यान दें और वनों को संरक्षण प्रदान करें। भारत में भी वन-सम्पदा पर्याप्त रूप से है। भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22.7 %) पर वन पाए जाते हैं। वर्तमान समय में भारत 19.39 % भूमि पर वनों का विस्तार है और छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज्यादा वन-सम्पदा है उसके बाद क्रमश : मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य में। भारत सरकार द्वारा सन 1952 ई . में निर्धारित "राष्ट्रीय वन नीति" के तहत देश के 33.3 % क्षेत्र पर वन होने चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। वन-भूमि पर उद्योग-धंधों तथा मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकड़ियों की बढती माँग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण है। इसलिए अब समय आ गया है कि देश की "राष्ट्रीय निधि" को बचाए और इनका संरक्षण करें। हमें वृक्षारोपण (पेड़-पौधे लगाना) को बढ़ावा देना चाहिए। इसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध पर्यावरणविद कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने कहा था कि -"वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है।"

इतिहास

विश्व वानिकी दिवस मनाने का विचार 1971 में यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं महासभा में आया। वानिकी के तीन महत्वपूर्ण तत्वों- सुरक्षा, उत्पादन और वनविहार के बारे में लोगों को जानकारियां देने के लिए उसी साल बाद में 21 मार्च के दिन को यानि दक्षिणी गोलार्ध में शरद विषव और दक्षिण गोलार्ध में वसंत विषव के दिन को चुना गया। वन प्रागैतिहासिक काल से ही मानवजाति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। वन का मतलब केवल पेड़ नहीं है बल्कि यह एक संपूर्ण जटिल जीवंत समुदाय है। वन की छतरी के नीचे कई सारे पेड़ और जीव-जंतु रहते हैं। वनभूमि जीवाणु, कवक जैसे कई प्रकार के अकशेरूकी जीवों के घर हैं। ये जीव भूमि और वन में पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वनों से लाभ

वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव काग़ज़ के लिए लकड़ी, सेलोफेन, प्लास्टिक, रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद, रबर के पेड़ से रबर आदि। फल, सुपारी और मसाले भी वनों से एकत्र किए जाते हैं। कर्पूर, सिनचोना जैसे कई औषधीय पौधे भी वनों में ही पाये जाते हैं। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रखती है और इस प्रकार वह भारी बारिश के दिनों में मृदा का अपरदन और बाढ भी रोकती हैं। पेड़, कार्बन डाइ आक्साइड अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिसकी मानवजाति को सांस लेने के लिए जरूरत पड़ती है। वनस्पति स्थानीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती है। पेड़ पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और जंगली जंतुओं को आश्रय प्रदान करते हैं। वे सभी जीवों को सूर्य की गर्मी से बचाते हैं और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते हैं। वन प्रकाश का परावर्तन घटाते हैं, ध्वनि को नियंत्रित करते हैं और हवा की दिशा को बदलने एवं गति को कम करने में मदद करते हैं। इसी प्रकार वन्यजीव भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये हमारी जीवनशैली के महत्वपूर्ण अंग हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः