धन्यवती: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''धन्यवती''' बर्मा के प्राचीन अराकान के एक भारतीय र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replace - "राजनैतिक" to "राजनीतिक")
 
Line 3: Line 3:
*146 ई. में धन्यवती के [[हिन्दू]] राजा चन्द्रसूर्य के शासन काल में [[बुद्ध]] की एक प्रसिद्ध मूर्ति 'महामुनि' नामक गढ़ी गई थी, जिसे समस्त ऐतिहासिक काल में अराकान का इष्टदेव माना जाता रहा था।
*146 ई. में धन्यवती के [[हिन्दू]] राजा चन्द्रसूर्य के शासन काल में [[बुद्ध]] की एक प्रसिद्ध मूर्ति 'महामुनि' नामक गढ़ी गई थी, जिसे समस्त ऐतिहासिक काल में अराकान का इष्टदेव माना जाता रहा था।
*789 ई. में महातैनचन्द्र ने धन्यवती को छोड़कर [[वैशाली]] में अपनी राजधानी बनाई।
*789 ई. में महातैनचन्द्र ने धन्यवती को छोड़कर [[वैशाली]] में अपनी राजधानी बनाई।
*ऐसा जान पड़ता है कि महातैनचन्द्र के [[पिता]] सूर्यकेतु के राज्यकाल में किसी राजनैतिक क्रांति या युद्ध के कारण धन्यवती की स्थिति बिगड़ गई थी।
*ऐसा जान पड़ता है कि महातैनचन्द्र के [[पिता]] सूर्यकेतु के राज्यकाल में किसी राजनीतिक क्रांति या युद्ध के कारण धन्यवती की स्थिति बिगड़ गई थी।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Latest revision as of 12:26, 2 September 2013

धन्यवती बर्मा के प्राचीन अराकान के एक भारतीय राज्य की राजधानी थी, जिसका अभिज्ञान वर्तमान राखेंगम्यू से किया गया है। इस राज्य की स्थापना ब्रह्मदेव के अन्य भारतीय उपनिवेशों से बहुत पहले ही, ई. सन से कई सौ वर्ष पूर्व, हुई थी।

  • 146 ई. में धन्यवती के हिन्दू राजा चन्द्रसूर्य के शासन काल में बुद्ध की एक प्रसिद्ध मूर्ति 'महामुनि' नामक गढ़ी गई थी, जिसे समस्त ऐतिहासिक काल में अराकान का इष्टदेव माना जाता रहा था।
  • 789 ई. में महातैनचन्द्र ने धन्यवती को छोड़कर वैशाली में अपनी राजधानी बनाई।
  • ऐसा जान पड़ता है कि महातैनचन्द्र के पिता सूर्यकेतु के राज्यकाल में किसी राजनीतिक क्रांति या युद्ध के कारण धन्यवती की स्थिति बिगड़ गई थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 462 |


संबंधित लेख