अली वर्दी ख़ाँ: Difference between revisions

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Latest revision as of 06:56, 7 January 2020

अली वर्दी ख़ाँ (1740-1756 ई.) का मूल नाम 'मिर्ज़ा मुहम्मद ख़ाँ' था। उसको बंगाल के नवाब शुजाउद्दीन (1725-1739 ई.) ने मिट्टी से उठाकर आदमी बना दिया और वह अली वर्दी या अलह वर्दी ख़ाँ के नाम से मशहूर हुआ। नवाब शुजाउद्दौला की मृत्यु के समय अली वर्दी ख़ाँ बिहार में नायब नाज़िम (वित्त विभाग का मुख्य अधिकारी) था, जो उस समय बंगाल का एक हिस्सा था।

बंगाल का नवाब

नवाब शुजाउद्दीन के बाद उसका बेटा सरफराज ख़ाँ बंगाल का नवाब बना। इससे कुछ ही पहले नादिरशाह की चढ़ाई हुई थी और उसने दिल्ली को लूटा था, जिसके कारण पूरा मुग़ल प्रशासन हिल गया था। इस गड़बड़ी से लाभ उठाकर अली वर्दी ख़ाँ ने घूस देकर दिल्ली से एक फ़रमान प्राप्त कर लिया, जिसके द्वारा सरफराज ख़ाँ को हटाकर उसकी जगह अली वर्दी ख़ाँ को बंगाल का नवाब बनाया गया था। अपने भाई हाज़ी अहमद और जगत सेठ की सहायता से अली वर्दी ख़ाँ ने नवाब सरफराज ख़ाँ के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और 1740 ई. में राजमहल के निकट गिरिया की लड़ाई में उसे हराकर मार डाला और बंगाल के नवाब की मसनद (गद्दी) पर क़ाबिज़ हो गया। बादशाह को नज़राने में क़ीमती चीज़ें भेजकर उसने दिल्ली दरबार से नवाब बंगाल के रूप में फिर से सनद प्राप्त कर ली।

योग्य प्रशासक और वीर योद्धा

इसके बाद उसने बंगाल पर 16 वर्ष (1740-56 ई.) तक लगभग एक स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य किया। यद्यपि उसने नवाबी बेईमानी से प्राप्त की थी, तथापि उसमें कुछ अच्छे गुण भी थे। अपने प्रारम्भिक जीवन में वह योग्य प्रशासक और वीर योद्धा था। बंगाल में जो यूरोपीय कम्पनियाँ व्यापार करती थीं, उनके साथ उसका व्यवहार पक्षपातहीन था। उसने उनको आपस में लड़कर राज्य की शान्ति भंग करने की इजाज़त नहीं दी। लेकिन मराठे उसे बराबर परेशान करते रहे। वे प्राय: प्रतिवर्ष बंगाल पर आक्रमण करते थे।

मृत्यु

अली वर्दी ख़ाँ मराठा आक्रमण रोकने में असमर्थ रहा, हालाँकि उसने मराठा सरदार भास्कर पंडित की दग़ाबाज़ी से हत्या कर दी थी। अन्त में अली वर्दी ख़ाँ ने मराठों से 1751 ई. में संधि कर ली। संधि की शर्तों के अनुसार अली वर्दी ख़ाँ ने उड़ीसा के राजस्व का एक हिस्सा और 12,00,000 रुपए वार्षिक चौक देना स्वीकार किया। उसके बाद उसने 6 वर्ष शान्ति से राज्य किया और 1756 ई. में 80 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। उसकी मृत्यु के बाद उसका नाती सिराजुद्दौला नवाब बना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 53।


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