विशाख (नाटक)

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:42, 16 November 2012 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''विशाख नाटक''' हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक और साहित्यका...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

विशाख नाटक हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक और साहित्यकार जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखा गया है। इस नाटक के द्वारा जयशंकर प्रसाद इस तथ्य को स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि बौद्ध विहारों के भस्म होने से 'तथागत' (गौतम बुद्ध) की महत्ता को किसी प्रकार का धक्का न पहुँचा। बुद्ध तो पूर्ववत् भगवान के रूप में उपास्या बने रहे।

जयशंकर प्रसाद तथागत के उन गुणों को जिनके द्वारा उन्हें भगवान की उपाधि प्राप्त हुई थी, ढूँढ निकालते हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ पात्र प्रेमानन्द भगवान के लक्षण देते हुए कहता है-

'मान लूँ क्यों न उसे भगवान।
नर हो या किन्नर कोई हो निर्बल या बलवान,
किन्तु दोष करुणा का जिसका हो पूरा, दे दान।
मान लूँ क्यों न उसे भगवान।
विश्व वेदना का जो सुख से करता है आह्वान,
तृण से त्रयर्स्त्रिश तक जिसको सम सत्ता का भान।
मान लूँ क्यों न उसे भगवान।
मोह नहीं है किन्तु प्रेम का करता है सम्मान,
द्वेषी नहीं किसी का, तब सब क्यों न करें गुण-गान।
मान लूँ क्यों न उसे भगवान।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः