रूमी ख़ाँ

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रूमी ख़ाँ भारतीय इतिहास में एक श्रेष्ठ तोपची के रूप में प्रसिद्ध है। गुजरात के शासक बहादुर शाह ने टर्की के कुशल तोपची रूमी ख़ाँ की सहायता से एक बेहतर तोपखाने का निर्माण करवाया था। जब 1534 ई. में हुमायूँ ने गुजरात पर हमला किया, तब वहाँ का शासक बहादुर शाह भाग गया और उसका तोपची रूमी ख़ाँ हुमायूँ की सेना मे शामिल हो गया।

  • गुजरात के व्यापार और तटीय क्षेत्रों पर बढ़ते हुए पुर्तग़ाली खतरे को देखकर गुजरात के सुल्तान ने बहादुर शाह उस्मानी खलीफ़ा के पास एक प्रतिनिधिमंडल भेजकर उसकी जीतों पर उसे बधाइयाँ दीं और उसकी सहायता माँगी। बदले में उस्मानी खलीफ़ा ने उन काफिरों अर्थात पुर्तग़ालियों से टकराने की इच्छा व्यक्त की, जिन्होंने अरब के तटों में अशांति मचा रखी थी। इसके बाद से दोनों देशों के बीच प्रतिनिधिमंडलों और पत्रों का आना-जाना लगातार चलता रहा।
  • तुर्कों ने लाल सागर से पुर्तग़ालियों को बाहर फेंक दिया और 1529 ई. में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह की मदद के लिए सुलेमान रईस की कमान में एक बड़ा बेड़ा भेजा गया। बहादुर शाह ने उनका खूब स्वागत किया तथा दो तुर्क अधिकारियों को भारतीय नाम देकर उन्हें क्रमश: सूरत और दीव का सूबेदार बना दिया। इन दोनों में रूमी ख़ाँ ने आगे चलकर उस्ताद तोपची के रूप में बहुत नाम कमाया।
  • 1531 ई. में स्थानीय अधिकारियों से साँठ-गाँठ करके पुर्तग़ालियों ने दमन और दीव पर हमला किया, पर उस्मानी कमानदार रूमी ख़ाँ ने हमले को नाकाम बना दिया। लेकिन समुद्र तट पर और नीचे की ओर चौल में पुर्तग़ालियों ने एक क़िला बना ही लिया। गुजरात-तुर्क गँठजोड़ के मजबूत होने से पहले गुजरात के लिए एक और बड़ा खतरा मुग़लों की ओर से पैदा हुआ।


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