एदेस्सा

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एदेस्सा 1. मकदूनिया की प्राचीन राजधानी जो राज्य के बीच थेसालोनिका से 26 मील पश्चिम बसी थी। फ़िलिप द्वितीय ने राजधानी वहाँ से हटाकर पेल्ला कर दी परंतु एदेस्सा फिर भी मकदूनिया के राजाओं की कब्रगाह बना रहा। स्वयं फ़िलिप की पुत्री के विवाह के अवसर पर उसकी हत्या एदेस्सा में हुई जहाँ वह दफनाया गया।

2. एदेस्सा उत्तर-पश्चिमी मेसोपोतामिया के एक प्राचीन नगर का ग्रीक नाम था। आज उसे उर्हाई या उर्फा कहते हैं। प्लिनी के अनुसार एदेस्सा का दूसरा नाम अंतिओक भी था यहाँ अंतिओकस चुतुर्थ के सिक्के मिले हैं। यह नगर सीरिआई भाषा बोलनेवाले ईसाइयों का आदि स्थान है। सेल्यूकस के राजवंश के पतन के बाद 132 ई. पू. के लगभग एदेस्सा रोम और पार्थव साम्राज्यों की सीमा बना जहाँ स्थानीय राजा प्राय: कई सौ वर्षो तक राज्य करते रहे। ईसाई अनुश्रुतियों के अनुसार एदेस्सा में उस धर्म का प्रचार संत तोमस के भेजे अद्दाई नाम के मिशनरी ने किया। उसी ने वहाँ के अबगर राजा और अनेक निवासियों को बप्तिस्मा दिया। उसी नगर के पास रोमन सम्राट् काराकल्ला मारा गया।

226 ई. में पार्थव साम्राज्य पर सस्सानियों का अधिकार हुआ। सस्सानी राजाओं का रोमन सम्राटों से फलस्वरूप जो संघर्ष छिड़ा उससे एदेस्सा की बड़ी हानि हुई। इसी नगर के द्वार पर सस्सानी सम्राट् ने वालेरियन को परास्त कर बंदी कर लिया। समूचा मेसोपोतामिया अनेक बार सस्सानियों और रोमनों के बीच अपने स्वामी बदलता रहा। ईरानी पंडित इब्राहिम ने चौथी सदी में एदेस्सा में अपना आश्रम बनाया जहाँ दूर दूर के विद्यार्थी उसके ज्ञानामृत का पान करने आने लगे। उस विद्याकेंद्र का अंत 489 ई. में ज़ेनो की घोषणा से हुआ और फारस की नैतिक तथा बौद्धिक सत्ता एदेस्सा से मिट गई। सातवीं सदी ई. में खुसरो द्वितीय ने एदेस्सा पर अधिकार कर लिया और वहाँ की जनता की बड़ी संख्या को पूर्वी फारस में बसा दिया। मुहम्मद उन्हीं दिनों अरब में अपने नए धर्म का प्रचार कर रहे थे। बिज़ंतियम के रोमन सम्राट् और अरबों में सघंर्ष अनिवार्य था और 638 ई. में एदेस्सा मुसलमानों के अधिकार में आ गया। ईसाई क्रुसेड़ों के धर्मयुद्ध में इस नगर पर अरबों का अधिकार हो गया और उसके बाद लगातार तुर्को और मंगोलों के आधिपत्य में इस्लाम की संरक्षा में बना रहा। बीच बीच में निश्चय ही मिस्र ने भी इसपर अनेक बार अधिकार किया। एदेस्सा की मिट्टी के नीचे उसके जीवन के अनेक रूप दबे पड़े हैं। ग्रीकों के काल से आज के इस्लामी आधिपत्य तक इस नगर ने अनेक कलेवर बदले।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 240 |

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