गीता 2:49: Difference between revisions

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इस प्रकार <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था।
इस प्रकार [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को सत्य का आश्रय लेने की आज्ञा देकर अब दो श्लोकों में उस समता रूप बुद्धि से युक्त महापुरुषों की प्रशंसा करते हुए भगवान् अर्जुन को कर्मयोग का अनुष्ठान करने की पुन: आज्ञा देकर उसका फल बतलाते हैं-
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इस समत्व रूप बुद्धियोग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है । इसलिये हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">धनंजय</balloon> ! तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढ़ूँढ अर्थात् बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर, क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं ।।49।।  
इस समत्व रूप बुद्धियोग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है । इसलिये हे धनंजय<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढ़ूँढ अर्थात् बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर, क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं ।।49।।  


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Latest revision as of 08:33, 4 January 2013

गीता अध्याय-2 श्लोक-49 / Gita Chapter-2 Verse-49

प्रसंग-


इस प्रकार अर्जुन[1] को सत्य का आश्रय लेने की आज्ञा देकर अब दो श्लोकों में उस समता रूप बुद्धि से युक्त महापुरुषों की प्रशंसा करते हुए भगवान् अर्जुन को कर्मयोग का अनुष्ठान करने की पुन: आज्ञा देकर उसका फल बतलाते हैं-


दूरेण ह्रावरं कर्म बुद्धियोगाद्धनंजय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: ।।49।।




इस समत्व रूप बुद्धियोग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है । इसलिये हे धनंजय[2] ! तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढ़ूँढ अर्थात् बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर, क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं ।।49।।


Action (with a selfish motive ) is far inferior to this Yoga in the form of equanimity. Do you seek refuge in this equipoise of mind, Arjuna, for poor and wretched are those who are instrumental in making their actions bear fruit.(49)


बुद्धियोगात् =बुद्धियोगसे ; कर्म = (सकाम) कर्म ; अवरम् = तुच्छ है ; (अत:) = इसलिये ; धनंजय = हे धनंजय ; बुद्धौ = समत्वबुद्धियोगका ; शरणम् = आश्रय ; दूरेण = अत्यन्त ; अन्विच्छ = ग्रहण कर ; हि = क्योंकि ; फलहेतव: = फलकी वासनावाले ; कृपणा: = अत्यन्त दीन हैं



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

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