गीता 5:23: Difference between revisions

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Latest revision as of 13:49, 4 January 2013

गीता अध्याय-5 श्लोक-23 / Gita Chapter-5 Verse-23

प्रसंग-


उपर्युक्त प्रकार से बाह्रा विषय भोगों को क्षणिक और दु:खों का कारण समझकर तथा आसक्ति का त्याग करके जो काम-क्रोध पर विजय प्राप्त कर चुका है, अब ऐसे सांख्ययोगी की अन्तिम स्थिति का फल सहित वर्णन किया


शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: ।।23।।



जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का नाश होने से पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है ।।23।।

He alone who is able to stand, in this very life before casting off this body, the urges of lust and anger is Yogi; and he alone is a happy man.(23)


य: =जो मनुष्य; शरीर विमोक्षणात् = शरीर के नाश होने से; प्राक् = पहिले; काम क्रोधोभ्दवम् = काम और क्रोध से उत्पन्न हुए; वेगम् =वेग को; सोढुम् = सहन करने में; शक्रोति = समर्थ है अर्थात् काम क्रोध को जिसने सदा के लिये जीत लिया है; स: = वह; नर: = मनुष्य; इह = इस लोक में; युक्त: = योगी है; स: = वही; सुखी = सुखी है।



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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