गीता 6:7: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
 
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 9: Line 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
मन-इन्द्रियों के सहित शरीर को वश में करने का फल परमात्मा की प्राप्ति बतलाया गया । अत: परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष के लक्षण जानने की इच्छा होने पर अब दो श्लोकों द्वारा उसके लक्षणों का वर्णन करते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं-  
मन-[[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] के सहित शरीर को वश में करने का फल परमात्मा की प्राप्ति बतलाया गया। अत: परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष के लक्षण जानने की इच्छा होने पर अब दो [[श्लोक|श्लोकों]] द्वारा उसके लक्षणों का वर्णन करते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं-  
----
----
<div align="center">
<div align="center">
Line 23: Line 22:
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|


सरदी-गरमी और सुख-दु:खादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ भली-भाँति शान्त हैं, ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्दघन परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं ।।7।।
सरदी-गरमी और सुख-दु:खादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ भली-भाँति शान्त हैं, ऐसे स्वाधीन [[आत्मा]] वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्दघन परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं ।।7।।


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
Line 58: Line 57:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Latest revision as of 05:54, 5 January 2013

गीता अध्याय-6 श्लोक-7 / Gita Chapter-6 Verse-7

प्रसंग-


मन-इन्द्रियों के सहित शरीर को वश में करने का फल परमात्मा की प्राप्ति बतलाया गया। अत: परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष के लक्षण जानने की इच्छा होने पर अब दो श्लोकों द्वारा उसके लक्षणों का वर्णन करते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं-


जितात्मन: प्रशान्तस्य परमात्मा समाहित: ।
शीतोष्णसुखदु:खेषु तथा मानापमानयो: ।।7।।



सरदी-गरमी और सुख-दु:खादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ भली-भाँति शान्त हैं, ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्दघन परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं ।।7।।

The supreme spirit is rooted in the knowledge of the self controlled man whose mind is perfectly serence in the midst of pairs of opposites, such as cold and heat, joy and sorrow, and honour and ignominy. (7)


शीतोष्ण सुखद: खेषु = सर्दी गर्मी और सुख दु:खादि को में; मानपमानयो: = मान और आपमान में; प्रशान्तस्य = जिस के अन्त:करण की वृत्तियां अच्छी प्रकार शान्त हैं अर्थात् विकार रहित है (ऐसे); जितात्मन: = स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के (ज्ञान में); परमात्मा = सच्चिदानन्द धन परमात्मा; समाहित: = सम्यक प्रकार से स्थित है अर्थात् उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ है ही नहीं;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख