गीता 11:25: Difference between revisions
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दाढों के कारण विकराल और प्रलय काल की अग्नि के समान प्रज्वलित आपके मुखों को देखकर मैं दिशाओं को नहीं जानता हूँ और सुख भी नहीं पाता हूँ । इसीलिये हे देवेश ! हे जगन्निवास < | दाढों के कारण विकराल और प्रलय काल की [[अग्नि]] के समान प्रज्वलित आपके मुखों को देखकर मैं दिशाओं को नहीं जानता हूँ और सुख भी नहीं पाता हूँ । इसीलिये हे देवेश ! हे जगन्निवास [[कृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ! आप प्रसन्न हों ।।25।। | ||
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गीता अध्याय-11 श्लोक-25 / Gita Chapter-11 Verse-25
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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