गीता 14:26: Difference between revisions

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जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग के द्वारा मुझ को निरन्तर भजता है , वह भी इन तीनों गुणों को भलीभाँति लाँघकर सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त होने के लिये योग्य बन जाता है ।।26।।
 
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He too who constantly worships Me through the Yoga of exclusive devotion,—transcending these three Gunas, becomes eligible for attaining Brahma.(26)
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Latest revision as of 10:37, 6 January 2013

गीता अध्याय-14 श्लोक-26 / Gita Chapter-14 Verse-26

प्रसंग-


अर्जुन[1] ने दूसरा कोई उपाय जानने की इच्छा से प्रश्न किया था, इसलिये प्रश्न के अनुकूल भगवान् दूसरा सरल उपाय बतलाते हैं-


मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्राभूयाय कल्पते ।।26।।



जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग के द्वारा मुझ को निरन्तर भजता है, वह भी इन तीनों गुणों को भली-भाँति लाँघकर सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त होने के लिये योग्य बन जाता है ।।26।।

He too who constantly worships Me through the Yoga of exclusive devotion,—transcending these three Gunas, becomes eligible for attaining Brahma.(26)


च = और ; य: = जो पुरुष ; अव्यभिचारेण = अव्यभिचारी ; स: = वह ; एतान् = इन तीनों ; गुणान् = गुणों को ; समतीत्य = अच्छी प्रकार उल्लघन करके ; भक्तियोगेन = भक्तिरूप योग के द्वारा ; माम् = मेरे को ; सेवते = निरन्तर भजता है ; ब्रह्मभूयाय = सच्चिदानन्दघन ब्रह्म में एकीभाव होने के लिये ; कल्पते = योग्य होता है



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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