गीता 16:3: Difference between revisions

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¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।।3।।  
 
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Sublimity, forbearance, fortitude, external purity, bearing enmity to none and absence of self-esteem--these are the marks of him, who is born with the divine gifts Arjuna. (3)
Sublimity, forbearance, fortitude, external purity, bearing enmity to none and absence of self-esteem--these are the marks of him, who is born with the divine gifts Arjuna. (3)
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Latest revision as of 11:54, 6 January 2013

गीता अध्याय-16 श्लोक-3 / Gita Chapter-16 Verse-3

तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहो नातिमानिता ।

भवन्ति संपदं दैवीमभिजातस्य भारत ।।3।।


तेज, क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्धि एवं किसी में भी शत्रुभाव का न होना और अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव- ये सब तो हे अर्जुन[1] ! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।।3।।

Sublimity, forbearance, fortitude, external purity, bearing enmity to none and absence of self-esteem--these are the marks of him, who is born with the divine gifts Arjuna. (3)


तेज: = तेज़ ; क्षमा = क्षमा ; धृति: = धैर्य ; अद्रोह: = किसी में भी शत्रुभाव का न होना (और) ; नातिमानिता = अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव ; शौचम् = बाहर भीतर की शुद्धि (एवं) (यह सब तो) ; भारत = हे अर्जुन ; दैवीम् = दैवी ; संपदम् = संपदाको ; अभिजातस्य = प्राप्त हुए पुरुष के लक्षण ; भवन्ति = हैं ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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