गीता 16:9: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:10, 6 January 2013

गीता अध्याय-16 श्लोक-9 / Gita Chapter-16 Verse-9

प्रसंग-


ऐसे नास्तिक सिद्धान्त के मानने वालों के स्वभाव और आचरण कैसे होते है? इस जिज्ञासा पर अब भगवान् अगले चार श्लोकों में उनके लक्षणों का वर्णन करते हैं-


एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धय: ।

प्रभवन्त्युग्रकर्माण:क्षयाय जगतोऽहिता: ।।9।।


इस मिथ्या ज्ञान को अवलम्बन करके, जिनका स्वभाव नष्ट हो गया है तथा जिनकी बुद्धि मन्द है, वे सबका अपकार करने वाले क्रूरकर्मी मनुष्य केवल जगत् के नाश के लिये ही समर्थ होते हैं ।।9।।

Clinging to this false view these slow-witted men of a vile disposition and terrible deeds, these enemies of mankind; prove equal only to the destruction of the universe. (9)


एताम् = इस ; अवष्टम्य = अवलम्बन करके ; नष्टात्मान: = नष्ट हो गया है स्वभाव जिनका (तथा) ; अल्पबुद्धय: = मन्द है बुद्धि जिनकी (ऐसे वे) ; द्ष्टिम् = मिथ्या ज्ञान को ; अहिता: = सबका अपकार करने वाले ; उग्रकर्माण: = क्रूरकर्मी मनुष्य (केवल) ; जगत: = जगत् का ; क्षयाय = नाश करने के लिये ही ; प्रभवन्ति = उत्पन्न होते हैं ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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