गीता 17:2: Difference between revisions

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<balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था।
[[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> के प्रश्न को सुनकर भगवान् अब अगले दो [[श्लोक|श्लोकों]] में उसका संक्षेप से उत्तर देते हैं-
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'''श्रीभगवान् बोले-'''
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मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी- ऐसे तीनो प्रकार की ही होती है ।
मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी- ऐसे तीनों प्रकार की ही होती है ।
उसको तू मुझसे सुन ।।2।।
उसको तू मुझसे सुन ।।2।।


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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 12:44, 6 January 2013

गीता अध्याय-17 श्लोक-2 / Gita Chapter-17 Verse-2

प्रसंग-


श्रीकृष्ण[1] के प्रश्न को सुनकर भगवान् अब अगले दो श्लोकों में उसका संक्षेप से उत्तर देते हैं-


श्रीभगवानुवाच
त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा ।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु ।।2।।



श्रीभगवान् बोले-


मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी- ऐसे तीनों प्रकार की ही होती है । उसको तू मुझसे सुन ।।2।।

Shri Bhagavan said-


According to the modes of nature acquired by the embodied soul, one's faith can be of three kinds-goodness, passion or ignorance. Now hear about these.(2)


देहिनाम् = मनुष्यों की ; सा = वह (बिना शास्त्रीय संस्कारों के केवल) ; स्वभावजा = स्वभाव से उत्पन्न हुई ; श्रद्धा = श्रद्धा ; सात्त्विकी = सात्त्विकी ; = च = और ; राजसी =राजसी ; च = तथा ; तामसी = तामसी ; इति = ऐसे ; त्रिविधा = तीनों प्रकार की ; एव = ही; भवति =होती है ; ताम् = उसको (तूं) ; (मत्त:) = मेरे से श्रृणु = सुन



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।

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