गीता 17:26: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार 'तत्' नाम के प्रयोग की बात कह कर अब परमेश्वर 'सत्' नाम के प्रयोग की बात दो श्लोकों में कही जाती है- | इस प्रकार 'तत्' नाम के प्रयोग की बात कह कर अब परमेश्वर 'सत्' नाम के प्रयोग की बात दो [[श्लोक|श्लोकों]] में कही जाती है- | ||
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'सत्' – इस प्रकार यह परमात्मा का नाम सत्यभाव में और श्रेष्ठभाव में प्रयोग किया जाता है तथा हे < | 'सत्' – इस प्रकार यह परमात्मा का नाम सत्यभाव में और श्रेष्ठभाव में प्रयोग किया जाता है तथा हे पार्थ<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! उत्तम कर्म में भी 'सत्' शब्द का प्रयोग किया जाता है ।।26।। | ||
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{{ | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | |||
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{{ | {{महाभारत}} | ||
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Latest revision as of 13:23, 6 January 2013
गीता अध्याय-17 श्लोक-26 / Gita Chapter-17 Verse-26
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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