गीता 18:59: Difference between revisions

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Latest revision as of 06:41, 7 January 2013

गीता अध्याय-18 श्लोक-59 / Gita Chapter-18 Verse-59

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में जो अहंकार वश भगवान् की आज्ञा को न मानने से नष्ट हो जाने की बात कही है, उसी की पुष्टि करने के लिये अब भगवान् दो श्लोकों द्वारा अर्जुन[1] की मान्यता में दोष दिखलाते हैं-


यदहंकारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे ।
मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति ।।59।।



जो तू अहंकार का आश्रय लेकर यह मान रहा है कि 'मैं युद्ध नहीं करूँगा', तेरा यह निश्चय मिथ्या है, क्योंकि तेरा स्वभाव तुझे जबरदस्ती युद्ध में लगा देगा ।।59।।

If, taking your stand on egotism, you think, "I will not fight", vain is this resolve of yours; nature will drive you to the act.(59)


यत् = जो (तूं) ; अहंकारम् = अहंकारको ; आश्रित्य = अवलम्बन करके ; इति = ऐसे ; मन्यसे = मानता हे (कि) ; न योत्स्ये = मैं युद्ध नहीं करूंगा (तो) ; एष: = यह ; ते = तेरा ; व्यवसाय: = निश्र्चय ; मिथ्या = मिथ्या है ; यत: = क्योंकि ; प्रकृति: = क्षत्रियपन का स्वभाव ; त्वाम् = तेरेको ; नियोक्ष्यति = जबरदस्ती युद्ध में लगा देगा



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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