गीता 13:25: Difference between revisions

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परन्तु इनसे दूसरे अर्थात् जो मन्द-बुद्धि वाले पुरुष हैं, वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात् तत्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्यु रूप संसार सागर को नि:संदेह तर जाते हैं ।।25।।  
परन्तु इनसे दूसरे अर्थात् जो मन्द-बुद्धि वाले पुरुष हैं, वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात् तत्त्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्यु रूप संसार सागर को नि:संदेह तर जाते हैं ।।25।।
 
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Other dull witted persons, however, not knowing thus, whorship even as they have heard from others; and even those who are thus devoted to hearing, are able to cross the ocean of mundance existence in the shape of death. (25)
Other dull witted persons, however, not knowing thus, whorship even as they have heard from others; and even those who are thus devoted to hearing, are able to cross the ocean of mundance existence in the shape of death. (25)
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तु = परन्तु ; अन्ये = इनसे दूसरे अर्थात जो मन्द बुद्धिवाले पुरुष हैं वे (स्वयम्) ; एवम् = इस प्रकार ; अजानन्त = न जानते हुए ; अन्येभ्य: = दूसरों से अर्थात् तत्त्व के जानने वाले पुरुषों से; श्रुत्वा = सुनकर ही ; उपासते = उपासना करते हैं ; च = और ; ते = वे ; श्रुतिपरायणा: =सुनने के परायण हुए पुरुष ; अपि = भी ; मृत्युम् = मृत्युरूप संसार सागर को ; अतितरन्ति एव = नि:सन्देह तर जाते हैं ;
तु = परन्तु ; अन्ये = इनसे दूसरे अर्थात् जो मन्द बुद्धिवाले पुरुष हैं वे (स्वयम्) ; एवम् = इस प्रकार ; अजानन्त = न जानते हुए ; अन्येभ्य: = दूसरों से अर्थात् तत्त्व के जानने वाले पुरुषों से; श्रुत्वा = सुनकर ही ; उपासते = उपासना करते हैं ; च = और ; ते = वे ; श्रुतिपरायणा: =सुनने के परायण हुए पुरुष ; अपि = भी ; मृत्युम् = मृत्युरूप संसार सागर को ; अतितरन्ति एव = नि:सन्देह तर जाते हैं ;
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Latest revision as of 07:45, 7 November 2017

गीता अध्याय-13 श्लोक-25 / Gita Chapter-13 Verse-25

अन्ये त्वेमवजानन्त: श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणा: ।।25।।



परन्तु इनसे दूसरे अर्थात् जो मन्द-बुद्धि वाले पुरुष हैं, वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात् तत्त्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्यु रूप संसार सागर को नि:संदेह तर जाते हैं ।।25।।

Other dull witted persons, however, not knowing thus, whorship even as they have heard from others; and even those who are thus devoted to hearing, are able to cross the ocean of mundance existence in the shape of death. (25)


तु = परन्तु ; अन्ये = इनसे दूसरे अर्थात् जो मन्द बुद्धिवाले पुरुष हैं वे (स्वयम्) ; एवम् = इस प्रकार ; अजानन्त = न जानते हुए ; अन्येभ्य: = दूसरों से अर्थात् तत्त्व के जानने वाले पुरुषों से; श्रुत्वा = सुनकर ही ; उपासते = उपासना करते हैं ; च = और ; ते = वे ; श्रुतिपरायणा: =सुनने के परायण हुए पुरुष ; अपि = भी ; मृत्युम् = मृत्युरूप संसार सागर को ; अतितरन्ति एव = नि:सन्देह तर जाते हैं ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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