गीता 6:30: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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सर्वत्र भगद्दर्शन से भगवान् के साक्षात्कार की बात कहकर उस भगवत्-प्राप्त पुरुष के लक्षण और | सर्वत्र भगद्दर्शन से भगवान् के साक्षात्कार की बात कहकर उस भगवत्-प्राप्त पुरुष के लक्षण और महत्त्व का निरूपण करते हैं- | ||
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जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्म रूप मुझ < | जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्म रूप मुझ वासुदेव<ref>मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[श्रीकृष्ण]] के ही सम्बोधन है।</ref> को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ वासुदेव के अन्तर्गत देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।।30।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 06:29, 5 January 2013
गीता अध्याय-6 श्लोक-30 / Gita Chapter-6 Verse-30
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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