गीता 8:14: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार निराकार-सगुण परमेश्वर के और निगुर्ण निराकार ब्रह्म के उपासक योगियों की | इस प्रकार निराकार-सगुण परमेश्वर के और निगुर्ण निराकार ब्रह्म के उपासक योगियों की अन्तकालीन गति का प्रकार और फल बतलाया गया; किंतु अन्तकाल में इस प्रकार का साधन वे ही पुरुष कर सकते हैं, जिन्होंने पहले से योग का अभ्यास करके मन को अपने अधीन कर लिया है। साधारण मनुष्य के द्वारा अन्तकाल में इस प्रकार सगुण निराकार का और निर्गुण निराकार का साधन किया जाना बहुत ही कठिन है, अतएवं सुगमता से परमेश्वर की प्राप्ति का उपाय जानने की इच्छा होने पर अब भगवान् अपने नित्य निरन्तर स्मरण को अपनी प्राप्ति का सुगम उपाय बतलाते हैं- | ||
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हे < | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! जो पुरुष मुझ में अनन्यचित्त होकर सदा ही निरन्तर मुझ पुरुषोत्तम को स्मरण करता है, उस नित्य निरन्तर मुझमें युक्त हुए योगी के लिये मैं सुलभ हूँ, अर्थात् उसे सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ ।।14।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 09:07, 5 January 2013
गीता अध्याय-8 श्लोक-14 / Gita Chapter-8 Verse-14
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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