गीता 11:45: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (1 अवतरण) |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - "दृष्टा " to "द्रष्टा") |
||
(4 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 9: | Line 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
इस प्रकार भगवान् से अपने अपराधों के लिये क्षमा-याचना करके तब < | इस प्रकार भगवान् से अपने अपराधों के लिये क्षमा-याचना करके तब [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> दो [[श्लोक|श्लोकों]] में भगवान् से चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिये प्रार्थना करते हैं – | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
Line 25: | Line 24: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
मैं पहले न देखे हुए आपके इस आश्चर्यमय रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है, इसलिये आप उस अपने चतुर्भुज विष्णु रूप को ही मुझे दिखलाइये ! हे देवेश ! हे < | मैं पहले न देखे हुए आपके इस आश्चर्यमय रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है, इसलिये आप उस अपने चतुर्भुज [[विष्णु]] रूप को ही मुझे दिखलाइये ! हे देवेश ! हे जगन्निवास<ref>मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, देवेश, जगन्निवास, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! प्रसन्न होइये ।।45।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
Line 36: | Line 34: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
अदृष्टपूर्वम् = पहिले न देखे हुए आश्र्वर्यमय आपके इस रूपको; | अदृष्टपूर्वम् = पहिले न देखे हुए आश्र्वर्यमय आपके इस रूपको; द्रष्टा= देखकर; हृषित: = हर्षित होरहा; अस्मि = हूं(और); भयेन = मन; प्रव्यथितम् च = अति व्याकुल भी हो रहा है; (अतJ = इसलिये; तत् = उस; रूपम् = (अपने चतुर्भुज)रूप को; दर्शय = दिखाइये; प्रसीद = प्रसत्र होइये | ||
|- | |- | ||
|} | |} | ||
Line 60: | Line 58: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
{{ | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | |||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
{{ | {{महाभारत}} | ||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> |
Latest revision as of 05:03, 4 February 2021
गीता अध्याय-11 श्लोक-45 / Gita Chapter-11 Verse-45
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
||||