पुंडरीक विट्ठल: Difference between revisions

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'''पुंडरीक विट्ठल''' भारतीय [[संगीत]] के एक प्रसिद्ध गायक और संगीतज्ञ रहे हैं। ये जामदग्न्य गोत्रीय [[ब्राह्मण]] थे, और [[मैसूर]] इनका निवास स्थान था। पुंडरीक विट्ठल ने संगीत से सम्बन्धित 'सद्राग-चंद्रोदय' नामक [[ग्रन्थ]] की रचना की थी। [[राजपूत]] राजा [[मानसिंह]] ने भी इन्हें संरक्षण प्रदान किया था।  
==बुरहानपुर गमन==
;बुरहानपुर गमन
कीर्ति संपादन हेतु सन 1570 में पुंडरीक विट्ठल मैसूर छोड़कर उत्तर की ओर चल पड़े, और पहला पड़ाव [[बुरहानपुर]] में किया। पुंडरीक विट्ठल के समय उत्तर हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में बड़ी अव्यवस्था फैली थी। अत: राजा बुरहान ख़ान ने उनसे कहा कि वे उस संगीत पद्धति को अनुशासनबद्ध सुव्यवस्थित रूप दें। तदनुसार कार्यारम्भ की पुष्टि से पुंडरीक विट्ठल ने उत्तर व दक्षिण की संगीत पद्धतियों का तौलानिक अध्ययन किया और बाद में ‘सद्राग-चंद्रोदय’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
कीर्ति संपादन हेतु सन् 1570 में पुंडरीक विट्ठल मैसूर छोड़कर उत्तर की ओर चल पड़े, और पहला पड़ाव [[बुरहानपुर]] में किया। पुंडरीक विट्ठल के समय उत्तर हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में बड़ी अव्यवस्था फैली थी। अत: राजा बुरहान ख़ान ने उनसे कहा कि वे उस संगीत पद्धति को अनुशासनबद्ध सुव्यवस्थित रूप दें। तदनुसार कार्यारम्भ की पुष्टि से पुंडरीक विट्ठल ने उत्तर व दक्षिण की संगीत पद्धतियों का तौलानिक अध्ययन किया और बाद में ‘सद्राग-चंद्रोदय’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
====मानसिंह का संरक्षण====
;मानसिंह का संरक्षण
इसके बाद पुंडरीक विट्ठल [[राजपूत]] राजा मानसिंह के आश्रय में पहुँचे, तथा राजा मानसिंह के निर्देश के अनुसार आपने ‘रागमंजरी’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में उन्होंने [[राग|रागों]] के वर्गीकरण हेतु परिवार-राग-पद्धति अपनाई। यह पद्धति, रागों में दिखाई देने वाला स्वरसाम्य के तत्त्व पर आधारित है। विद्वानों के मतानुसार इस प्रकार के रागों के गुट निर्माण करने वाली पुंडरीक की यह पद्धति, अन्य तत्सम पद्धतियों से अधिक संयुक्तिक है।
इसके बाद पुंडरीक विट्ठल [[राजपूत]] राजा मानसिंह के आश्रय में पहुँचे, तथा राजा मानसिंह के निर्देश के अनुसार आपने ‘रागमंजरी’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में उन्होंने [[राग|रागों]] के वर्गीकरण हेतु परिवार-राग-पद्धति अपनाई। यह पद्धति, रागों में दिखाई देने वाला स्वरसाम्य के तत्त्व पर आधारित है। विद्वानों के मतानुसार इस प्रकार के रागों के गुट निर्माण करने वाली पुंडरीक की यह पद्धति, अन्य तत्सम पद्धतियों से अधिक संयुक्तिक है।
==नवीन पद्धति का निर्माण==
;नवीन पद्धति का निर्माण
दक्षिणात्य संगीत को ध्यान में रखते हुए पुंडरीक ने एक नवीन पद्धति का निर्माण किया। इनके अन्य ग्रन्थ हैं-विट्ठलीय, राग नारायण और नृत्यनिर्णय। संगीत वृत्तरत्नाकर के प्रणेता विट्ठल तथा पुंडरीक विट्ठल एक ही हैं। पुंडरीक विट्ठल को दिल्ली में विपुल सम्मान प्राप्त हुआ।सं.वा.को. (द्वि.खं.), पृ. 375
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Latest revision as of 14:09, 6 March 2012

पुंडरीक विट्ठल भारतीय संगीत के एक प्रसिद्ध गायक और संगीतज्ञ रहे हैं। ये जामदग्न्य गोत्रीय ब्राह्मण थे, और मैसूर इनका निवास स्थान था। पुंडरीक विट्ठल ने संगीत से सम्बन्धित 'सद्राग-चंद्रोदय' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। राजपूत राजा मानसिंह ने भी इन्हें संरक्षण प्रदान किया था।

बुरहानपुर गमन

कीर्ति संपादन हेतु सन् 1570 में पुंडरीक विट्ठल मैसूर छोड़कर उत्तर की ओर चल पड़े, और पहला पड़ाव बुरहानपुर में किया। पुंडरीक विट्ठल के समय उत्तर हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में बड़ी अव्यवस्था फैली थी। अत: राजा बुरहान ख़ान ने उनसे कहा कि वे उस संगीत पद्धति को अनुशासनबद्ध सुव्यवस्थित रूप दें। तदनुसार कार्यारम्भ की पुष्टि से पुंडरीक विट्ठल ने उत्तर व दक्षिण की संगीत पद्धतियों का तौलानिक अध्ययन किया और बाद में ‘सद्राग-चंद्रोदय’ नामक ग्रन्थ की रचना की।

मानसिंह का संरक्षण

इसके बाद पुंडरीक विट्ठल राजपूत राजा मानसिंह के आश्रय में पहुँचे, तथा राजा मानसिंह के निर्देश के अनुसार आपने ‘रागमंजरी’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में उन्होंने रागों के वर्गीकरण हेतु परिवार-राग-पद्धति अपनाई। यह पद्धति, रागों में दिखाई देने वाला स्वरसाम्य के तत्त्व पर आधारित है। विद्वानों के मतानुसार इस प्रकार के रागों के गुट निर्माण करने वाली पुंडरीक की यह पद्धति, अन्य तत्सम पद्धतियों से अधिक संयुक्तिक है।

नवीन पद्धति का निर्माण

दक्षिणात्य संगीत को ध्यान में रखते हुए पुंडरीक ने एक नवीन पद्धति का निर्माण किया। इनके अन्य ग्रन्थ हैं-विट्ठलीय, राग नारायण और नृत्यनिर्णय। संगीत वृत्तरत्नाकर के प्रणेता विट्ठल तथा पुंडरीक विट्ठल एक ही हैं। पुंडरीक विट्ठल को दिल्ली में विपुल सम्मान प्राप्त हुआ।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 494 |

  1. सं.वा.को. (द्वि.खं.), पृ. 375

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