गीता 5:13: Difference between revisions
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जबकि आत्मा वास्तव में कर्म करने वाला भी नहीं है और इन्द्रियादि से करवाने वाला भी नहीं है, तो फिर सब मनुष्य अपने को कर्मों का कर्ता क्यों मानते हैं और वे कर्म फल के भोगी क्यों होते हैं- | जबकि [[आत्मा]] वास्तव में कर्म करने वाला भी नहीं है और इन्द्रियादि से करवाने वाला भी नहीं है, तो फिर सब मनुष्य अपने को कर्मों का कर्ता क्यों मानते हैं और वे कर्म फल के भोगी क्यों होते हैं- | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 13:34, 4 January 2013
गीता अध्याय-5 श्लोक-13 / Gita Chapter-5 Verse-13
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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