गीता 6:14: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
 
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 59: Line 58:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Latest revision as of 06:00, 5 January 2013

गीता अध्याय-6 श्लोक-14 / Gita Chapter-6 Verse-14

प्रसंग-


उपर्युक्त प्रकार से किये हुए ध्यान योग के साधन का फल बतलाते हैं-


प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्राचारिव्रते स्थित: ।
मन: संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्पर: ।।14।।



ब्रह्राचारी के व्रत में स्थित, भयरहित तथा भली-भाँति शान्त अन्त:करण वाला सावधान योगी मन को रोककर मुझ में चित्तवाला और मेरे परायण होकर स्थित होवे ।।14।।

Firm in the vow of complete chastity and fearless, keeping himself perfectly calm and with the mind held in restraint and fixed on Me, the vigilant yogi should sit absorbed in Me. (14)


ब्रह्मचारिव्रते = ब्रह्मचर्य के व्रत में; स्थित: = स्थित रहता हुआ; विगतभी: = भयरहित (तथा); प्रशान्तात्मा = अच्छी प्रकार शान्त अन्त: करण वाला;(और); युक्त: = सावधान (होकर); मन: = मन को; संयम्य = वश में करके; मच्चित: = मेंरे में लगे हुए चित्तवाला (और); मत्पर: = मेरे परायण हुआ; आसीत = स्थित होवे;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख