गीता 7:13: Difference between revisions
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भगवान् ने सारे जगत् को त्रिगुणमय भावों से मोहित | भगवान् ने सारे जगत् को त्रिगुणमय भावों से मोहित बतलाया। इस बात को सुनकर [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को यह जानने की इच्छा हुई कि फिर इससे छूटने का कोई उपाय है या नहीं? अन्तर्यामी दयामय भगवान् इस बात को समझकर अब अपनी माया को दुस्तर बतलाते हुए उसे तरने का उपाय सूचित कर रहे हैं- | ||
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गुणमयै: = गुणों के कार्यरूप (सात्वकि, राजस और तामस); एभि: = इन; त्रिभि: = तीनों प्रकार के; भावै: =भावों से; इदम् =यह; सर्वम् = सब; जगत् = संसार; मोहितम् = मोहित हो रहा है(इसलिये); एभ्य: = इन तीनों गुणों से; परम् = परे; माम् = मुझ; अव्ययम् = अविनाशी को;न अभिजानाति = | गुणमयै: = गुणों के कार्यरूप (सात्वकि, राजस और तामस); एभि: = इन; त्रिभि: = तीनों प्रकार के; भावै: =भावों से; इदम् =यह; सर्वम् = सब; जगत् = संसार; मोहितम् = मोहित हो रहा है(इसलिये); एभ्य: = इन तीनों गुणों से; परम् = परे; माम् = मुझ; अव्ययम् = अविनाशी को;न अभिजानाति = तत्त्व से नहीं जानता | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 08:01, 5 January 2013
गीता अध्याय-7 श्लोक-13 / Gita Chapter-7 Verse-13
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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