गीता 13:2: Difference between revisions

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च = और ; भारत = हे अर्जुन (तूं) ; सर्वक्षेत्रषु = सब क्षेत्रों में ; क्षेत्रज्ञम् = क्षेत्रज्ञ अर्थात जीवात्मा ; अपि = भी ; माम् = मेरे को ही ; विद्धि = जान (और) ; क्षेत्रक्षेत्रज्ञ का अर्थात विकार सहित प्रकृतिका और पुरुष का ; यत् = जो ; ज्ञानम् = तत्त्व से जानना है ; तत् = वह ; ज्ञानम् = ज्ञान हे ; इति = ऐसा ; मम = मेरा ; मतम् = मत है ;
च = और ; भारत = हे अर्जुन (तूं) ; सर्वक्षेत्रषु = सब क्षेत्रों में ; क्षेत्रज्ञम् = क्षेत्रज्ञ अर्थात् जीवात्मा ; अपि = भी ; माम् = मेरे को ही ; विद्धि = जान (और) ; क्षेत्रक्षेत्रज्ञ का अर्थात् विकार सहित प्रकृतिका और पुरुष का ; यत् = जो ; ज्ञानम् = तत्त्व से जानना है ; तत् = वह ; ज्ञानम् = ज्ञान हे ; इति = ऐसा ; मम = मेरा ; मतम् = मत है ;
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Latest revision as of 07:52, 7 November 2017

गीता अध्याय-13 श्लोक-2 / Gita Chapter-13 Verse-2

प्रसंग-


इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के लक्षण बतलाकर अब क्षेत्रज्ञ और परमात्मा की एकता करते हुए ज्ञान के लक्षण का निरूपण करते हैं –


क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम ।।2।।



हे अर्जुन[1] ! तू सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ अर्थात् जीवात्मा भी मुझे ही जान। और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का अर्थात् विकार सहित प्रकृति का और पुरुष का जो तत्त्व से जानना है, वह ज्ञान है- ऐसा मेरा मत है ।।2।।

Know myself to be the Ksetrajna (individual soul) also in all the ksetras, Arjuna, and it is the knowledge of Ksetra and Ksetrajna (i.e., of matter with its evolutes and the spirit) which I consider as wisdom. (2)


च = और ; भारत = हे अर्जुन (तूं) ; सर्वक्षेत्रषु = सब क्षेत्रों में ; क्षेत्रज्ञम् = क्षेत्रज्ञ अर्थात् जीवात्मा ; अपि = भी ; माम् = मेरे को ही ; विद्धि = जान (और) ; क्षेत्रक्षेत्रज्ञ का अर्थात् विकार सहित प्रकृतिका और पुरुष का ; यत् = जो ; ज्ञानम् = तत्त्व से जानना है ; तत् = वह ; ज्ञानम् = ज्ञान हे ; इति = ऐसा ; मम = मेरा ; मतम् = मत है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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