कौरव: Difference between revisions

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*गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी [[युयुत्स]] नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया।  
*गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी [[युयुत्स]] नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया।  
*दु:शला का विवाह [[जयद्रथ]] के साथ हुआ।
*दु:शला का विवाह [[जयद्रथ]] के साथ हुआ।
 
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Revision as of 07:34, 21 March 2010

कौरव / Kaurav

जन्म-कथा

  • युधिष्ठर के जन्म होने पर धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी के हृदय में भी पुत्रवती होने की लालसा जागी।
  • गान्धारी ने वेदव्यास जी से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया।
  • गर्भ धारण के पश्चात दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी जब पुत्र का जन्म नही हुआ तो क्षोभवश गान्धारी ने अपने पेट में मुक्का मार कर अपना गर्भ गिरा दिया। योगबल से वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल जान लिया। वे गान्धारी के पास आकर बोले, ,गान्धारी तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र सौ कुण्ड तैयार कर के उनमें घृत भरवा दो।' गान्धारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिये।
  • वेदव्यास ने गान्धारी के गर्भ से निकले मांसपिण्ड पर अभिमन्त्रित जल छिड़का जिसे उस पिण्ड के अँगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश दे अपने आश्रम चले गये।
  • दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई।
  • दुर्योधन के जन्म के दिन ही कुन्ती के पुत्र भीम का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने धृतराष्ट्र को बताया,'राजन! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है। किन्तु पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके।
  • फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ।
  • गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी युयुत्स नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया।
  • दु:शला का विवाह जयद्रथ के साथ हुआ।


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