गीता 12:16: Difference between revisions

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Revision as of 12:38, 21 March 2010

गीता अध्याय-12 श्लोक-16 / Gita Chapter-12 Verse-16


अनपेक्ष: शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथ: ।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ।।16।



जो पुरुष आकांक्षा से रहित, बाहर-भीतर से शुद्ध, चतुर, पक्षपात से रहित और दु:खों से छूटा हुआ है- वह सब आरम्भों का त्यागी मेरा भक्त मुझको प्रिय है ।।16।।

He who wants nothing, who is both internally and externally pure, is clever and impartial, and has risen above all distractions, and who renounces the feeling of doeship in all undertaking,-that devotee of mine is dear. (16)


य: = जो पुरुष; अनपेक्ष: = आकाख्डा से रहित (तथा); शुचि: = बाहर भीतर से शुद्ध(और); दक्ष: = जिस काम के लिये आया था उसको पूरा कर चुका है(एवं); उदासीन: = पक्षपात से रहित (और); गतव्यथ: = दु:खोंसे छूटा हुआ है; स: = वह; सर्वारम्भपरित्यागी = सर्व आरम्भों का त्यागी; मभ्दक्त: = मेरा भक्त; प्रिय: =प्रिय है



अध्याय बारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-12

1 | 2 | 3,4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13, 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)