अज्ञातवास: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Adding category Category:पौराणिक स्थान (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 21: | Line 21: | ||
[[Category:पौराणिक_कोश]] | [[Category:पौराणिक_कोश]] | ||
[[Category:महाभारत]] | [[Category:महाभारत]] | ||
[[Category:पौराणिक स्थान]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 14:09, 21 July 2011
- अज्ञातवास का अर्थ है बिना किसी के संज्ञान में आये किसी अपरिचित स्थान व अज्ञात स्थान में रहना।
पांडवों के वनवास में एक वर्ष का अज्ञातवास भी था जो उन्होंने विराट नगर में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने राजा विराट के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया।
युधिष्ठिर
युधिष्ठिर राजा विराट का मनोरंजन करने वाले कंक बने। जिसका अर्थ होता है यमराज का वाचक है। यमराज का ही दूसरा नाम धर्म है और वे ही युधिष्ठिर रूप में अवतीर्ण हुए थे।
भीम
भीम बल्लव बने, बल्लव का अर्थ है सूपकर्त्ता अर्थात रसोइया। रसोई के काम में निपुण होने से उनका यह नाम यथार्थ ही है।
अर्जुन
इस प्रसंग में अर्जुन को षण्ढक और बृहन्नला कहा है। षण्ढक शब्द का अर्थ है नपुंसक। अर्जुन इस समय उर्वशी के शाप से नपुंसक हो गये थे।
नकुल
नकुल ने अपना नाम ग्रन्थिक बताया और अपने को अश्वों का अधिकारी कहा है। ग्रन्थिक का अर्थ है आयुर्वेद तथा अध्वर्यु विद्या सम्बन्धी ग्रन्थों को जानने वाला।
सहदेव
तन्तिपाल कहकर सहदेव ने गूढ़रूप से युधिष्ठिर को यह बताया कि मैं आपकी प्रत्येक आशा का पालन करूँगा।
द्रौपदी
द्रौपदी ने अपना नाम सैरन्ध्री बताया।