Difference between revisions of "अस्थि स्तूप"
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− | *अस्थि वर्तमान [[जलालाबाद]] या प्राचीन नगरहार से 5 मील दक्षिण में है। बौद्धकाल में यह प्रसिद्ध तीर्थ था। | + | *अस्थि वर्तमान [[जलालाबाद]] या प्राचीन नगरहार से 5 मील दक्षिण में है। |
+ | *बौद्धकाल में यह प्रसिद्ध तीर्थ था। | ||
*[[फाह्यान]] तथा [[युवानच्वांग]] दोनों ने ही यहां के [[स्तूप|स्तूपों]] तथा गगनचुंबी विहारों का वर्णन किया है। | *[[फाह्यान]] तथा [[युवानच्वांग]] दोनों ने ही यहां के [[स्तूप|स्तूपों]] तथा गगनचुंबी विहारों का वर्णन किया है। | ||
*यहां कई स्तूप थे जिनमें [[बुद्ध]] का दांत, तथा शरीर की अस्थियों के कई अंश निहित थे। | *यहां कई स्तूप थे जिनमें [[बुद्ध]] का दांत, तथा शरीर की अस्थियों के कई अंश निहित थे। | ||
*जिस स्तूप में बुद्ध के सिर की अस्थि रखी थी उसके दर्शन करने वालों से एक स्वर्णमुद्रा ली जाती थी फिर भी यहां यात्रियों का मेला-सा लगा रहता था। | *जिस स्तूप में बुद्ध के सिर की अस्थि रखी थी उसके दर्शन करने वालों से एक स्वर्णमुद्रा ली जाती थी फिर भी यहां यात्रियों का मेला-सा लगा रहता था। | ||
− | *नगर 3-4 मील के घेरे में एक पहाड़ी के ऊपर स्थित था। पहाड़ी पर एक सुंदर उद्यान के भीतर एक दुमंजिला धातुभवन था जिसमें किंवदंती के अनुसार बुद्ध की उष्णीष-अस्थि, शिरकंकाल, एक नेत्र, क्षत्र-दंड और संघटी निहित थी। | + | *नगर 3-4 मील के घेरे में एक पहाड़ी के ऊपर स्थित था। |
− | *धातुभवन के उत्तर में एक पत्थर का स्तूप था। जनश्रुति के अनुसार यह स्तूप ऐसे अद्भुत पाषाण का बना था कि उंगली | + | *पहाड़ी पर एक सुंदर उद्यान के भीतर एक दुमंजिला धातुभवन था जिसमें किंवदंती के अनुसार बुद्ध की उष्णीष-अस्थि, शिरकंकाल, एक नेत्र, क्षत्र-दंड और संघटी निहित थी। |
+ | *धातुभवन के उत्तर में एक पत्थर का स्तूप था। | ||
+ | *जनश्रुति के अनुसार यह स्तूप ऐसे अद्भुत पाषाण का बना था कि उंगली के छूने से ही हिलने लगता था। | ||
*हिद्दा में फ्रांसीसी पुरातत्वज्ञों ने एक प्राचीन स्तूप को खोज निकाला है जिसे पश्तो में खायस्ता या विशाल स्तूप कहते हैं यह अभी तक अच्छी दशा में है। | *हिद्दा में फ्रांसीसी पुरातत्वज्ञों ने एक प्राचीन स्तूप को खोज निकाला है जिसे पश्तो में खायस्ता या विशाल स्तूप कहते हैं यह अभी तक अच्छी दशा में है। | ||
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Revision as of 11:46, 25 August 2011
- asthi/haddi/hidda
- asthi vartaman jalalabad ya prachin nagarahar se 5 mil dakshin mean hai.
- bauddhakal mean yah prasiddh tirth tha.
- phahyan tatha yuvanachvaang donoan ne hi yahaan ke stoopoan tatha gaganachuanbi viharoan ka varnan kiya hai.
- yahaan kee stoop the jinamean buddh ka daant, tatha sharir ki asthiyoan ke kee aansh nihit the.
- jis stoop mean buddh ke sir ki asthi rakhi thi usake darshan karane valoan se ek svarnamudra li jati thi phir bhi yahaan yatriyoan ka mela-sa laga rahata tha.
- nagar 3-4 mil ke ghere mean ek paha di ke oopar sthit tha.
- paha di par ek suandar udyan ke bhitar ek dumanjila dhatubhavan tha jisamean kianvadanti ke anusar buddh ki ushnish-asthi, shirakankal, ek netr, kshatr-dand aur sanghati nihit thi.
- dhatubhavan ke uttar mean ek patthar ka stoop tha.
- janashruti ke anusar yah stoop aise adbhut pashan ka bana tha ki uangali ke chhoone se hi hilane lagata tha.
- hidda mean phraansisi puratatvajnoan ne ek prachin stoop ko khoj nikala hai jise pashto mean khayasta ya vishal stoop kahate haian yah abhi tak achchhi dasha mean hai.